मेडिकल कालेज अस्पताल का है यह हाल
अम्बिकापुर
दीपक सराठे
स्वास्थ्य संचानलय के बडे निर्देशों के बाद भी मेडिकल कालेज अस्पताल मे पदस्थ चिकित्सक अपनी ही मर्जी से काम करने पर उतारू है। ख़ास तौर पर नए पदस्थ चिकित्सकों की लिखावट को बांचना वहा के कर्मचारियों व दवा दूकान के संचालको के लिए किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं। मंगलवार को भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। महिला मेडिकल में अपनी पत्नी सरस्वती को दाखिल करा कर स्मार्ट कार्ड की सेवा पाने के लिए पति रमाकांत जब स्मार्ट कार्ड की लम्बी लाइन में खड़ा हुआ और लम्बे इंतज़ार के बाद जब उसका नंबर आया तो पर्ची पर लिखी चिकित्सक के अजीबो-गरीब लिखावट को देख कर्मचारियों ने उसे वापस भेज दिया। आखिर पर्चे में क्या लिखा था यह जानने के लिए वह उक्त चिकित्सक को खोजता रहा अंततः महिला मेडिकल की स्टाफ नर्स ने किसी तरह चिकित्सक की लिखावट को अनुमानतः समझा और एक अलग कागज़ में रमाकांत को डायग्नोस की जानकारी लिखी।
गौरतलब है की स्वास्थ्य संचनालय का निर्देश है कि दवाओं की पर्ची में केपिटल लेटर का इस्तेमाल करतें हुए इस प्रकार दवाऐं लिखे कि उसे कोई भी आसानी से पढ़ सकता है। परन्तु यहाँ ऐसा नहीं हो रहा है। आज ही की बात करे तो एक ओर स्मार्ट कार्ड की लाइन में खड़े व्यक्ति को परेशानी हुई वही दवा वितरण कक्ष में दवा लेने मरीज की पर्ची देखकर कर्मचारियो को समझने मे कठिनाईयो का सामना करना पडा। अंत मे बिना दवाई दिए मरीज को वापस उस चिकित्सक के पास भेज अच्छे से दवा लिखने की बात की गई । यह सिर्फ आज की बात नहीं है जिला अस्पताल में लिखी गई दवाओं की पर्ची माने आप लिखें खुदा बांचे की तर्ज पर ही चल रही है। शासन द्वारा इस अव्यवस्था मे सुधार लाने गाईड लाईन तो बता दी गई है। इसके आधार मे दवाओं के पर्ची की एक कापी भी दवा वितरण कक्ष मे जमा की जाती है। बाद मे उसे जांच के लिए संचनालय भी भेजा जाता है। इतना सब होने के बावजूद भी कहा जा सकता है कि मेडिकल कालेज अस्पताल होने के बाद अस्पताल की सूरत तो सुधरी परन्तु चिकित्सको की सीरत नही सुधर सकी है। मरीज व उनके परिजनों को दवा की पर्ची लेकर बार – बार भटकना पड़ रहा है। चाहे वह जिला अस्पताल से दवाएं ले या फिर बाहर मेडिकल स्टोर से । हर जगह एक ही शिकायत सामने देखने को मिल रही है कि क्यां दवाई लिखी है डाक्टर से पूछकर आओं । स्वास्थ्य संचनालय के द्वारा बनाई गई गाईड लाईन के आधार पर जिला अस्पताल के कुछ डाक्टरो की लिखावट में जरूर सुधार आया है परन्तु कुछ डाक्टर अभी भी ना तो केपिटल लेटर का इस्तेमाल कर रहे है और ना तो उनकी लिखी दवाईयां समझ मे आ रही है।
फजीहत कर्मचारियों की
चिकित्सकों की आडी तिरछी लिखावट के कारण जहां मरीज व उसके परिजन परेशान रहते है। बल्कि दवा वितरण कक्ष में दवाईयां बांटने वाले कर्मचारियों की फजीहत होती रहती है। वर्तमान मेे सौसमी बीमारियों के कारण औषधी काउंटर मे मरीजों की भारी भीड़ लगी रहती है। ऐसे में एक एक दवा की पर्ची को समझने में समय लग जा रहा है।
जेनरिक दवा में भी झोलझाल
मेडिकल कालेज अस्पताल में चिकित्सको को पर्ची में साफ लिखावट के साथ जेनरिक दवाओ को लिखने के निर्देश है। परन्तु इस कार्य मे भी काफी झोलझाल सामने आ रहे है। उनकी पर्ची की जांच की जाए तो सारा मामला सामने आ सकता है।