नागा साधुओं की वेशभूषा, क्रियाकलाप, साधना-विधि आदि सब उनके अखाड़े के अनुसार होती हैं, जिनसे वे जुड़े होते हैं। प्रमुख तौर पर 13 अखाड़ों को मान्यता प्राप्त हैं, जिसमें 7 शैव, 3 वैष्णव और 3 उदासीन अखाड़े हैं। ये अखाड़े देखने में एक जैसे लगते हैं, लेकिन इनकी परंपराएं-पद्धति सब भिन्न-भिन्न हैं। आइये जानते हैं उनके अखाड़ों के बारे में:
जूना अखाड़ा
जूना का अर्थ होता है, पुराना। इसे सबसे पुराना अखाड़ा माना जाता है। वर्तमान में सबसे ज्यादा महामंडलेश्वर इसी अखाड़े के हैं, जिनमें विदेशी और महिला महामंडलेश्वर भी शामिल हैं। इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं। रुद्रावतार दत्तात्रेय इनके इष्टदेव हैं।
अटल अखाड़ा
यह अखाड़ा सन 569 ईस्वी में गोंडवाना क्षेत्र में स्थापित किया गया। भगवान गणेश इनके इष्टदेव हैं। इसकी मुख्य पीठ पाटन में है। इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को ही दीक्षा मिलती है, अन्य वर्णों को इस अखाड़े में नहीं लिया जाता है।
आवाहन अखाड़ा
यह अखाड़ा सन 646 में स्थापित हुआ था और सन 1603 में इसे पुनर्संयोजित किया गया। श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन इनके इष्टदेव हैं। काशी इस अखाड़े का केंद्र है। इस अखाड़े में महिला साध्वियों की कोई परम्परा नहीं है।
निरंजनी अखाड़ा
यह एक मशहूर अखाड़ा है। माना जाता है कि सबसे ज्यादा उच्च शिक्षित महामंडलेश्वर इसी अखाड़े में है। इसे सन 826 ई. में गुजरात के मांडवी में स्थापित किया गया था। भगवान कार्तिकेय इष्टदेव हैं।
पंचाग्नि अखाड़ा
इस अखाड़े की स्थापना 1136 में हुई थी। गायत्री इनके इष्टदेव हैं। काशी इनका प्रधान केंद्र है। चारों पीठ के शंकराचार्य इनके सदस्यों में शामिल हैं। इस अखाड़े में सिर्फ ब्राह्मणों को ही दीक्षा दी जाती है। ब्राह्मण के साथ उनका ब्रह्मचारी होना भी आवश्यक है।
महानिर्वाणी अखाड़ा
यह अखाड़ा 681 ईस्वी में स्थापित हुआ था| अनेक लोगों मानना है कि इसकी उत्पत्ति झारखण्ड के बैद्यनाथधाम में हुआ था, जबकि कुछ हरिद्वार में नीलधारा को इसका जन्म स्थान मानते हैं। कपिल महामुनि इनके इष्टदेव हैं। उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्मा इसी अखाड़े के पास है।
आनंद अखाड़ा
यह एक शैव अखाड़ा है, जिसमें आज तक एक भी महामंडलेश्वर नहीं बनाया गया है। इस अखाड़े में आचार्य का पद प्रमुख होता है। इसे सन 855 ई. में मध्यप्रदेश के बरार में स्थापित किया गया था। वर्तमान में इसका केंद्र वाराणसी है।
निर्मोही अखाड़ा
वैष्णव सम्प्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में से इसी में सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल हैं। इनकी संख्या 9 है। इस अखाड़े की स्थापना सन 1720 में स्वामी रामानंद ने की थी। पुराने समय में इस अखाड़ो के साधुओं को तीरंदाजी और तलवारबाजी की शिक्षा दिलाई जाती थी।
निर्वाणी अणि अखाड़ा
कुश्ती इस अखाड़े के जीवन का एक हिस्सा है। इस अखाड़े के कई संत प्रसिद्ध प्रोफेशनल पहलवान भी रह चुके हैं।
बड़ा उदासीन अखाड़ा
इस अखाड़ा के संस्थापक श्री चंद्राचार्य उदासीन हैं। इनमें सांप्रदायिक भेद हैं। इस अखाड़े का उद्देश्य सेवा करना है। इस अखाड़े में 4 महंत होते हैं, जो कभी सेवानिवृत नहीं होते है।
नया उदासीन अखाड़ा
इसे बड़ा उदासीन अखाड़ा के कुछ सांधुओं ने विभक्त होकर स्थापित किया। इस अखाड़े में उन्हीं को नागा बनाया जाता है, जो 8 से 12 साल की उम्र के होते हैं यानी जिनकी दाढ़ी-मूंछ न निकली हो|
निर्मल अखाड़ा
यह अखाड़ा 1784 में स्थापित हुआ था, जो हरिद्वार कुंभ मेले में बड़ी सभा में विचार करके श्री दुर्गासिंह महाराज ने स्थापित किया था| श्री गुरुग्रन्थ साहिब इनकी इष्ट-पुस्तक है। इस अखाड़ें में धूम्रपान पर पूरी तरह पाबंदी है।
दिगंबर अणि अखाड़ा
इस अखाड़े में सबसे ज्यादा खालसा हैं, जिनकी संख्या करीब 431 है| वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों में इसे राजा कहा जाता है।