गाजियाबाद में ‘बन्ने की दुल्हनिया’ का शानदार मंचन, वरिष्ठ रंगकर्मी आलोक शुक्ला मेहनत लाई रंग; कलाकारों ने सबको हंसाया

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश रीवा की प्रासंगिक संस्था के दिल्ली रंगसमूह ने तीन हफ्ते की नाट्य कार्यशाला में तैयार हास्य नाटक बन्ने की दुल्हनिया का शानदार मंचन वरिष्ठ रंगकर्मी आलोक शुक्ला के निर्देशन में कथारंग महोत्सव में दिल्ली से लगे गाज़ियाबाद के सिल्वर लाइन प्रेस्टिज स्कूल के सभागार में शनिवार शाम को किया गया।

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जाने माने लेखक शकील अहमद सैफ की हास्य कहानी बन्ने की दुल्हनिया का नाट्य रूपांतरण करते हुए रंग निर्देशक आलोक शुक्ला ने इसे 20 जून से 13 जुलाई को आयोजित एक नाट्य कार्यशाला में गाज़ियाबाद और दिल्ली के नये कलाकारों के साथ तैयार किया था। जिसे देश के जाने माने कथकारों के राष्ट्रीय कथा रंग महोत्सव में 13 जुलाई को पेश किया। जिसको पूरे भरे हॉल ने खूब एन्जॉय किया।

नाटक में अपनी बेगम की मौत के बाद एक वृद्ध व्यक्ति बन्ने खान (मृदुल कुमार) द्वारा दूसरे निकाह करने के प्रयासों के दौरान घर, परिवार तथा समाज में निर्मित हुई परिस्थितियों में उपजे हास्य को मुख्य पात्र बन्ने खान (मृदुल कुमार),सूत्रधार और बन्ने के दोस्त मासिता (टेकचंद), हारून रसीद( जीतेन्द्र कुमार)बेटी नाजरीन (निकिता करायत), बेटे कलुआ (सौरभ कुमार), भूरा (अभिषेक सेंगर), बहु आयशा (अंजलि), सलमा (कविता),भाभी (सिमरन ),सरफराज चाचा (शिवकुमार) दामाद राजा और व्यक्ति दो ( संजय यादव) अजनबी और इक़बाल (वागीश शर्मा) ,नाजरीन की  सहेली (खुशबु), व्यक्ति एक (निखिल कुमार), व्यक्ति तीन ( विनय शर्मा), छोटा लड़का (सृजन पाण्डेय) शबनम (मेघा सैनी) , शबनम की अम्मी (विजय लक्ष्मी) और अब्बा रहमान(प्रताप सिंह) के साथ कुछ यूँ बाँधा कि करीब एक घंटे तक दर्शक अपनी कुर्सियों पर चिपका बैठा रहा।

नाटक की मंच सज्जा में मंच के दोनों ओर बनी खिड़कियां, एक दरवाजा जो हरे रंग से पुते थे, मंच के अग्रभाग में एक ड्रेसिंग टेबल के साथ फीमेल किरदारों द्वारा हिजाब पहने रहना, मेल किरदारों का कुर्ता पजामा और जालीदार टोपी के साथ खत लगी दाढ़ी ने नाटक के कथानक के मुताबिक एकदम पूरे मुस्लिम परिवेश को दर्शाया। इसी के साथ सभी पात्रों ने उर्दू ज़ुबान के साथ एकदम जोश से भरे अभिनय से पूरे हॉल को अपने मोहपाश में बांध लिया। प्रकाश सज्जा फ्लैट थी तो नाटक के एक हास्य गीत में महज ढोलक (टेकचंद) के प्रयोग ने भी पूरे संगीत को खूब उभरा।

नाटक के मंचन के बाद नाटक के लेखन, परिकल्पना और निर्देशन से शमा बाँधने के लिए आलोक शुक्ला को कथा रंग नाट्य सम्मान देने के साथ, कार्यशाला संयोजक प्रताप सिंह, सहयोगी टेकचंद और मृदुल कुमार समेत सभी कलाकारों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।