अम्बिकापुर (देश दीपक “सचिन”) सरगुजा और जशपुर जिले की सीमा पर बसे ढोढा गाँव में के इस मंदिर की अद्भुत मान्यताएं है.. इस मंदिर में लोगो की इतनी आस्था है की दूर दूर से श्रद्धालू दुर्गम रास्तो से होकर यहाँ पहुचते है और मंदिर में विराजी माँ के दर्शन करते है.. मान्यता है की इस मंदिर में सभी की मुराद पूरी होती है.. और यही वहज है की नवरात्री के समय यह गाँव मेले के रूप में बदल जाता है.. इसके साथ ही इस मंदिर के पुजारी की भी कहानी बड़ी ही चमत्कारी है..
अंबिकापुर मुख्यालय से लगभग 85 किलोमीटर जशपुर जिले की सीमा पर स्थित है यह गाँव.. अंबिकापुर से सीतापुर और फिर सीतापुर नॅशनल हाइवे से लगभग 27 किलोमीटर के दुर्गम रास्तो का सफ़र तय करने के बाद आप इस मंदिर तक पहुच सकते है.. मान्यताये है की मंदिर में विराजी माता के दर्शन करने से लोगो की मनोकामना पूरी होती है… नवरात्री के अवसर पर इस गाँव में लोगो का हुजूम उमड़ पड़ता है..
मंदिर में विराजी माता के अलावा इस मंदिर के पुजारी की भी बड़ी मान्यताये है बताया जाता है की पुजारी ना तो किसी पुरोहित घराने से है ना ही इनके पूर्वज बैगा के रूप में मंदिर की सेवा किये है बल्की यह पुजारी एक साधारण गरीब परिवार का एक बालक था.. और बचपन में ही स्वप्न के माध्यम से कई बार उसे सपना आया की नदी किनारे माँ की प्रतिमा है और वो उसे स्थापित कर पूजन करे, लेकिन बाल्य काल में समझ ना होने की वजह से इस पुजारी से स्वप्न को अनदेखा कर दिया लेकिन यह स्वप्न उसे बार बार आता रहा.. लेकिन जब बालक की तबियत बिगड़ी और स्थति असामान्य सी लगने लगी तब उस ने स्वप्न की बात गाँव के एक ओझा से बताई और फिर स्वप्न में बताई गई जगह पर गांव के सभी लोग पहुचे तो उसी जगह पर वैसी ही प्रतिमा दिखी जो सपने में देखी गई थी…
इस बात को लगभग 20 वर्ष से अधिक हो गये.. और 20 वर्ष पहले ही नदी किनारे से इन प्रतिमाओं को लाकर उनकी स्थापना की गई और पूजन शुरू किया गया.. लेकीन स्वप्न आने का सिलसिला नहीं थमा और इस तरह आज इस मंदिर में लगभग 108 प्रतिमाएं स्थापित है.. और हर प्रतिमा में भगवान् या भगवान् के प्रतीक की आकृति बनी हुई है..
ग्रामीणों की माने तो मंदिर में विराजी माता की सेवा करने वाले पुजारी बाबा पर माता की इतने कृपा है की पुजारी भी अद्रश्य शक्ति के संपर्क में रहते है और लोगो के कष्टों का निवारण करते है.. बड़ी बात यह है की यह पुजारी ना टो कोई ज्योतषी है ना ही कोई बाबा है बल्की कम उम्र से ही माँ की सेवा में लगे हुए है.. यही कारण है की ओडीसा, रायगढ, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे प्रदेशो से श्रद्धालू नवरात्री के समय यहाँ पहुचते है और अपनी मनोकामना पूर्ण करते है..
बताया जाता है की पुजारी के अन्दर अद्भुत शक्तिया समाहित हो जाती है और उस समय ही वो लोगो के कष्टों का निवारण करते है बाकी समय वो किसी समय आदमी जैसे ही बर्ताव करते है.. इतना ही नहीं जानकारी यह भी है की मंदिर में अधिक तादात में चढ़ने वाले फूल, बेलपत्री को भी पुजारी उस वक्त खुद ही खा जाते है और इससे उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है..गांव के एक यादव परिवार का तो मानना है की उनके बेटे को पुजारी ने मौत के मुंह से वापस लाया है और बड़ी ही श्रद्धा से ये परिवार मंदिर को मानता है.. बहरहाल नवरात्री आ चुकी है और इस वर्ष भी इस गाँव में भक्तों का तांता लगने लगा है.. और दूर दूर से लोग माँ के दर्शन को आ रहे है.. .