इंदौर. Indore Municipal Corporation: मध्य प्रदेश के इंदौर नगर निगम में फर्जी बिलों से हो रहे करोड़ों रुपये के घोटाले का मामला सामने आया है। पांच कंपनियों के ठेकेदारों ने फर्जी बिल लगाकर 28 करोड़ धोखाधड़ी को अंजाम दिया है। निगम की शिकायत के बाद एमजी रोड थाना पुलिस ने किया धोखाधड़ी सहित अन्य गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया है। बताया जा रहा है कि पुलिस जांच में अधिकारियों की भी मिलीभगत का खुलासा होगा।
क्या है पूरा मामला?
इंदौर नगर निगम में आए दिन घोटाले के मामले सामने आते हैं। कभी फाइलें चोरी हो जाती है, तो कभी फर्जी बिल लगाकर घोटाले किए जाते हैं। यह मामला ड्रेनेज लाइन बिछाई जाने के नाम पर घोटाला है। शहर में जिन स्थानों पर ड्रेनेज लाइन बिछाई नहीं गई, उनके नाम पर फर्जी बिल वी फाइल तैयार कर ली गई और भुगतान के लिए फार्म ने निगम के लेख विभाग को भेज दी। ऑडिट विभाग से बिल पास होने के बाद इस पूरे मामले में खुलासा हुआ जब अकाउंट विभाग ने ड्रेनेज विभाग से मामले की जानाकारी जुटाई ओर जांच की तो पता चला इन फाइलों के काम के लिए वर्क आर्डर जारी ही नहीं हुए, तो उनके बिल पास कैसे होने आ गए। पूरे मामले में नगर निगम ने पांच फर्म के खिलाफ एमजी रोड थाना में एफआईआर दर्ज कराई है।
अफसरों के फर्जी दस्तखत, कार से फाइलें तक गायब
दरअसल, नगर निगम में हुए 28 करोड़ रुपये का फर्जी बिल घोटाला इससे कहीं अधिक का होने की आशंका है। अफसरों को भी शक है कि ठेकेदारों की गैंग ऐसे कई मामलों में भुगतान करवा चुकी है। जमीन के अंदर हुए ऐसे कामों के लिए करोड़ों रुपये का भुगतान किया जा रहा था, जिनका वेरिफिकेशन आसान नहीं है। इस गैंग ने अफसरों के फर्जी दस्तखत ही नहीं किए, उनकी कार से फाइलें तक गायब करवाई हैं। यहां तक कि विभागीय आईडी और पासवर्ड का भी इस्तेमाल किया गया। फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद निगमायुक्त शिवम वर्मा ने मंगलवार को पांचों फर्म के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी।
जहां निगम में लंबे समय से लीगेसी फंड से भुगतान की व्यवस्था है। 2018 से 2022 के बीच हुए कामों के लंबित भुगतान इसी फंड से किए गए हैं। करीब तीन महीने पहले तत्कालीन निगमायुक्त हर्षिका सिंह के सामने जब करोड़ों रुपए के भुगतान की फाइलें पहुंचीं तो उन्होंने भी इस पर आपत्ति ली थी। जनसुनवाई में भी कुछ लोगों ने शिकायत की थी कि कुछ ठेकेदारों ने काम नहीं किया फिर भी उन्हें भुगतान किया जा रहा है। उनसे नाम मांगे तो इन पांचों फर्म के नाम सामने आए। जांच शुरू हुई तो ड्रेनेज विभाग के कार्यपालन यंत्री की गाड़ी से फाइलें तक चोरी हो गई। ड्रेनेज विभाग और लेखा शाखा से बिलों का सत्यापन करवाया गया। मेजरमेंट बुक में ईई के साइन थे जबकि इसमें उनके साइन नहीं होते हैं। नोटशीट तक नहीं मिली।
सीधे लेखा शाखा तक कैसे पहुंची फाइलें?
बड़ा सवाल यह है कि ये सभी फाइलें सीधे लेखा शाखा तक कैसे पहुंची, जबकि भुगतान के लिए कोई भी बिल विभाग की ओर से भेजे जाते हैं। यह भी स्पष्ट नहीं हो सका कि ई-नगर पालिका पर आईडी और पासवर्ड का इस्तेमाल कर बिलों की जानकारी किसने अपलोड की? यह बिल अधिक राशि के थे इसलिए गड़बड़ सामने आ गई। कार्यपालन यंत्री सुनील गुप्ता ने एफआईआर के आवेदन में लिखा है कि मैं नेजेल पेन का इस्तेमाल करता हूं, बॉल पेन का नहीं।
निगम में 50 करोड़ का घपला, 28 करोड़ के बिल रोके
जहा पांच साल पुरानी ड्रेनेज लाइन डालने के 20 कामों के लिए 28 करोड़ रुपये के बिल लेखा शाखा तक पहुंचे थे। अभी 28 करोड़ के भुगतान को रोकने की बात आ रही है, लेकिन माना जा रहा है कि फर्जीवाड़ा 40 से 50 करोड़ तक हो सकता है। पुराने भुगतान की जांच की जाए तो बड़ी गड़बड़ी सामने आ सकती है।
5 फर्म पर मामला दर्ज
नींव कंस्ट्रक्शन प्रोप्रा. मोहम्मद साजिद
ग्रीन कंस्ट्रक्शन प्रोप्रा. मोहम्मद सिदिकी
किंग कंस्ट्रक्शन प्रोप्रा. मो. जाकिर, 147 मदीनानगर
क्षितिज इंटरप्राइजेस प्रोप्रा. रेणु वडेरा, आशीष नगर
जाह्नवी इंटरप्राइजेस प्रोप्रा. राहुल वडेरा निवासी 12 आशीष नगर
पांचों ठेकेदारों ने 20 ड्रेनेज कार्यों के फर्जी दस्तावेज तैयार किए जो सीधे ऑडिट विभाग के पास पहुंचे। वहां से पास भी हो गए जबकि पांचों फर्म को वर्क ऑर्डर ही जारी नहीं हुए। इनसे जुड़े आवक और जावक क्रमांक भी फर्जी थे। जिन कार्यों के बिल प्रस्तुत हुए, उनका ठेका अन्य ठेकेदारों को मिला था। अनुबंध भी अन्य फर्मों के साथ हुए थे। मामले में जांच के बाद निगम में मौजूद अधिकारियों को भी मिली भगत का खुलासा होगा।
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