आज वे बहुत दु:खी हैं। इतने दु:खी कि सोफा भी उनके दु:ख में भावुक हो गया है। सोफे का नेताजी से और नेताजी का सोफे से बड़ा आत्मीय लगाव रहा है। नेताजी देशहित में जब भी दु:खी होते हैं, इसी सोफे में धंसते हैं और तब सोफा भी इतना दु:खी हो जाता है कि नेताजी को पुचकार कर कहना पड़ता है, ‘अब रुलाएगा क्या!’ आज दु:ख जायज भी है। पूरे लोकतंत्र पर कालिख जो पुत गई है। संसद का सबसे शर्मनाक दिन। उन्होंने तय कर लिया है कि वे दो दिन तक सोफे पर बैठकर ही दु:ख मनाएंगे। तो वे सोफे से तभी उठते, जब कोई टीवी चैनल वाला आता या कोई प्राकृतिक आपदा आती। आज उन्होंने मिर्च का भी बहिष्कार कर दिया है। इसलिए सुबह से उन्होंने सात-आठ बार केवल फलों का जूस ही लिया है। बीच-बीच में देशहित में थोड़ा-बहुत ड्राय फ्रूट्स जरूर ले लेते हैं। सेहत के लिए जरूरी है, क्योंकि दु:खी एक बार तो होना नहीं है। सेहत अच्छी होगी तभी तो राष्ट्रहित के मुद्दों पर दु:ख जता सकेंगे। खैर लंच तक आते-आते वे इस बात पर राजी हो गए कि चिकन-कबाब पर थोड़ी-सी मिर्च बुरक लेंगे। आखिर, जो हुआ उसमें मिर्च का क्या दोष भला। नेताजी ऐसे ही रहमदिल हैं।
शाम हो गई है और नेताजी दुख में गढ़े हुए हैं। नेताजी को इतना दु:खी देखकर हमसे रहा नहीं गया। हम उनके बंगले पहुंचे और दो-टूक कह दिया, ‘बहुत दु:खी हो लिए। बयान जारी हो गया। टीवी पर बाइट चल गई। और कितना दु:खी होंगे। दूसरों को भी दु:खी होने का मौका दीजिए। आप ही दु:खी होते रहेंगे तो बेचारे आपकी ही पार्टी के रामलालजी, श्यामलालजी जैसे युवा नेता क्या करेंगे? इनकी हमेशा शिकायत रहती है कि आप इन्हें दु:खी होने नहीं देते। खुद ही दु:खी हो लेते हैं।’
‘अरे हमें तो कभी बताया नहीं।’ नेताजी ने आश्चर्यमिश्रित दुख जताया। ‘अब आपका लिहाज रखकर कुछ बोलते नहीं बेचारे।’‘अरे, यह तो हमारी गलती है। हमें दूसरों का भी कुछ सोचना चाहिए था।’ नेताजी के कई दु:ख एक-दूसरे में गड्ड-मड्ड हो रहे हैं।‘खैर, उन्हें संदेशा पहुंचा दो कि आज रात आठ बजे के बाद से वे दु:खी हो लें। हम पर्याप्त दु:खी हो लिए हैं।’ नेताजी बोले।हमने मन ही मन सोचा। नेताजी धन्य हैं। दु:ख की घड़ी में भी दूसरों का कितना ख्याल रखते हैं। एकदम मानवता की मूर्ति।अपने वादे के अनुसार रात आठ बजते ही नेताजी सोफे से उठ गए। गम भुलाने वे चौथे माले पर बने विशेष कक्ष में चले गए हैं। ऊपर से कोई आवाज आई है। शायद कांच का कोई गिलास टूटा है।
जय