यदि हम मेडिकल साइंस के इतिहास में झांके तो हम चकित रह जायेंगे क्योंकि इसके इतिहास में हम उन तथ्यों को देख सकेंगे जो बहुत ज्यादा न सिर्फ रोचक हैं बल्कि रोमांचक भी हैं। आज की मेडिकल साइंस और उसके इलाज की पद्धति में व प्राचीनकाल के इलाज की पद्धति में आज जमीन-आसमान वाला फर्क आ चुका है। इस बात को कहीं से कहीं तक भी गलत नहीं कहा जा सकता। पूर्व समय में जो भी आविष्कार हुए थे वर्तमान समय में उनमें बहुत बड़ा फर्क आ चुका है। इसी तरह से मेडिकल साइंस के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्वकाल से लगातर वृद्धि होती रही है और इसके इलाज करने के तरीके भी पूर्वकाल से अब तक बहुत बदलाव आया है। आज हम आपको बता रहें हैं कि कैसे मध्यकाल और प्राचीनकाल में इलाज होता था और दवाइयों का निर्माण किया जाता था। आइये जानते हैं।
मानव हड्डियों तथा इंसानी मांस से बनती थी दवाइयां
सैकड़ो वर्ष पूर्व “एलिक्सर” नामक एक दवाई काफी प्रचलित थी, जिसको तत्कालीन चिकित्सक पेट में अल्सर, सिर में दर्द, बदन में दर्द आदि के लिए रोगी को देते थे पर बहुत कम लोग ही इस बात को जानते हैं कि इस दवाई में इंसानी खून, मांस तथा हड्डियां मिली होती थी इसलिए इसको “लाश से बनी दवा” भी कहते थे। इसके बाद आते हैं रोम देश के चिकित्सा पद्धति पर यहां के लोगों का मानना था कि खून का उपयोग करने से मानव के मिर्गी के दौरे खत्म हो जाते हैं। इसके अलावा 12 वीं शताब्दी में जो लोग दवा का निर्माण करते थे उनको ममी के पाउडर का स्टॉक रखने के लिए दिया जाता था। जिसका उपयोग वे दवा बनाने के लिए करते थे।