जल्द नौकरी हासिल करने या अत्यधिक महत्वाकांक्षा के चलते उम्मीदवार नौकरी मांगने के दौरान कई बार योग्यता संबंधी ऐसी जानकारी दे देते हैं, जो उनके पास होती ही नहीं। हकीकत सामने आने पर वे जॉब से तो वंचित हो ही जाते हैं, उनके आगे की राह भी कठिन हो जाती है। इसी मुद्दे पर संजीव चन्द की रिपोर्ट
शाइन डॉट कॉम के एक सर्वे के अनुसार वर्तमान समय में ज्यादातर संस्थान अपने कर्मचारियों द्वारा दिए जाने वाले शिक्षा संबंधी प्रमाण-पत्रों में गड़बड़ियों की समस्या से जूझ रहे हैं। एक कंपनी छोड़ दूसरी ज्वाइन करने पर दोनों में दी गई जानकारी में भी काफी अंतर देखने को मिल रहा है। यह सही है कि कंपनियां जॉब देते समय उम्मीदवार के पिछले तीन-चार साल का अनुभव, शैक्षिक योग्यता और अंतिम 4-5 साल का पता खंगालती हैं, लेकिन ज्यादातर कंपनियां सीनियर पद पर किसी को ज्वाइन कराते वक्त लचीला रुख अपनाती हैं। वे उम्मीदवार के प्रोफाइल व पैकेज को ही आधार बनाती हैं। सर्वे बताते हैं कि भारत ही नहीं, बल्कि ब्रिटेन और अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी ऐसे उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा है, जो बायोडाटा में अपनी उपलब्धियों, अनुभव और शैक्षिक योग्यताओं के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर लिखते हैं। बाद में वेरिफिकेशन के दौरान उनकी गलतियां उजागर होती हैं। इन नेगेटिव वेरिफिकेशन रिपोर्ट से न सिर्फ उनकी नौकरी जाती है, बल्कि इंडस्ट्री में उनकी प्रतिष्ठा भी धूमिल होती है।
झूठ ने मुश्किल किए हालात
ग्लोबलाइजेशन और जॉब मार्केट में कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते हर कंपनी चाहती है कि वह कुशल व प्रतिभाशाली कर्मचारियों को नियुक्त करे। देश में जितनी ज्यादा नौकरियां हैं, उससे कई गुना ज्यादा नौकरी ढूंढ़ने वाले लोग। हर साल देश में लगभग 23 लाख ग्रेजुएट पैदा होते हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर को उनकी पढ़ाई और स्किल्स के मुताबिक नौकरी नहीं मिल पाती।
एचआर कंसल्टिंग मैन पावर की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय कंपनियों में 61 प्रतिशत पद खाली हैं। सबसे ज्यादा अवसर सेल्स, आईटी, अकाउंटिंग, फाइनेंस व ऑफिस सपोर्ट जैसे सेक्टरों में मौजूद हैं। इनमें सही टैलेंट नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि आवेदन के समय उम्मीदवार अपनी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ा कर लिख रहे हैं या झूठी सूचनाएं दे रहे हैं।
रेज्यूमे में दें सही जानकारी
एक अच्छी नौकरी पाने की तलाश में जुटे उम्मीदवार कई बार अपने रेज्यूमे में भ्रामक सूचनाएं दे जाते हैं। इसके चलते उन्हें शर्मिंदगी का सामना भी करना पड़ता है। इसलिए यदि आप किसी नई नौकरी के लिए रेज्यूमे देने जा रहे हैं तो अपनी वर्तमान जिम्मेदारियों और उपलब्धियों के बारे में बताने से पहले विशेष सावधानी बरतें। जॉब की जरूरत के हिसाब से अपनी स्किल्स मैच कराएं। एक-एक बिन्दु का स्पष्ट उल्लेख करें, दूसरों का सीवी कॉपी करने से पहले बचें।
कानूनी कार्रवाई का खतरा
32 वर्षीय रोहन (बदला नाम) पर फर्जी बीएड डिग्री के आधार पर शिक्षक की नौकरी करते समय पकड़े जाने पर नौकरी से बर्खास्तगी और धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज हुआ। पुलिस से बचने के लिए आजकल वह फरार है। यह एक उदाहरण भर हो सकता है, पर रोहन जैसे असंख्य लोग इस तरह का फर्जीवाड़ा करते हैं। रेज्यूमे में गलत जानकारी देकर अच्छी नौकरी तो हासिल की जा सकती है, लेकिन पकड़े जाने पर नौकरी जाने के साथ-साथ कार्रवाई का खतरा मंडराता रहता है।
गलती आपकी, नुकसान कंपनी का
गलत सूचना देकर नौकरी हासिल करने वाले कर्मचारियों की मंशा कंपनी को नुकसान पहुंचाने की बेशक न हो, लेकिन वह उसकी कार्यनीति और परंपरा को गहरा नुकसान पहुंचा सकती है। गलत सूचना देकर नौकरी हासिल करने पर कंपनी को अपने प्रोजेक्ट में निवेश करने से पहले अयोग्य प्रोफेशनल्स की ट्रेनिंग में पैसा लगाना पड़ता है। इससे उनको भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ सकता है।
कंपनी की सुरक्षा की दृष्टि से घातक
अपने बारे में गलत सूचना देने वाले किसी भी ऐसे व्यक्ति को जिम्मेदार पद पर बैठाना कंपनी की सुरक्षा की दृष्टि से घातक हो सकता है। चूंकि कंपनियों को गोपनीय सूचनाएं या डेटा लीक होने का खतरा रहता है, इसलिए ज्यादातर कंपनियां किसी व्यक्ति को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने से पहले उसकी पूरी छानबीन कराती हैं। कोई कंपनी कभी नहीं चाहती कि ऐसे लोगों को अपने यहां जॉब दे, जिनकी बुनियाद ही झूठ के सहारे रखी गई हो।
हो रही है ऑनलाइन मॉनीटरिंग
आजकल कई ऐसे एप प्रचलन में हैं, जिनके जरिये उम्मीदवार अपनी योग्यता, अनुभव व अन्य विवरण ऑनलाइन भेज सकते हैं। इसके लिए आवेदनकर्ता और नियोक्ता दोनों का रजिस्ट्रेशन होना जरूरी है। इस आईडी नंबर के जरिये वे उम्मीदवार का पूरा वेरिफिकेशन कर सकते हैं। यह एप जल्द ही सोशल मीडिया ‘डिजिटल टैलेंट पूल’ के जरिये लोगों को नौकरी पर रखे जाने की प्रक्रिया में अहम भूमिका अदा करेंगे। कंपनियां भी एप्लिकेंट ट्रैकिंग सिस्टम का इस्तेमाल कर रही हैं, जो सीवी का विश्लेषण करता है।
बेरोजगारी से पनप रही समस्या
एक सर्वे के मुताबिक भारत में जितनी नौकरियां पैदा हो रही हैं, उनमें से करीब 90 प्रतिशत के लिए खास स्किल्स की जरूरत पड़ती है। इसकी ट्रेनिंग स्कूल-कॉलेज अथवा इंस्टीट्यूट में नहीं मिल पा रही, लिहाजा बड़ी आबादी बेरोजगारी का दंश झेल रही है। जल्दी नौकरी पाने की चाहत में उम्मीदवार कई बार झूठी सूचनाएं देकर नौकरी हासिल करने की कोशिश करते हैं या अपने नकारात्मक पहलुओं को छिपाने का प्रयास करते हैं।
इन रूपों में होती है हेराफेरी
क्वालिफिकेशन
उम्मीदवार आवेदन के दौरान कई बार ऐसी शैक्षिक योग्यता का जिक्र कर बैठते हैं, जो उनके पास होती ही नहीं या गलत तरीके से हासिल की गई होती है। ज्यादातर संस्थानों में आवेदन के दौरान ऐसा देखने को मिलता है। बैकग्राउंड चेकिंग फम्र्स के जरिये ऐसे फ्रॉड को पकड़ा जाता है।
फर्जी डिग्री
देश में कई ऐसे संस्थान चल रहे हैं, जिनकी मान्यता नहीं है या उनके कोर्स को संबंधित अथॉरिटी से मान्यता प्राप्त नहीं है। वहां की डिग्री फर्जी डिग्री की श्रेणी में आती है। कई बार अज्ञानता में तो कई बार जान-बूझ कर उम्मीदवार इन डिग्रियों का इस्तेमाल करते हैं।
सेलरी पैकेज
एक कंपनी से दूसरी कंपनी ज्वाइन करने पर सबसे अहम फैक्टर सैलरी पैकेज होता है। मोटा पैकेज पाने की चाहत में उम्मीदवार या तो अपनी स्लिप से छेड़छाड़ करते हैं या फर्जी सेलरी स्लिप बनवाते हैं। एचआर डिपार्टमेंट की छानबीन में इस तरह के मामले पकड़ में आ जाते हैं।
एक्सपीरिएंस
उम्मीदवार एक्सपीरिएंस सर्टिफिकेट के रूप में अकसर किसी ऐसे संस्थान से 2-3 साल का अनुभव दर्शाते हैं, जो वर्तमान में बंद हो चुका होता है या उसकी पुष्टि नहीं हो पाती। कई बार वे अनुभव के साल बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं। वे मान कर चलते हैं कि उनका खेल पकड़ में नहीं आएगा, पर वेरिफिकेशन में इस खेल से पर्दा उठ जाता है।
मैरिटल स्टेटस
सैन्य अथवा कई ऐसे सेवा क्षेत्र हैं, जिनमें अविवाहित उम्मीदवारों से आवेदन मांगा जाता है। ऐसे नौकरी के लिए विवाहित उम्मीदवार अकसर अपनी पहचान छुपा लेते हैं। इस आधार पर वे कई साल नौकरी भी कर लेते हैं। बैकग्राउंड अथवा एड्रेस वेरिफिकेशन में इसका पता चलता है।
क्रिमिनल रिकॉर्ड
उम्मीदवारों पर नौकरी के लिए आवेदन देने से पूर्व यदि कोई आपराधिक मामला दर्ज हुआ है तो वे आवेदन में इसका उल्लेख नहीं करते। इस तरह की प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों को कोई भी अपने यहां नहीं रखना चाहता। हेल्थकेयर व फाइनेंशियल कंपनियां ऐसी पृष्ठभूमि की जांच करवाती हैं।