नई दिल्ली. मोदी सरकार ने सोमवार को बड़ा फैसला लेते हुए आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में दस फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है. नए साल 2019 के सातवें दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सवर्ण आरक्षण के संबंध में संवैधानिक संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद विपक्षी दल अपने अपने हिसाब से इसका समर्थन और विरोध करने लगे हैं.
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एनसीपी प्रमुख शरद पवार की पार्टी NCP ने भी सवर्ण आरक्षण पर केंद्रीय कैबिनेट के प्रस्ताव का समर्थन किया है. सवर्ण आरक्षण पर एनसीपी के समर्थन के साथ ही पहले से ही गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की मांग करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री रहते हुए केंद्र सरकार को इस संबंध में पत्र भी लिख चुकी थी. उधर मायावती की ही तरह मोदी सरकार मे केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया रामविलास पासवान भी सवर्ण आरक्षण के पक्ष में रहे हैं. उन्होंने पिछले दिनो पटना में गरीब सवर्णों के पक्ष में 15 फीसदी आरक्षण देने की बात कही थी. इन नेताओ के साथ ही आरपीआई के अध्यक्ष और मोदी सरकार में मंत्री रामदास आठवले भी गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण की मांग करते रहे हैं. उन्होंने कहा था कि सवर्णों में सभी आर्थिंक रूप से सम्पन्न नहीं होते, इसलिए सवर्ण जातियों को 8 लाख रुपये की क्रीमीलेयर लगाकर 25 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए.
लेकिन मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसे चुनावी जुमला करार देते हुए कहा कि इससे मोदी सरकार बच नहीं पाएगी. इतना ही नही रावत ने शायराना अंदाज मे ये भी कहा है कि ‘बहुत देर कर दी मेहमान आते-आते.. साथ ही उन्होने कहा कि यह ऐलान ऐसे वक्त हुआ है जब चुनाव नजदीक है. वे कुछ भी कर लें, उनका कुछ नहीं होने वाला. कोई भी जुमला उछाल दें, उनकी सरकार नहीं बचने वाली है.