फ़टाफ़ट डेस्क। जिस तरह गीत के साथ संगीत का, सुर के साथ ताल का, ध्वनि के साथ तरंग का तालमेल होता है और इनकी जुगलबंदी सबकों मंत्र-मुग्ध कर देती है, ठीक उसी तरह ही छत्तीसगढ़ का व्यंजन है ,जो बनाने वाले के अदभुत पारम्परिक पाककला के साथ उनकी मीठी और भोली बोली के चाशनी में डूबकर आपकों गढ़ कलेवा में कुछ इस तरह मिलेगी कि आप इसे खाते ही कहेंगे। वाह मजा आ गया। निश्चित ही स्वाद के साथ मिठास भी आपको मिलेगा और एक बार खाने के बाद बार-बार खाने के लिए आपका मन ललचाएगा। गढ़ कलेवा में छत्तीसगढ़ी व्यंजन का हर वो जायका होगा जो आपको चीला, भजिया, फरा और लाल मिर्च या टमाटर की चटनी में खाते-खाते आंखों का पानी तो बाहर निकाल ही देंगे लेकिन आप इससे दूर नहीं होना चाहेंगे। यहाँ बनी अइरसा, खुरमी की मिठास आपकी मुंह की कडुवाहट को मिटाकर मुंह के जीभ को भीतर और बाहर घुमाने के लिए भी मजबूर कर देगी। मूंग बड़ा, दाल बड़ा, ठेठरी, गुलगुल भजिया, अंगाकर रोटी, भोभरा और विविध व्यंजन खाते ही आपको पंसद आने लगेंगे। जी, हां, यह सही भी हैं, क्योंकि यह सभी पकवान छत्तीसगढ़ की शान है तथा स्वाद और मिठास हर व्यंजन की पहचान है।
अब तक जो छत्तीसगढ़ी व्यंजन विशेष तीज-तिहार में या फरमाइश पर ही घर में बना करता था वह अब हर दिन आपके आसपास मिलने लगा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर राज्य के सभी जिला मुख्यालयों में गढ़कलेवा खुलकर तैयार है। उन्होंने सभी जिला मुख्यालय के मुख्य बाजार, गौरवपथ, राज्यमार्गों राष्ट्रीय राजमार्गों के समीप गढ़ कलेवा शुरू करने का निर्णय लिया और राज्य बजट में भी जिला मुख्यालयों में गढ़कलेवा केन्द्र खोलने के लिये स्व-सहायता समूहों को जरूरी सुविधायें, प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराने का प्रावधान किया। गढ़कलेवा में चीला, फरा, बफोरी, चौसेला, धूसका, उड़द बड़ा, मूंग बड़ा, हथखोड़वा, माडापीठा, भजिया, पान रोठी, गुलगुला भजियां, ठेठरी-खुरमी, करी लड्डू, बाबरा, पीडिया, मालपुआ, खाजा एवं तिखुर, टमाटर चटनी सहित अन्य व्यंजनों की बिक्री की जा रही है। राजधानी रायपुर के कलेक्टोरेट परिसर में गढ़कलेवा का संचालन करने वाली जागृति महिला स्व सहायता समूह की विनीता पाठक ने बताया कि सरकारी दफ्तर के पास गढ़कलेवा खुलने से न सिर्फ विभागीय अधिकारियों, कर्मचारियों को बल्कि यहां अपने किसी काम से शासकीय कार्यालय आने वाले आम लोगों को भी छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का स्वाद मिल रहा है। जशपुर जिले में गढ़कलेवा के साथ जंगल बाजार का संचालन किया जा रहा है। यहा स्थानीय शिल्पियों द्वारा निर्मित कलाकृतियों के साथ वन औषधि का विक्रय भी शुरू किया गया है। कांकेर जिला में को-आपरेटिव्ह समूह द्वारा बस स्टैण्ड परिसर में गढ़कलेवा का संचालन किया जा रहा है। 30 सदस्यों वाली इस समूह द्वारा मुर्गीपालन, कोसा, लाख सहित अन्य कार्य किए जा रहे हैं।
समूह की अध्यक्ष कलावती कश्यप ने बताया कि अधिकांश महिलाएं गांव से है। गढ़कलेवा प्रारंभ होने से पहले बेरोजगार थी। अब उन्हें एक तरह का रोजगार गढ़कलेवा के माध्यम से मिल गया है। कलावती ने बताया कि यहां बहुत कम कीमत पर छत्तीसगढ़ का पारम्परिक व्यंजन उपलब्ध है। लोग इन व्यंजनों को बहुत पसंद भी कर रहे हैं। मुंगेली में गणेश स्व-सहायता समूह, सूरजपूर में लक्ष्मी स्व-सहायता समूह, गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही में शांभवी स्व-सहायता समूह सहित अन्य जिलों में भी गढ़कलेवा का संचालन से जुड़ी महिला स्व-सहायता समूह की सदस्यों को विश्वास है कि आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की लोकप्रियता खाने वालों के बीच लगातार बढ़ती ही जाएगी।
गढ़कलेवा के संचालन को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री, संस्कृति मंत्री जितने गंभीर है उतना ही जिला प्रशासन भी इसमें अपनी भागीदारी निभा रहा है। महिला स्व-सहायता समूहों को गढ़कलेवा संचालन के लिए निश्चित स्थान उपलब्ध कराने और महिलाओं को प्रोत्साहित करने में भी जुटे हुए हैं। कोरबा जिला में कलेक्टोरेट परिसर में गढ़कलेवा का संचालन तो किया ही जा रहा है। यहा आने वाले दिनों में गढ़कलेवा को विशेष पहचान दिलाने के साथ ही पारम्परिक व्यंजनों का स्वाद अधिक से अधिक लोगों तक पहुचाने महत्वपूर्ण व्यावसायिक स्थल घण्टाघर चौक के चौपाटी के पास भी संचालित करने की योजना है।
सूरजपुर जिले में गढ़कलेवा को विशेष पहचान दिलाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा ग्राम तिलसिवां में एक एकड़ भूमि भी चिन्हांकित की गई है। जगदलपुर में आमचो बस्तर कैंटीन के जरिए नक्सल प्रभावित महिलाओं द्वारा छत्तीसगढ़ी व्यंजन का स्वाद उपलब्ध कराया जा रहा है। ग्रामीण महिलाओं को स्व-सहायता से जोड़कर उन्हें स्व-रोजगार की दिशा में जोड़ने वाली लक्ष्मी सहारे का कहना है कि गढ़कलेवा का राज्य भर में संचालन होने से महिलाओं को लाभ हुआ है।
बेरोजगार महिलाओं को समूह में जोड़कर, बैंक से लिंक करना, उनकी बैठक करना, प्रशिक्षण देना और गढ़कलेवा के माध्यम से नई संभावनाओं की ओर ले जाना आसान हो गया है। निश्चित ही आने वाले दिनों में गढ़कलेवा से छत्तीसगढ़ के पारम्परिक व्यंजनों की पहचान बढ़ेगी और छत्तीसगढ़ की महिलाएं आत्मनिर्भर बनने के साथ अपनी सफलता और राज्य के विकास का इतिहास गढ़ेगी।
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