[highlight color=”red”]पं. प्रांजल शुक्ला [/highlight][highlight color=”black”]कोरबा छत्तीसगढ़[/highlight]
बरसात
आँगन पे सावन की आई बहार,
रिमझिम रिमझिम की फुहार,,
बरसे रे बदरिया कही धुँवाधार,
सरिता पे सदा की तरह तेज चली जब धार,,
हरित हो गयी और ही हरियाली,
चारो ओर छाई जब कही खुशहाली,,
ऑसमा पे घटा छा रही उमड़ उमड़ कर काली,
सुबह की भोर कहा गयी वो लाली,,
बाग पे महक,रौनक देख रहा कही माली,
सागर तैयार वो ही अब सबको कही सम्हाली,,
आँगन पे सावन की आई कही बहार,
रिमझिम,रिमझिम की आई फुहार,,
बरसात पे बढ़ी हुई कही सरिता की बरकत,
खूब पूरी होती कही उसकी जब हसरत,,
सागर भी खूब पी रहा कही आज शरबत,
हरितक्रांति के लिए खड़ा आज कही हर पर्वत,,
सूरज भी कही आज खोला नही राज,
सावन महीने के सर पर आज होगी ताज,,
हवाओ की रुख से आज हो रही हमे अंदाज,
कोयल भी बिखेर रही अपनी कही आवाज,,