यूँ ही नहीं एवन हैं मध्यप्रदेश के वन

सुनीता दुबे

क्षेत्रफल ही नहीं वन्य-प्राणी संरक्षण गुणवत्तापूर्ण वन प्रबंधन, आधुनिक तकनालॉजी के उपयोग में भी देश में सिरमौर है मध्यप्रदेश के वन। वन विभाग के प्रयासों ने मध्यप्रदेश को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय-स्तर के पुरस्कार भी दिलाये। प्रस्तुत हैं मध्यप्रदेश वन विभाग द्वारा पिछले एक दशक के दौरान किये गये कुछ प्रयास।

  • वनों के संवर्धन हेतु वर्ष 2003-04 में 2.5 करोड़ से भी कम पौधे रोपित किये गये, जिनके विरुद्ध वर्ष 2012-13 में हरियाली कार्यक्रम के अंतर्गत 12 करोड़ से अधिक पौधे रोपे गये।

  • नवीं पंचवर्षीय योजना में आयोजना बजट 665 करोड़- 12वीं पंचवर्षीय योजना में 4222 करोड़।

  • वर्ष 2003-04 आयोजना बजट 240.16 करोड़-वर्ष 2013-14 में 942.60 करोड़।

  • नौ वर्ष के दौरान बजट प्रावधान में 400 प्रतिशत की वृद्धि।

  • वन क्षेत्रों में बाँस की पुनर्स्थापना के लिये वर्ष 2010 बाँस वर्ष घोषित। पाँच करोड़ बाँस पौधे रोपे गये।

  • आदिवासियों की आर्थिक सुदृढ़ता के लिये वर्ष 2011 महुआ वर्ष घोषित। 13 लाख महुआ के पॉलीथीन पौधों, 30 लाख बीज के माध्यम से रोपण।

  • खमेर वर्ष 2012 में 46 लाख पौध-रोपण। खमेर काष्ठ को परिवहन अनुज्ञा-पत्र से मुक्त किया गया। इमारती लकड़ी का वृक्ष खमेर कम समय में किसानों को महती आर्थिक लाभ देता है।

  • वानिकी गतिविधियों से प्रतिवर्ष औसतन 6.8 करोड़ मानव दिवस रोजगार।

  • बाँस, चारा उत्पादन, टसर एवं लाख उत्पादन के माध्यम से एक लाख से अधिक ग्रामीण को आजीविका।

  • टसर खेती में 2000 हेक्टेयर से 26 हजार 346 हेक्टेयर तक की वृद्धि। 31,470 हितग्राही लाभान्वित। लाख उत्पादन एक दशक में छह गुना बढ़ा।

  • वृक्षारोपण के मूल्यांकन की प्रक्रिया को वेबसाइट पर उपलब्ध कराकर पारदर्शी बनाया गया।

  • वैज्ञानिक वन प्रबंधन के कारण वन राजस्व वर्ष 2002-03 के 509.96 करोड़ के विरुद्ध वर्ष 2012-13 में 989 करोड़ हुआ।

  • राज्य के 11 काष्ठागारों को आईएसओ प्रमाणीकरण 9001:2000 प्राप्त है।

  • बाँस एवं बाँस-शिल्पियों के हित के लिये बाँस-शिल्पी पंचायत का आयोजन, बाँस-शिल्पी बोर्ड और बाँस विकास मिशन स्थापित।

  • वन्य-प्राणियों द्वारा फसल हानि किये जाने पर वर्ष 2008-09 से क्षतिपूर्ति भुगतान की व्यवस्था लागू की गई।

  • नीलगाय एवं कृष्ण मृग द्वारा फसल क्षति करने पर 5 किलोमीटर की परिधि का प्रावधान समाप्त किया गया।

  • वन्य-प्राणियों द्वारा जन-हानि, जन-घायल तथा पशु-हानि प्रकरणों में क्षतिपूर्ति की दरों को दुगना किया गया।

  • अब जन-हानि पर डेढ़ लाख रुपये, स्थायी अपंगता पर एक लाख रुपये एवं इलाज व्यय, घायल होने पर 30 हजार रुपये क्षतिपूर्ति का प्रावधान। यह लोकसेवा प्रदान की गारंटी 2010 में भी शामिल है।

  • कान्हा, बाँधवगढ़ एवं पेंच टाइगर रिजर्व में विशेष बाघ सुरक्षा-बल गठित।

  • सतना जिले के मुकुंदपुर में चिड़ियाघर एवं रेस्क्यू सेंटर की स्थापना का कार्य प्रारंभ।

  • माधव राष्ट्रीय उद्यान, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व तथा ओरछा अभयारण्य के 919 परिवारों के पुनर्वास के लिये 84 करोड़ 31 लाख और कान्हा टाइगर रिजर्व के लिये 38.57 करोड़ उपलब्ध कराये गये।

  • पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों को पुन: स्थापित करने में अभूतपूर्व सफलता मिली। आज यहाँ 5 वयस्क, 13 अवयस्क और 6 बाघ-शावक हैं।

  • कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से 50 गौर बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में पुनर्स्थापित। बाँधवगढ़ में 90 के दशक में यह प्रजाति समाप्त हो चुकी थी। पुनर्स्थापना के बाद पिछले 2 साल में यहाँ 18 गौर बच्चों ने जन्म लिया।

  • वन्य-प्राणी संरक्षण के प्रयासों को राष्ट्रीय-स्तर पर सराहना। वर्ष 2006 में पन्ना टाइगर रिजर्व, वर्ष 2007 में पेंच टाइगर रिवजर्व को सर्वश्रेष्ठ टूरिस्ट फ्रेण्डली पार्क का पुरस्कार। वर्ष 2010 में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को टूरिस्ट फ्रेण्डली वाइल्ड लाइफ डेस्टीनेशन, वर्ष 2012 में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान को रहवास प्रबंधन, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को ग्रामों के विस्थापन और पन्ना टाइगर रिजर्व को सक्रिय प्रबंधन के लिये पुरस्कार मिला।

  • वन ग्राम कोटवारों का मानदेय 65 रुपये से बढ़ाकर वर्ष 2008 से 1500 रुपये प्रतिमाह किया गया।

  • बाँस के विदोहन में लगे श्रमिकों को विदोहन से प्राप्त शुद्ध लाभांश को 20 प्रतिशत से बढ़ाकर शत-प्रतिशत नगद वितरित करने के निर्णय से वर्ष 2012-13 में श्रमिकों को 8.99 करोड़ का लाभांश मिला।

  • वनवासियों को काष्ठ एवं बाँस से मिलने वाला लाभांश, जो वर्ष 2002-03 में 3.93 करोड़ था, वर्ष 2012-13 में 33.45 करोड़ हो गया।

  • संयुक्त वन प्रबंधन के लिये गठित वन-समितियों में अध्यक्ष पद के एक तिहाई पद महिलाओं के लिये आरक्षित किये गये।

  • जलाऊ लकड़ी पर निर्भरता कम करने और समय बचाने के लिये वन-समितियों के सदस्यों को 1,12,413 कम्बल, 15 हजार 218 एलपीजी गैस कनेक्शन, 38 हजार 673 प्रेशर-कुकर उपलब्ध कराये गये। बचे हुए समय का उपयोग वनवासी अन्य कार्यों में कर अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर रहे हैं। वन-समिति के सदस्यों को सामुदायिक उपयोग के बर्तन सेट, साइकिलें, सिलाई मशीन भी उपलब्ध कराये गये।

  • वन-समितियों द्वारा दूरस्थ अंचलों में 713 राशन-दुकानों का संचालन, 9,898 नये राशन-कार्ड वितरित।

  • वन प्रबंधन समितियों के सदस्यों को 15 हजार क्रेडिट-कार्ड का वितरण।

  • वन संरक्षण तथा वन संवर्धन के प्रयासों में जन-भागीदारी को जोड़ने के लिये बसावन मामा स्मृति वन एवं वन्य-प्राणी संरक्षण पुरस्कार योजना प्रारंभ।

  • पहली वन पंचायत 6 फरवरी, 2007 को भोपाल में आयोजित।

  • संयुक्त वन प्रबंधन में 15 हजार 288 वन-समितियाँ गठित कर 68 हजार 874 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्रों का प्रबंधन। गत 9 वर्ष के दौरान इन समितियों को 90 करोड़ 97 लाख का लाभांश वितरित।

  • वर्ष 2003-04 में लोक-वानिकी एवं पौधा तैयारी योजना का बजट 163.20 लाख था, जो वर्ष 2013-14 में 2350 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 4000 लाख हुआ।

  • पौधा तैयारी में 545 प्रतिशत की वृद्धि। वर्ष 2003-04 में 82.01 लाख पौधे के विरुद्ध वर्ष 2012-13 में 529 लाख नये पौधे तैयार किये गये।

  • निजी भूमि पर वृक्षारोपण प्रोत्साहन की किसान लक्ष्मी योजना वर्ष 2013-14 से लागू की गई, जिसमें प्रतिवर्ष 20 लाख पौधे निजी भूमि पर रोपित किये जायेंगे।

  • यूनाईटेड नेशन्स एन्वायरमेंट प्रोग्राम द्वारा मध्यप्रदेश वन विभाग को पर्यावरण के प्रति उल्लेखनीय कार्य के लिये ग्रीन ग्लोब फाउण्डेशन अवार्ड-2011 प्रदान किया गया।

  • फारेस्ट सर्वे ऑफ इण्डिया द्वारा जारी प्रतिवेदन के अनुसार वन आवरण बरकरार है, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह वन आवरण देश में सबसे बड़ा है।

  • वन प्रबंधन में वर्ष 2000 से आरंभ किये गये सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयासों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय-स्तर पर सराहना और अनेक पुरस्कार मिले।

  • भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी के अभिनव प्रयोग के लिये मध्यप्रदेश के वन विभाग को वेब-रत्न अवार्ड दिया। साथ ही वर्ष 2009 में दक्षिण एशिया मंथन अवार्ड, डाटा क्वेस्ट ई-चेम्पियनशिप अवार्ड, बेस्ट एप्लीकेशन अवार्ड मिला। वर्ष 2010 में वर्ल्ड समिट ग्लोबल अवार्ड, सीएसआई निहिलेंट, ई-गवर्नेंस अवार्ड, ईएमपीआई, इण्डियन एक्सप्रेस पुरस्कार, वर्ष 2012 में जीआईएस अवार्ड, मेप-आई.टी. अवार्ड, जनवरी, 2013 में इण्डिया जियो स्पेसियल एक्सीलेंस अवार्ड मिला।

  • वन संसाधनों के बेहतर प्रबंधन और ग्रामीणों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये प्रदेश की पहली नीति-2005 जारी की गई।

  • वन सुरक्षा कार्यों में शहीद कर्मचारियों के परिवार को वर्ष 2003 में दी जाने वाली सहायता राशि एक लाख से बढ़ाकर 10 लाख रुपये की गई।

  • वर्ष 2004 से वन-कर्मचारियों को कानूनी सुरक्षा प्रदाय की गई और मुखबिरों को 25 हजार रुपये तक पुरस्कृत करने का प्रावधान किया गया।

  • अति-संवेदनशील वन क्षेत्रों में सामूहिक गश्त हेतु 329 वन चौकी स्थापित की गईं और वन-कर्मचारियों को पम्प एक्शन गन एवं रिवाल्वर प्रदाय किये गये।

  • निजी भूमि पर वृक्षारोपण प्रोत्साहित करने के लिये बबूल एवं खमेर प्रजाति के वृक्षों की लकड़ी को परिवहन अनुज्ञा-पत्र की अनिवार्यता से मुक्त किया गया।

  • वन सुरक्षा प्रणाली सुदृढ़ हुई। अब जंगल में आग लगने की सूचना मोबाइल नेटवर्क तथा उपग्रह आधारित फायर अलर्ट मेसेजिंग सिस्टम के माध्यम से संबंधित क्षेत्रीय वन अधिकारी और कर्मचारी के मोबाइल पर तत्काल पहुँचा दी जाती है। राष्ट्रीय-स्तर पर महती सराहना प्राप्त इस प्रौद्योगिकी का दूसरे राज्य- केरल, गुजरात, उत्तरप्रदेश आदि को भी मार्गदर्शन दिया जा रहा है।

  • वन अपराध की सूचना देने के लिये भोपाल में राज्य-स्तरीय वन अपराध सूचना केन्द्र की स्थापना।

  • राज्य शासन द्वारा वर्ष 2008 में वनवासियों पर दर्ज प्रकरण लेने का निर्णय। करीब 88 हजार मामूली प्रकरण वापस लिये गये।

  • वन अपराधों पर अंकुश लगाने के लिये जुर्माने की राशि 1000 से बढ़ाकर 15 हजार रुपये की गई।

  • पिछले 20 वर्ष से ‍बंद वन-कर्मियों की सामान्य भर्ती पर लगी रोक हटी। 5,642 वन-रक्षक की और 314 वन-क्षेत्रपालों की भर्ती की कार्यवाही की गई।

  • स्थानीय ग्रामीणों को कौशल विकास द्वारा नियमित रोजगार उपलब्ध कराने के लिये वर्ष 2012-13 में 12 हजार लोगों को विभिन्न विधाओं में प्रशिक्षण दिलाया गया।

  • देश की चौथी कार्बन फ्लक्स टॉवर की स्थापना भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के सहयोग से बैतूल जिले में की गई। टॉवर द्वारा एक साल से कम समय में 16 टन कार्बन का अवशोषण किया गया।

  • वर्ष 2002 में तेंदूपत्ता संग्राहकों को मात्र 8.25 करोड़ की प्रोत्साहन राशि प्राप्त होती थी। नीति परिवर्तन के फलस्वरूप वर्ष 2012 में बढ़कर 244.55 करोड़ हो गई। वर्ष 2004 में तेंदूपत्ता की अग्रिम निवर्तन पद्धति प्रारंभ होने से भी संग्राहकों को अधिक आय हुई है।

  • तेंदूपत्ता संग्रहण पारिश्रमिक की दरों में विशेष वृद्धि। वर्ष 2004 में 400 रुपये प्रति मानक बोरा के विरुद्ध वर्ष 2013 में 950 रुपये प्रति मानक बोरा किया गया।

  • वनवासियों की लघु वनोपज को बाजार उपलब्ध कराने के लिये राष्ट्रीय वन मेले को वर्ष 2011 से अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप दिया गया।

  • अराष्ट्रीयकृत लघु वनोपज के संग्रहण में बिचौलियों के शोषण से मुक्त कराने के लिये पहली बार प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर महुआ फूल, महुआ, गुल्ली, लाख, अचार गुठली, करंज बीज, नीम बीज तथा हर्रा के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किये गये।

  • औषधि पौधों को बढ़ावा देने के लिये प्र-संस्करण केन्द्र खोले गये। हर्बल उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा देने के लिये प्रदेश में स्थित साँची के 3700 केन्द्र के माध्यम से विक्रय करने का निर्णय लिया गया।

  • तेंदूपत्ता संग्राहकों के बच्चों की शिक्षा के लिये वर्ष 2010 से एकलव्य शिक्षा विकास योजना आरंभ की गई, जिसमें वर्ष 2010-11 में 1061 छात्र-छात्राओं को 46.85 लाख और वर्ष 2011-12 में 789 छात्र-छात्राओं को 35.28 लाख की छात्रवृत्ति दी गई।

  • मध्यप्रदेश राज्य वन विकास निगम द्वारा विगत 9 साल में एक लाख 4,869 हेक्टेयर क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता एवं उत्पादकता के वन लगाये गये।

  • ईको-पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2005 में देश के पहले ईको-पर्यटन विकास बोर्ड का गठन किया गया। इसके माध्यम से लोगों में वनों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार दिया जा रहा है।