मध्यप्रदेश में अंधेरा बीती बात…..

ताहिर अली

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मध्यप्रदेश सरकार ने बिजली क्षेत्र के विकास को एक चुनौती तथा संकल्प के रूप में लेते हुए इसे अपनी प्राथमिकता में रखा है। इसी का सुफल है कि जहाँ विद्युत उत्पादन की स्थापित क्षमता में वृद्धि हुई है, वहीं प्रदेश बिजली के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनने की ओर अग्रसर है। सरकार ने विद्युत उपलब्धता सुनिश्चित किये जाने के साथ-साथ ट्रांसमिशन तथा वितरण प्रणाली के उन्नयन तथा सुदृढ़ीकरण किये जाने के फलस्वरूप अटल ज्योति अभियान में प्रदेश के सभी 50 जिलों में वर्ष 2013 में सभी गैर-कृषि उपभोक्ता को 24 घंटे तथा कृषि उपभोक्ताओं को 10 घंटे गुणवत्तापूर्ण समुचित विद्युत उपलब्ध कराने के चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को तय किया है।

प्रदेश में विद्युत की माँग और उपलब्धता के अंतर को दूर करने तथा बढ़ती हुई माँग को ध्यान में रखते हुए विद्युत उपलब्धता क्षमता बढ़ाने के लिये किये गये सघन प्रयासों के फलस्वरूप विगत 10 वर्ष के दौरान उपलब्धता में 5982 मेगावॉट की वृद्धि हुई है। इससे प्रदेश की कुल विद्युत उपलब्ध क्षमता बढ़कर 10 हजार 655 मेगावॉट हो गई है। वित्तीय वर्ष 2013-14 में 6,142 करोड़ यूनिट विद्युत आपूर्ति होगी, जिसमें एक यूनिट भी लघु अवधि विद्युत क्रय से नहीं की जायेगी। यह आपूर्ति गत वित्तीय वर्ष की तुलना में 29 प्रतिशत ज्यादा होगी तथा दीर्घकालीन 25 वर्ष विद्युत क्रय अनुबंध से उपलब्ध होगी। वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिये सरकार ने यह व्यवस्था भी की है कि कुल आकलित विद्युत की माँग 60641 मिलियन यूनिट के विरुद्ध कुल 64145 मिलियन यूनिट बिजली की उपलब्धता रहे। राज्य में अब तक किये गये दीर्घकालीन अनुबंध के आधार पर ही आगामी वर्ष 2018 तक विद्युत सरप्लस की स्थिति में बनी रहेगी।

वित्तीय वर्ष 2012-13 में गत वर्ष की तुलना में उपभोक्ताओं को लगभग 11 प्रतिशत अधिक विद्युत प्रदाय किया गया है। इस अवधि में 9,484 मेगावॉट अधिकतम विद्युत की माँग की आपूर्ति की गई, जो प्रदेश के इतिहास में सर्वाधिक है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में राज्य क्षेत्र की मध्यप्रदेश पॉवर जनरेटिंग कम्पनी लिमिटेड की सतपुड़ा ताप विद्युत गृह की 250-250 मेगावॉट क्षमता की दो विस्तार इकाइयों तथा श्री सिंगाजी ताप विद्युत गृह की प्रथम चरण में 600-600 मेगावॉट की दो इकाइयों को क्रियाशील किये जाने का कार्यक्रम है। इनमें से 250 मेगावॉट सतपुड़ा ताप विद्युत गृह की एक इकाई क्रियाशील की जा चुकी है। शेष तीन इकाइयों को भी इसी वित्तीय वर्ष में क्रियाशील किया जायेगा।

राज्य शासन ने सारणी स्थित सतपुड़ा ताप विद्युत गृह क्रमांक-1 की 5x62.5 मेगावॉट इकाइयों की डिकमीशनिंग के बाद 660 मेगावॉट की एक इकाई की स्थापना के लिए अनुमोदन प्रदान किया है। इसकी अनुमानित लागत 4565 करोड़ है। इसी तरह 1200 मेगावॉट की निर्माणाधीन श्री सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना की इकाई क्रमांक-1 तथा 2 का बॉयलर हाइड्रोलिक टेस्ट, कण्डेण्सर इरेक्शन तथा टरबाइन इरेक्शन जैसे प्रमुख माइलस्टोन प्राप्त किया जा चुके हैं। शेष कार्य प्रगति पर है। परियोजना पर अभी तक लगभग 5370 करोड़ रुपये व्यय किये जा चुके हैं।

देश में एक स्थान पर सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयंत्र नीमच में लग रहा है। इससे भी 130 मेगावॉट विद्युत उपलब्ध होगी। निजी पूँजी निवेश से स्थापित होने वाले ताप विद्युत संयंत्रों में से 1805 मेगावॉट विद्युत का उत्पादन प्रारंभ हो गया है। साथ ही 4905 मेगावॉट क्षमता का उत्पादन वर्ष 2014-15 तक होने लगेगा। इस वर्ष मध्यप्रदेश पॉवर जनरेटिंग कम्पनी की 250 मेगावॉट की सतपुड़ा में नई इकाई से विद्युत उत्पादन शुरू कर दिया गया है। इस वर्ष कम्पनी की उत्पादन क्षमता बढ़कर 534 मेगावॉट हो जायेगी।

प्रदेश में विद्युत उपलब्धता में वृद्धि के अनुरूप ट्रांसमीशन प्रणाली के उन्नयन एवं सुदृढ़ीकरण के लिये व्यापक कार्य निष्पादित किये जा रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2012-13 में 706 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमीशन लाइनों तथा 2186 एम.व्ही.ए. क्षमता के अति उच्च-दाब उप-केन्द्र के कार्य पूर्ण किये गये। साथ ही 1608 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनों एवं 3302 एम.व्ही.ए. क्षमता के अति उच्च-दाब उप-केन्द्रों से संबंधित कार्य किये जाने का कार्यक्रम भी बनाया गया है। वर्तमान में प्रदेश में ट्रांसमिशन प्रणाली की 3.30 प्रतिशत हानियाँ देश में न्यूनतम-स्तर पर हैं। ट्रांसमिशन प्रणाली की उपलब्धता भी नियामक आयोग द्वारा निर्धारित मानक से करीब 99 प्रतिशत ज्यादा है।

वर्ष 2012-13 में ताप विद्युत गृहों का पीएलएफ 66.47 प्रतिशत रहा, जबकि वर्ष 2011-12 में 61.38 प्रतिशत था। इस तरह पीएलएफ में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ताप विद्युत गृहों में ईंधन की खपत में भी उल्लेखनीय सुधार परिलक्षित हुआ है। वर्ष 2012-13 में तेल खपत 3.62 मिलीलीटर इकाई से घटकर 2.97 मिलीलीटर प्राप्त हुई है।

मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कम्पनी में जल विद्युत गृहों की कुल स्थापित क्षमता 915 मेगावाट है। जिसमें गाँधी सागर जल विद्युत, पेंच जल विद्युत गृह, रानी अवंती बाई जल विद्युत गृह, बरगी, टोन्स जल विद्युत गृह सिरमौर, राजघाट जल विद्युत गृह चन्देरी, मड़ीखेड़ा जल विद्युत गृह इत्यादि सम्मिलित है। इस वित्तीय वर्ष में 31 जुलाई 2013 तक जल विद्युत गृहों का कुल उत्पादन 9617 लाख यूनिट रहा है जो पिछले वर्ष के समान अवधि के विद्युत उत्पादन 7318 लाख यूनिट से 31.41 प्रतिशत अधिक है इस वर्ष अच्छे मानसून के कारण जल विद्युत गृहों से संबंधित बाँधों में जल-स्तर पिछले वर्ष से अधिक है एवं मानसून की प्रगति को देखते हुए यह पूरी संभावना है कि जल विद्युत गृहों से संबंधित बाँध अपने पूर्ण जल स्तर तक भरेंगे।

वितरण के क्षेत्र में भी फीडर विभक्तिकरण योजना, राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना, आरएपीडीआरपी आदि योजना में अधोसंरचना सुदृढ़ीकरण के कार्य किये जा रहे हैं। विद्युत प्रदाय की गुणवत्ता में सुधार के लिये वित्तीय वर्ष 2012-13 में वितरण कम्पनियों द्वारा 33/11 के.व्ही. के 132 नये उप-केन्द्र स्थापित किये गये हैं। साथ ही 476 उप-केन्द्र में पॉवर ट्रांसफार्मर की क्षमता वृद्धि के साथ-साथ 308 अतिरिक्त पॉवर ट्रांसफार्मर स्थापित किये गये हैं। इन कार्यों के परिणामस्वरूप विद्युत प्रदाय की गुणवत्ता में व्यापक सुधार परिलक्षित हुआ है।

कृषकों की सुविधा के लिये लागू की गई स्थाई पम्प कनेक्शन की अनुदान योजना में अभी तक लगभग 40 हजार से अधिक कृषक लाभान्वित हुए हैं। वित्तीय वर्ष 2013-14 में योजना के लिये 223 करोड़ की राशि का प्रावधान किया गया है। किसानों को विद्युत बिलों में राहत देने के लिये राज्य शासन द्वारा स्थाई मीटरीकृत कृषि पम्पों के लिये फ्लेट रेट योजना एक अप्रैल, 2013 से लागू की है। इसमें किसानों को विद्युत नियामक आयोग द्वारा लागू की गई विद्युत दरों में से मात्र 1200 प्रति हॉर्स-पॉवर प्रतिवर्ष की दर से वर्ष में 2 बार विद्युत बिलों का भुगतान किया जाना है। शेष राशि का वहन राज्य शासन द्वारा सबसिडी के रूप में किया जा रहा है। किसानों को विद्युत दरों में राहत देने के लिये राज्य शासन द्वारा वित्तीय वर्ष 2013-14 में भी इसके लिये 1200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

कृषकों के पुराने बिलों की बकाया राशि के निराकरण के लिये भी राज्य शासन द्वारा किसान समृद्धि योजना लागू की गई है। इसमें 28 फरवरी 2013 की स्थिति में स्थाई कृषि पम्पों पर बकाया राशि में से विद्युत वितरण कम्पनियों द्वारा सरचार्ज की पूरी राशि माफ करने पर कृषकों द्वारा मूल राशि के बकाया का मात्र 50 प्रतिशत ही भुगतान करना है। शेष 50 प्रतिशत राशि का वहन सबसिडी के रूप में राज्य शासन द्वारा किया जा रहा है। बीपीएल घरेलू उपभोक्ताओं के बिजली बिलों की बकाया राशि को माफ करते हुए इसमें से सरचार्ज तथा शेष बकाया राशि का 50 प्रतिशत वितरण कम्पनियों द्वारा तथा शेष 50 प्रतिशत राज्य शासन द्वारा वहन किया जा रहा है। इससे करीब 28 लाख बीपीएल उपभोक्ता लाभान्वित होंगे।

विद्युत परिदृश्य कल, आज और कल

ऊर्जा के क्षेत्र में विगत 10 वर्ष में अनेक उपलब्धियाँ हासिल की गई हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण विद्युत उत्पादन क्षमता का बढ़ाना है। वर्ष 2003 में दीर्घकालीन विद्युत क्रय अनुबंध से उपलब्ध विद्युत की कुल क्षमता 4,673 मेगावॉट थी, जो मार्च, 2013 में बढ़कर 10 हजार 480 मेगावॉट हो गई है। मार्च, 2014 तक 14 हजार 834 मेगावॉट हो जायेगी तथा वर्ष 2018 में यह क्षमता बढ़कर 20 हजार 199 मेगावॉट होगी। वर्ष 2003 में 2709 करोड़ यूनिट विद्युत प्रदाय हुई थी, जो मार्च, 2014 में बढ़कर 6,142 करोड़ यूनिट हो जायेगी।

प्रदेश में ट्रांसमिशन प्रणाली की क्षमता में भी वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2003 में ट्रांसमिशन प्रणाली की क्षमता 3890 मेगावॉट थी, जो मार्च, 2013 में 10 हजार 361 मेगावॉट तक पहुँच चुकी है। साथ ही 33/11 के.व्ही. विद्युत ग्रिड में लगे पॉवर ट्रांसफार्मर की संख्या वर्ष 2003 में 2680 थी, जो इस वर्ष 4,793 हो गई है। वर्ष 2003 में 11 के.व्ही. लाइनों की लम्बाई 1.59 लाख किलोमीटर थी, जो बढ़कर 2.52 लाख किलोमीटर हो गई है। वितरण ट्रांसफार्मर की संख्या 1.65 लाख से बढ़कर 4.56 लाख, उपभोक्ताओं की संख्या 63.96 लाख से बढ़कर एक करोड़ 4 लाख हो गई है।

तब और अब

प्रदेश में एक दशक पूर्व एनर्जी इनपुट वर्ष 2003 में 27 हजार 94 मिलियन यूनिट था, जो वर्ष 2013 में यह बढ़कर 47 हजार 654 मिलियन यूनिट हो गया है। इस दौरान 33 के.व्ही. लाइन वर्ष 2003 में 29 हजार 535 किलोमीटर से बढ़कर वर्ष 2013 में 41 हजार 531 किलोमीटर हो गई है। निम्न-दाब लाइन 3 लाख 31 हजार 67 किलोमीटर से बढ़कर 3 लाख 60 हजार 391 किलोमीटर हो गई है।

राजस्व संग्रहण में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2003 में राजस्व 4521 करोड़ था, जो अब बढ़कर 15,284 करोड़ रुपये हो चुका है। इस दौरान ट्रांसमिशन हानियाँ 7.93 से घटकर अब 3.30 प्रतिशत तथा वितरण हानियाँ 45.58 प्रतिशत से घटकर 27.11 प्रतिशत रह गई है। वर्ष 2003 में ऊर्जा के क्षेत्र में कुल पूँजीगत कार्यों के लिये 384 करोड़ रुपये व्यय किये गये थे, जबकि वर्ष 2013 में इसके लिये 6262 करोड़ रुपये व्यय किये गये हैं।