- मत्स्य विभाग के लाखों खर्च पर नतीजा शून्य
- सरगुजा के बाजार में दूसरे प्रदेशों से लाई जा रही मछलियाँ
- व्यवसायियों का दावा प्रत्येक माह 25 लाख से ज्यादा की खपत
अम्बिकापुर (दीपक सराठे)
सरगुजा जिले के लोगों को मछली पालन से जोड़ने मत्स्य विभाग द्वारा हर वर्ष खर्च की जा रही लाखों की राशि का आज तक कोई सुखद परिणाम सामने नहीं आ सका है। मत्स्य विभाग का यह दावा है कि उनके द्वारा प्रत्येक सीजन में लक्ष्य के अनुसार बीज उत्पादन व संवर्धन न सिर्फ किया जा रहा है, बल्कि लक्ष्य से ज्यादा काम करते हुये उपलब्धि भी हासिल की जा रही है। विभाग द्वारा बड़े पैमाने पर मछली पालन के लिये शासकीय दर पर मछली बीज व स्टैण्डर्ड साईज की मछलियां पालकों को दी जाती हैं। इसके बावजूद सरगुजा के मछली बाजार में आन्ध्रप्रदेश सहित अन्य प्रदेशों से लाई जा रहीं मछलियांे की खपत प्रतिमाह 25 लाख से ज्यादा की है। बाजार में सरगुजा के जलाशयों की मछलियां यदा-कदा ही दिखाई देती हैं। विभाग द्वारा लाखों रूपये मछली पालकों को प्रोत्साहित करने खर्च करने का दावा तो किया जा रहा है, परंतु अभी तक ऐसी क्या कमी है कि सरगुजा के मछली पालक बड़े पैमाने पर मछलियों का उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं और बाहर प्रदेशों से लाई जा रही मछलियां ही सरगुजा के बाजार में दिखती हैं।
जानकारी के अनुसार अम्बिकापुर में हर रोज ट्रकों व ट्रेन के जरिये आन्ध्र प्रदेश सहित अन्य प्रदेशों से बड़े पैमाने पर मछलियों के लाये जाने का सिलसिला वर्षों से जारी है। अम्बिकापुर में बाहर से लाई गई मछलियों को स्थानीय बाजार सहित सरगुजा के अन्य बाजारों में ले जाकर बिक्री किया जाता है। मछली व्यावसायियों के अनुसार स्थानीय बाजार सहित सरगुजा में प्रत्येक दिन 7 से 8 क्यिंटल मछलियों की खपत है। इस लिहाज से महिने में 25 लाख से ज्यादा की बाहर से लाई गई मछलियां सरगुजा में खप रही हैं। इन सबके बीच सरगुजा में किये जा रहे मछली पालन की मछलियां बाजार में दिखाई देना एक दिव्य स्वप्न के समान है।
मत्स्य विभाग की मानें तो दरिमा, करजी व भरतपुर में उनका बीज उत्पादन व संवर्धन केन्द्र है। जहां जुलाई अगस्त के महिने में मछली बीज का उत्पादन किया जाता है। शासन द्वारा मछली बीज के उत्पादन व संवर्धन के लिये इस वर्ष 5 लाख रूपये का बजट आया था। अण्डे से बच्चे निकालने 8 करोड़ का लक्ष्य वर्ष 2015-16 में था। विभाग ने लक्ष्य को पूरा करते हुये 12 लाख अतिरिक्त उपब्धि हासिल की। इसी प्रकार स्टैण्डर्ड साईज मछलियों के लिये 75 लाख का लक्ष्य था, जो पूरा कर लिया गया। चायनीज हेचरी पद्धती का भी इस्तेमाल अण्डे से बच्चे निकालने के लिये किया गया। विभाग के अनुसार सरगुजा के 156 ग्रामीण तालाब के 87 हेक्टेयर व 11 सिंचाई जलाशय के 450 हेक्टेयर में 5 समिति 98 महिला स्वयं सहायता समूह सहित 3 पुरूष समूह द्वारा मछली पालन का काम किया जा रहा है। इन्हें 10 वर्षों की लीज पर काम देकर न सिर्फ विभाग इन्हें प्रशिक्षण के अलावा प्रशिक्षण भत्ता 1250 प्रत्येक व्यक्ति व बाहर अन्य प्रदेश में ले जाकर जागरूक करने 2500 रूपये एक व्यक्ति पर खर्च कर रहा है, बल्कि शासकीय दर पर मछली बीज व स्टैण्डर्ड साईज की मछलियां भी प्रदान कर रहा है। इतने बड़े पैमाने पर मछली पालन का दावा करने के बाद भी सरगुजा के जलाशयों की मछलियां स्थानीय बाजार में देखने को नहीं मिलती है। हाॅ यह जरूर है कि ग्रामीण बाजारों में सरगुजा के जलाशयों की दो-चार किलो मछलियां बिकती जरूर दिखती हैं। मत्स्य पालन को लेकर विभाग जिस प्रकार से लोगों को जागरूक करने व लाखों रूपये खर्च करने का दावा कर रहा है। उसका सुखद परिणाम फिलहाल तक तो सरगुजा में दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। बाहर प्रदेशों से लाकर हर रोज खपाई जा रही लाखों की मछली की जगह सरगुजा में अगर मत्स्य पालन को लेकर लोग जागरूक होते तो रोजगार के दृष्टिकोण से एक बड़ी आमदनी वाला व्यवसाय उभर कर सामने आता।
भौगोलिक स्थिति नहीं है ठीक
मछली पालन विभाग के उप संचालक सतीश कुमार अहिरवार के अनुसार मछली व्यवसाय सरगुजा में वृहद रूप लेने में फिलहाल समय लगेगा। यहां भौगोलिक स्थिति भी काफी प्रभावित करती है। यहां मौसमी तालाब ज्यादातर हैं। बारहमासी तालाबों की कमी होने से हर समय मछली पालन करने में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि बांध क्षेत्र जैसे घुनघुट्टा बांध में कई समितियां मिल कर मछली पालन करती जरूर हैं, परन्तु जागरूकता पूरी तरह से नहीं रहने पर वे लोग रोज दो-चार किलो मछली पकड़कर बाजार में बेच अपना काम चलाते हैं। विभाग की ओर से उन्हें जागरूक करने कई प्रकार से प्रशिक्षण देकर प्रोत्साहित किया जाता रहा है।