हरतालिका तीज पर महिलाओं ने रखा निर्जला व्रत..पति की लम्बी उम्र की माँगी दुआएं  

 

मुहूर्त ना होने से दिन में ही हुई तीज की पूजा 

अम्बिकापुर

भारत का प्रमुख त्योहार हरतालिका व्रत भाद्रपद, शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन किया जाता है। इस दिन गौरी-शंकर का पूजन किया जाता है। यह व्रत हस्त नक्षत्र में होता है। इसे सभी कुआंरी यु‍वतियां तथा सौभाग्यवती ‍महिलाएं ही करती हैं। इस संबंध में हमारे पौराणिक शास्त्रों में इसके लिए सधवा-विधवा सबको आज्ञा दी गई है। इस व्रत को ‘हरतालिका’ इसीलिए कहते हैं क्योंकि माता पार्वती की सखी उन्हें पिता-प्रदेश से हर कर घनघोर जंगल में ले गई थी। ‘हरत’ अर्थात हरण करना और ‘आलिका’ अर्थात सखी, सहेली।

 

सरगुजा में भी हरतालिका तीज के व्रत को महिलाओं ने किया और पूजन अचर्न किया, हरतालिका पूजन के लिए महिलाओं ने गीली काली मिट्टी या बालू रेत। बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल एवं फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनैव, नाडा, वस्त्र, सभी प्रकार के फल एवं फूल पत्ते, फुलहरा से पूजन स्थान को सुसज्जित किया साथ ही पार्वती मां के लिए सुहाग सामग्री- मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, बाजार में उपलब्ध सुहाग पुड़ा आदि पूजन सामग्रिया एकत्र कर श्रीफल, कलश, अबीर, चन्दन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, घी, दही, शक्कर, दूध, शहद पंचामृत भगवान् को अर्पित किया गया।

 

हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात् दिन-रात के मिलने का समय। लेकिन इस वर्ष मुहूर्त में परिवर्तन के कारण यह पूजा सरगुजा क्षेत्र में अधिकांशतः महिलाओं ने दिन में ही की।  हरतालिका व्रत की पूजा महिलाओं ने पार्वती तथा शिव की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर विधि-विधान से पूजा की और बालू रेत अथवा काली मिट्टी से शिव-पार्वती एवं गणेशजी की प्रतिमा अपने हाथों से बनाई। इसके बाद सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी सामग्री सजा कर रख, इन वस्तुओं को पार्वतीजी को अर्पित की गई। साथ ही शिवजी को धोती तथा अंगोछा अर्पित कर तपश्चात सुहाग सामग्री ब्राह्मणी को तथा धोती-अंगोछा ब्राह्मण को दान कर महिलाओं ने पुन्य लाभ लिया। इस प्रकार पार्वती तथा शिव का पूजन-आराधना कर हरितालिका व्रत की कथा भी महिलाओं ने सुनी। फिर सर्वप्रथम गणेशजी की आरती, फिर शिवजी और फिर माता पार्वती की आरती की गई। गौरतलब है की इस व्रत में रात भर जागने का बड़ा महत्व है लिहाजा महिलाए रात्रि जागरण करने के बाद ककड़ी-हलवे का भोग लगा और फिर ककड़ी खाकर उपवास तोड़ेंगी, इसी त्योहार को दूसरी ओर बूढ़ी तीज भी कहा जाता हैं। इस दिन सास अपनी बहुओं को सुहागी का सिंधारा देती हैं। इस व्रत को करने से कुंआरी युवतियों को मनचाहा वर मिलता है और सुहागिन स्त्रियों के सौभाग्‍य में वृद्धि होती है तथा शिव-पार्वती उन्हें अखंड सौभाग्यवती रहने का वरदान देते हैं।