सूरजपुर. जिले के बिहारपुर-चांदनी क्षेत्र के तीन गांव में पंचांग की निर्धारित तिथि से दो से पांच दिन पहले ही होलिका दहन कर दिया जाता है. इसके साथ ही रंगों का त्योहार मनाने की शुरुआत हो जाती है. इसके पीछे लोगों की मान्यता है कि अनहोनी और विपत्तियों से बचने के लिए पहले होली मना रहे हैं। यह क्रम पिछले साठ से अधिक वर्षों से चला आ रहा है।
जानकारी के अनुसार ओड़गी ब्लॉक अंतर्गत क्षेत्र के महुली, कछवारी और मोहरसोप गांव में हाेलिका दहन पंचांग की तिथि के दो से पांच दिन पहले किया जाता है. इस संबंध में गांव के पूर्व सरपंच रनसाय ने बताया कि यह परंपरा गांव में शुरू से ही चली आ रही है. गांव में गढ़वतिया पहाड़ पर मां अष्टभुजी देवी का मंदिर है. 1960 के दशक में यहां पर गांव के लोग होलिका दहन के लिए लकड़ियां एकत्र करके रखते थे, तो पांच दिन पहले ही रात के समय स्वत: आग लग जाती थी.
ग्रामीणों का मानना है कि यह क्रम 1917 से चला आ रहा था. इसके बाद से गांव के लोग इस परंपरा को निभाते चले आ रहे हैं. गांव के लोगों ने बताया कि वह लोग होली के समय बैगा के पास जाते हैं, और होलिका दहन की तिथि पूछते हैं. इस पर बैगा उन्हें पंचांग की तिथि के दो से लेकर पांच दिन पहले की कोई एक तिथि निर्धारित कर बता देते हैं. उसी दिन महुली गांव के लोग पहाड़ पर स्थित देवी मां के मंदिर के पास और कछवारी व मोहरसोप गांव के लोग अपने गांव में ही होली मनाते हैं.
1996 में फैल गई थी कालरा की बीमारी
स्थानीय निवासी पप्पू जायसवाल ने बताया कि 1996 में गांव के बैगा के यहां परिवार के सदस्य की मृत्यु हो जाने के कारण पंचांग की होली से दस दिन बाद गांव में होलिका दहन की तिथि निर्धारित की. इसके बाद गांव में कालरा की बीमारी फैल गई. काफी इलाज कराने के बाद भी कोई फायदा न मिलने पर लोगों ने बैगा से बात की. लोगों का मानना है कि बैगा की पूजा-अर्चना के बाद इस बीमारी से पीड़ित लोग अचानक ठीक हो गए. इसके बाद से इस परंपरा को मानने वालों की देवी मां पर आस्था और बढ़ गई.