सूरजपुर 28 मई 2014
संचालक पशु चिकित्सा सेवायें रायपुर एवं उप संचालक पशु चिकित्सा सेवायें सूरजपुर के मार्गदर्शन में पशुओं एवं मनुष्यों में फैलने वाली ब्रुसलोसिस बिमारी पर प्रशिक्षण डाॅ. एस.एल. आगरें एवं दिनेश रामटेके द्वारा प्रदान किया गया। ब्रुसलोसिस एक गंभीर बिमारी है, जो पशुओं की समस्त प्रजाति एवं मनुष्यों में भी फैलने की 80 प्रतिशत संभावना रहती है इस बिमारी की जानकारी 1850 में हुआ था जिसको कई नामों से जाना गया जैसे माल्टा बुुखार, क्रिसीयन बुखार, मेडिटिरियन बुखार एवं बंग बिमारी के नाम से भी जाना जाता है।
इसके जीवाणु इस प्रकार से फैल सकता है…
चमड़ी के द्वारा,कटे हुए घाव के द्वारा, सूंघने से, खाने से, इंजेक्शन से, कच्चा दूध पीने से एवं कृत्रिम गर्भाधान एवं प्राकृतिक गर्भाधान द्वारा यह बिमारी फैलती है। पशुओं में मुख्य रूप से अनियमित बुखार का आना एवं गर्भाधान के अंतिम तीन महिने के अंदर (छः महिने से नौ महिने के बीच) बच्चा फैकने के लक्षण आते है, एवं यह कोई जरूरी नही है कि पहली बार एबारर्शन होने के बाद दूसरी बार हो लेकिन बिमारी उक्त पशु में जन्मजात रहता है। नर पशु में मुख्य रूप से अण्डकोश का बढना एवं सडन पैदा होना लक्षण पाया जाता है, एवं उक्त सांड़ या निकृष्ट सांड़ देशी गाय एवं भैसों में बिमारी फैलाता रहता है। यह जीवाणु एक बार शरीर में प्रवेश करने के बाद शरीर के सुरक्षित अंगों में घर बनाकर रहता है, जैसे लिम्फनोड़, अपर मैमेरी लिम्फनोड एवं बच्चेदानी के अंदरूनी भाग में कोशिकाओं में पडा रहता है, एवं जैसे ही मादा पशु छः से नौ माह में होती है, इरिथ्रोटाल तरल पदार्थ के माध्यम से उत्तप्रेरण करके उक्त किटाणु को बच्चादानी के प्लेसैन्टा एवं बच्चादानी में पल रहे बछवा अथवा बछिया के उपर आक्रमण करता है। जिससे उक्त गाय एवं भैस का एबार्शन हो जाता है। ऐसे दूधारू पशु न तो दुग्ध उत्पादन दे पाते है, और केवल ब्रुसोलासिस बिमारी फैलाने के वाहक हो जाते है। देश स्तर पर इस बिमारी के रोकथाम हेतु प्रयास जारी है। जिसमे समस्त पशु आषधालयों एवं पशु चिकित्सालयों को यह हिदायत दिया गया है कि 0-4 माह के मादावत्सों का सर्वे का एक रजिस्टर एवं चार से आठ माह के मादावत्सों का पशु पालक अनुसार सर्वे का कार्य पूर्ण कर लेवें ताकि राष्ट्रीय स्तर के इस बिमारी को चार से आठ माह के मादावत्सों का ब्रुसोल्ला एवाट्स-19 प्रजाति का जिंदा जीवाणु का टिका लगाया जा सकें। एक मादा वत्स को छः-छः माह में दो बार 2 एम.एल. चमडी में टिका लगाकर रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
विगत् दस वर्षो से किए गये सर्वे में दुग्ध एवं उससे व्यवसाय से संबंधित जनता को आरकाइटिस एवं उनसे संबंधित परिवारों (महिलाओं) को एबार्शन के प्रकरण एक से दो प्रतिशत पाया गया इस कारण इस बिमारी को जिस तरह से राज्य में पशु माता महमारी का नियंत्रण किया जा चुका है।उसी तरह सघन टिकाकरण कर इस ब्रुसोलोसिस (जूनोटिक) बिमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। सभा को डाॅ. महेन्द्र पाण्डेय पशु चिकित्सा अधिकारी बिश्रामपुर द्वारा भी उक्त बिमारी से संबंधित प्रकाश डाला गया। प्रशिक्षण में डाॅ.के.एम. यादव, डाॅ.पटेल एवं 36 पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी, गौसेवक एवं पी.ए.आई.डब्लू भी भाग लिए।