परीक्षा से एक दिन पहले छात्र तनाव यह सबके साथ होता है, अतः इसे लेकर बहुत ज़्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। हल्का-फुल्का तनाव सकारात्मक योगदान भी देता है।एक निश्चित स्तर का तनाव हमारे निष्पादन/प्रदर्शन को बढ़ाता है किंतु उससे ज़्यादा तनाव प्रदर्शन को कम भी कर देता है।
थोड़ा तनाव या डर आपको सतर्क बनाए रखता है तथा लक्ष्य को भूलने नहीं देता है। ‘परीक्षा’ इसी का नाम है। इसलिये फिक्र करने की बजाय इसे सकारात्मक दिशा प्रदान कर जीत सुनिश्चित करनी चाहिये।याद रखें डर के आगे ही जीत है !
प्रतियोगी परीक्षा एक बड़ा मंच है।इसके लिये आप वर्षों अध्ययनरत रहते हैं।किंतु कई दफा बेहतर तैयारी के बावजूद परीक्षा भवन में जाने से पूर्व उन्हें लगता है कि जैसे वे सब कुछ भूल गए हों, उन्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा हो तथा दिमाग सुन्न-सा हो रहा हो।ऐसी स्थिति में यदि आपका मित्र कोई प्रश्न पूछ लेता है और आप उसका सही जवाब नहीं दे पाते हैं तो आपका आत्मविश्वास न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाता है। इस प्रकार की परिस्थिति छात्रों के लिये पीड़ादायक होती है।किंतु यहाँ सबसे मजेदार बात यह है कि इस अवधि में भूलना या याद न आना महज एक तात्कालिक स्थिति होती है।
तात्कालिक रूप से परीक्षार्थियों को भले यह लगे कि वे सब कुछ भूल गए हैं, किंतु वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं होता।परीक्षार्थियों द्वारा पढ़ी गई समस्त चीज़ें उनके अवचेतन मन में जमा रहती हैं।अत्यधिक तनाव की वजह से भले वह ‘एक्टिव मोड’ में न रहे लेकिन परीक्षा भवन में प्रश्न देखते ही आप पाएंगे कि वह जानकारी प्रश्नों से कनेक्ट होते ही कैसे सक्रिय हो जाती है।फिर उन्हें सब कुछ स्वतः याद आने लगता है।इसलिये, आपकों दिमाग से यह भ्रम निकाल देना चाहिये कि वे सब कुछ भूल गए हैं।याद रखें, ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता, न ही उसका लोप होता है।बस सही रणनीति के ज़रिये उसे सक्रिय रखना होता है।
स्मरण रखें कि प्रतियोगी परीक्षा सिर्फ छात्रों के ज्ञान और व्यक्तित्व का ही नहीं बल्कि उनके धैर्य, साहस और जुझारूपन का भी परीक्षण करती है।प्रतियोगी परीक्षा महज एक परीक्षा नहीं होती बल्कि छात्रत्व को गौरवान्वित करने तथा उनकी योग्यता-क्षमता-प्रतिभा को सम्मानित करने का एक मंच भी है।अतः इससे क्या घबराना।
प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने की शर्त सिर्फ पढ़ाकू होना नहीं बल्कि जुझारू होना भी है। याद रखिये रणभेरी बजने पर सच्चा सैनिक कभी पीठ नहीं दिखाता बल्कि अपनी संपूर्ण शक्ति समेटकर मैदान में डटकर खड़ा हो जाता है।और आपकी तो तैयारी मुकम्मल है, रणनीति वैज्ञानिक व व्यावहारिक है,फिर डर किस बात का? अतः अंतिम समय में छात्रोचित गुण का परिचय दीजिये और प्रतियोगी परीक्षा का किला फतह कीजिये।
ध्यान रहे, जीतता वही है जो अपनी संपूर्ण शक्ति और सही रणनीति के साथ लड़ता है, वरना आधे-अधूरे मन से कभी भी पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती।
यदि आप IAS प्रीलिम्स परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होते है तो हिम्मत मत हारिये।जीवन में कोई भी विफलताओं का सामना किए बिना सफलता हासिल नहीं कर सकता।
जब आप एक प्रयास में IAS प्रीलिम्स परीक्षा को उत्तीर्ण नहीं कर पाएं तो इसका ये मतलब बिलकुल भी नहीं है की आप कभी IAS प्रीलिम्स परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाएंगे बल्कि इसका मतलब ये है की आपको और तैयारी की जरुरत है इसलिए निराश न हो।
विफलता एक सामान्य अस्थायी अवस्था है और इससे हार नहीं माननी चाहिए ।अपने पिछले प्रयासों में अपनी गलतियों का विश्लेषण करें, उनसे सीखें और एक कार्य योजना तैयार करें और उसे निष्पादित करें। निश्चित रूप से सफलता आपकी होगी।
एक बार पुनः शुभकामनाएं।
रतन लाल डांगी, IPS, छत्तीसगढ