संसदीय सचिव एवं विधायक विकास उपाध्याय ने कोरोना के नया वेरिएंट B.1.1.529 ओमिक्रॉन को देखते हुए राज्य सरकार से मांग की है कि इसके पहले कि संक्रमण फैले समस्त शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा, छत्तीसगढ़ में कुछ ही लोग मास्क लगा रहे हैं और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं। इसके साथ ही अब कोविड-19 का मुद्दा बातचीत में कम ही चर्चा का विषय होता है। ऐसे में मास्क अनिवार्य करने और कड़े नियम के साथ फाईन की रकम भी बढ़ाये जाने की आवश्यकता है। विकास उपाध्याय ने कहा, संक्रमण के तीसरे लहर को रोकने सिर्फ पोस्टर और बिल बोर्ड्स तक सीमित नहीं रहना चाहिए।
संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने संक्रमण के नये वेरिएंट ओमिक्रॉन को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा, केन्द्र सरकार को इसके रोकथाम के लिए कुछ करने के पूर्व हमें स्वयं को महत्वपूर्ण कड़े निर्णय लेने की आवश्यकता है। जिस तरह से छत्तीसगढ़ में 09 साल के बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्ग अब संक्रमण के दायरे में आ गए हैं, ऐसे में यह उचित होगा कि समय पूर्व सबसे पहले शैक्षणिक संस्थानों को पूर्व की भाँति पूरी तरह से बंद रखा जाए। उन्होंने आगाह करते हुए कहा, जिस तरह से छत्तीसगढ़ में छोटे शहरों से लेकर अन्य जगहों में कुछ ही लोग मास्क पहन रहे हैं और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं, यह बहुत ही चिंताजनक है। लोगों के बीच अब कोविड-19 को लेकर बातचीत भी बंद हो गई है। उन्होंने ‘‘नो मास्क’’ के लिए कड़े नियम बनाते हुए इसके चालान की कीमतों में भी वृद्धि किये जाने की बात कही है।
विकास उपाध्याय ने बताया, ओमिक्रॉन को लेकर विशेषज्ञों ने जो राय दी है उसके अनुसार इसमें कुल मिलाकर 50 म्यूटेशन हुए हैं और 30 से म्यूटेशन ज्यादा स्पाइक प्रोटीन में हुए हैं। ज्यादातर वैक्सीन प्रोटीन पर हमला करते हैं और इन्हीं के जरिये वायरस भी शरीर में प्रवेश करता है। वायरस के हमारे शरीर की कोशिकाओं से संपर्क बनाने वाले हिस्से की बात करें तो इसमें 10 म्यूटेशन हुए हैं, जबकि दुनिया भर में तबाही मचाने वाला डेल्टा वेरिएंट में मात्र 02 म्यूटेशन हुए थे। इससे साफ जाहिर है कि ओमिक्रॉन का दस्तक कहीं छत्तीसगढ़ में हुआ तो यह लोगों के लिए परेशानी खड़ा कर सकती है। हालांकि उन्होंने कहा, वर्तमान में डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडीज़ मौजुद है और हर वयस्क में चौंथे-पांचवे व्यक्ति का आंशिक रूप से टीकाकरण भी हुआ है। जो सिर्फ इतना ही खुश होने के लिए काफी नहीं है।
विकास उपाध्याय ने आगे कहा, भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की घोषणा 2017 में की गई थी, जिसमें 2025 तक स्वास्थ्य पर सरकार का खर्च कुल जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया था। बावजूद इस मद में बहुत कम बढ़ोतरी देखी गई है। 2022 के वित्त वर्ष के अंत तक जीडीपी का 1.3 प्रतिशत ही खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है। जो साफ तौर पर दिखाई दे रहा है कि इससे लक्ष्य पूरा नहीं होने वाला। उन्होंने केन्द्र सरकार के उस दावे को भी गलत ठहराते हुए कहा, जिसमें कहा गया है कि आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना दुनिया की सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजना में से एक है।
उन्होंने साफ तौर पर कहा, इसका जमीनी हकीकत यह है कि यह योजना बहुत कम लोगों को ही मदद कर पा रही है। विकास उपाध्याय ने केन्द्र सरकार से मांग करते हुए इस बात पर जोर दिया कि सरकार को एक स्वतंत्र विशेषज्ञों का आयोग गठन किया जाना चाहिए जो महामारी के खिलाफ कार्य का एक निष्पक्ष मूल्यांकन कर सके। साथ ही उन्होंने कहा, स्वास्थ्य सिस्टम को और मजबूत करने की जरूरत है जिस पर केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर यदि काम करें तो देश स्वास्थ्य सिस्टम में बेहद मजबूत हो सकता है।