संगीत शिक्षा में शास्त्र और प्रयोग का समन्वय जरूरी: डॉ. कपिला वात्सायन
कलाक्षेत्र की 9 विभूतियों को डी-लिट् से नवाजा गया
प्रख्यात कला विदुषी एवं पद्मविभूषण डॉ. कपिला वात्सायन ने कहा है कि कला और संगीत की शिक्षा अब घरानों की चाहरदीवारी से निकल कर संस्थागत हो गई है। विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों में इसकी शिक्षा-दीक्षा प्रारंभ होने से इसके प्रति समाज का नजरिया बदला है। उन्होंने कहा कि गीत, संगीत और नृत्य की शिक्षा के प्रति समाज का दृष्टिकोण पहले सकारात्मक नहीं था। उन्होंने आगे कहा कि संगीत की शिक्षा में शाó और प्रयोग कभी भी एक दूसरे के विरोधी नहीं रहे, परन्तु दोनों नदी के दो किनारे की मानिन्द एक-दूसरे से दूर रहे हैं। अब वक्त आ गया है, कि इन दोनों में समन्वय स्थापित किया जाए। इस पर चिंतन मनन और काम करने की जरूरत है। उन्होंने कला और संगीत के विद्यार्थियों का आह्वान किया कि वे शाó और प्रयोग को एक-दूसरे के नजदीक लाने और जोड़ने का काम करें।
डॉ. कपिला वात्सायन आज इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के द्वादश दीक्षांत समारोह को मुख्य अतिथि की आसंदी से सम्बोधित कर रही थीं। समारोह की अध्यक्षता राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री शेखर दत्त ने की। समारोह में उच्च शिक्षा मंत्री श्री प्रेम प्रकाश पाण्डेय, कला मनीषी पद्म विभूषण प्रो. आरसी मेहता, किशोरी रविन्द्र ओमेनकर, सैय्यद हैदर रजा, प्रो. केजी सुब्रमण्यम एवं प्रो. एलएन भावसार, पद्मश्री सम्मान प्राप्त किरण सहगल, पद्मश्री सम्मान प्राप्त गोविन्द राम निर्मलकर, छत्तीसगढ़ क़ी गायिका श्रीमती ममता चन्द्राकर, कुलपति डॉ. प्रो. मांडवी सिंह, कुलसचिव श्री पीएस धु्रव सहित विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों के अधिष्ठाता मंचस्थ थे। डॉ. कविता वात्सायन ने अपने दीक्षांत भाषण में कला और संगीत की शिक्षा और इसको आगे बढ़ाने के लिए कई पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि लोक संस्कृति को पुष्पित और पुल्ल्कित करने के लिए सभ्य समाज का इससे जुड़ाव जरूरी है।
राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री शेखर दत्त ने अपने अध्यक्षीय उद्बोघन में कहा कि भारत की पहचान यहां की कला और संस्कृति है। हमारी संस्कृति इन्द्रधनुषी है। भारत देश नहीं, अपितु महादेश है। यहां कला की अनेक विधाएं है। हरेक विद्या में प्राण है। इस प्राण को बचाए रखने के लिए समर्पित एवं प्रतिभावान कलाकार है। रायपाल श्री दत्त ने आगे कहा कि खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय एक महत्वपूर्ण संस्थान है। भारत ही नहीं अपितु एशिया में ऐसे कम ही संस्थान है, जहां सभी प्रकार की कलाओं का अध्ययन-अध्यापन होता है। उन्होंने इस मौके पर कला एवं संगीत के स्नातको, स्नातकोत्तर एवं डाक्टरेट उपाधि धारकों को बधाई और शुभकामनाएं दी और कहा कि आप सब अपनी कला साधना से भारत को एक क्रम में ला रहे है। देश का इतिहास निर्माण कर रहे है।
राज्यपाल श्री दत्त ने कहा कि कलाकार आजीवन विद्यार्थी रहता है। इस नाते उसके मन में सदैव प्रश्न और उसका उत्तर खोजने की ललक होनी चाहिए। उन्होंने विश्वविद्यालय में कला की शिक्षा-दीक्षा के बेहतर परिवेश की सराहना की। राज्यपाल श्री दत्त ने विद्यार्थियों से पूर्वजों से मिली धरोहर को आगे बढा़ने का आह्वान किया। उच्च शिक्षा मंत्री श्री प्रेम प्रकाश पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत सभ्यता और संस्कृति का देश है। शिक्षा व्यक्ति को कर्मशील बनाती है। श्रेष्ठ शिक्षा वह है जो जीवन और वातावरण में सांमजस्य स्थापित करे। खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों को कला के क्षेत्र में आगे बढ़ने का स्वर्णिम अवसर प्रदान कर रहा है। यह संस्थान निरतंर आगे बढ़े और कला संगीत के माध्यम से मानक स्तर प्राप्त करे, यही मेरी शुभेच्छा है।
इस अवसर पर कला मनीषी सर्व श्री प्रो. आरसी मेहता, किशोरी अमोनकर, प्रो. केजी सुब्रमण्यम, प्रो. एलएन भावसार, मोक्षदा चन्द्राकर ने भी समारोह को समबोधित किया। पद्मश्री एवं डी-लिट् की उपाधि से विभूषित नाचा के मूर्धन्य कलाकार डॉ. गोविन्द निर्मलकर ने अपने उद्बोधन में कला एवं संगीत के विद्यार्थियों एवं शोघार्थियों से नाचा की विधा को सीखने और इसे आगे बढ़ाने की अपील की। प्रारंभ में राज्यपाल एवं कुलाधिपति की आगुवाई में विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन प्रागंण से निकली शोभा यात्रा का समारोह स्थल पर पहुंचने पर सभी उपस्थित जनों ने खड़े होकर स्वागत-अभिवादन किया। प्रशासनिक भवन परिसर में नवनिर्मित आडिटोरियम में आयोजित दीक्षांत समारोह में विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा कुलगीत की प्रस्तुति के बाद कुल सचिव पीएस धु्रव ने कुलाधिपति की अनुमति से दीक्षांत समारोह के शुभारंभ की घोषणा की। कुलपति डॉ. मांडवी सिंह ने स्वागत उद्बोधन में विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर शैक्षणिक गतिविधियों प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालय कला की साधना स्थली बने, यह हम सबका प्रयास है।
इस अवसर पर उन्होने स्नातको को अनुशासन का उपदेश दिया। कुलपति डॉ. मांडवी सिंह ने प्रख्यात नृत्यांगना एवं कला विदुषी पद्म विभूषण डॉ. कपिला वात्सायन, गायन के सिद्धहस्त कलाकार प्रो. आरसी मेहता, प्रसिद्ध ख्याल गायिका किशोरी रविन्द्र अमोनकार, चित्रकला के पुरोधा सैय्यद हैदर रजा, प्रो. केजी सुब्रमण्यम एवं प्रो. एलएन भावसार, नृत्य, रंगमंच एवं चलचित्र दुनिया की प्राख्यात कलाकार श्रीमती जौहरा सहगल, छत्तीसगढ़ नाचा के प्रसिद्ध कलाकार गोविन्द राम निर्मलकर एवं छत्तीसगढ़ स्वर कोकिला मोक्षदा चंद्राकर को विश्वविद्यालय की ओर से ससम्मान डी-लिट् की मानद उपाधि प्रदान करते हुए सभी से विश्वविद्यालय के गौरव को आगे बढ़ाने की अपील की। समारोह में डाक्टरेट उपाधि धारकों को भी डिग्री प्रदान की गई। राज्यपाल श्री शेखर दत्त ने दीक्षांत समारोह में विश्वविद्यालय की परीक्षा में प्रावीण्य सूची में प्रथम एवं द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को स्वर्ण एवं रजक पदक व प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए उन्हें बधाई एवं शुभकामनाएं दी। अंत में कुलसचिव श्री पीएस धु्रव ने सभी अतिथियों एवं समारोह में उपस्थित जनों का आभार व्यक्त किया।