अम्बिकापुर. ऑनलाईन पढाई की व्यवस्था को लेकर सरकार और सिस्टम के खिलाफ खुलकर सामने आने लगे है. सरगुजा जिले मे इसका व्यापक असर देखने को मिल रहा है. सरगुजा जिले मे मोबाईल, लैपटाप जैसे माध्यमो से ऑनलाईन पढाई का अभिवावक संघ ने विरोध किया है.. तो वही इस मामले को लेकर सियासत भी तेज हो गई है..
छत्तीसगढ प्रदेश के अन्य हिस्सो के साथ सरगुजा जिले मे निजी स्कूल की मनमानी हमेशा से अभिवावको के लिए परेशानी का कारण बनती आई है. पहले बस्ते के बोझ के तले बच्चो का भविष्य दबा नजर आता था. तो अब लॉकडाउन के कारण ऑनलाईन पढाई सिस्टम. बच्चो के लिए मुसीबत और अभिवावको के लिए खर्च का अंबार बन गया है. दरअसल जिले के निजी स्कूल प्रबंधन ने शासन के निर्देश के बाद ऑन लाईन पढाई कराने के लिए.. अभिवावको पर दबाव बनाना शुरु कर दिया है.. जिसको लेकर अभिवावक संघ ने कलेक्टर सरगुजा के माध्मय से मुख्यमंत्री से इस सिस्टम को बंद करने का आग्रह किया है..
वैश्विक महामारी कोरोना काल मे पिछले तीन महीने से स्कूल बंद पडे हैं. बच्चे घरो मे छुट्टी जैसे महौल मे मस्त हैं.. लेकिन शासन के आदेश के बाद निजी स्कूल प्रबंधन अभिवावको पर अपने बच्चो को ऑनलाईन पढाई कराने का लगातार दबाव बना रहे हैं. जिसके लिए अभिवावको को बच्चो के लिए नया मोबाईल या लैपटाप खरीदना पडेगा. जो खासकर लोवर मीडिल क्लास फैमली के लिए अतिरिक्त बोझ का सौदा है.. लेकिन प्रदेश के सत्ताधारी दल से जुडे लोगो की माने तो जब बच्चे स्कूल नही जा सकते हैं. तो ऑन लाईन पढाई के अलावा निजी स्कूलो के पास कोई विकल्प नहीं है.
ऑनलाईन स्कूलिंग सिस्टम को लेकर सरगुजा मे राजनीति भी तेज हो गई है. जिसको लेकर सत्ताधारी दल के नेता तो इस सिस्टम के पक्ष मे नजर आ रहे हैं.. लेकिन विपक्षी दल भाजपा नेताओ के मुताबिक आज के दौर मे घर मे तीन चार बच्चे स्कूल मे पढते हैं. ऐसे मे ये भी संभव नहीं है कि एक अभिवावक अपने बच्चो को अलग अलग मोबाईल लैपटाप खरीद कर दे.. और उसके बाद बच्चे चार- पांच घंटे तक मोबाईल से चिपक कर अपनी मानसिक स्थिती खराब करें.
सरगुजा जिले मे ऑन लाईन पढाई को लेकर अभिवावक संघ ने जहां विरोध शुरु कर दिया है. तो वही प्रदेश के दोनो प्रमुख दल एक दूसरे के आमने सामने आ गए है.. लेकिन इन सब से अलग जब जिले के कलेक्टर से इस सबंध मे जानकारी लेनी चाही गई. तो उन्होने मामले पर जिला शिक्षा अधिकारी से बात करने की बात कहकर अपना पलडा छाड लिया.
वैसे ऑनलाईन पढाई का मसला प्रदेश और देश स्तर का है. ऐसे मे सरकारो को इस संबध मे कोई ठोस और सुलझा हुआ ऐसा निर्णय़ लेना चाहिए. जिससे गरीब और मध्यम वर्गीय भी अपने बच्चो को सुरक्षित और कम खर्चिला शिक्षा दिला सके.. बहरहाल जब आम दिनो मे सरकारें बच्चो के बस्ते का वजन हलका नही करा सकी. तो इस आपात स्थिती मे उन सरकारो से ये कम ही उम्मीद है.. कि वो अभिवावको के बजट पर भी ध्यान दे पाए.
देखिए वीडियो