जंगलों से ला शहर में रात-बेरात खपाया जा रहा इमारती लकड़ी
अम्बिकापुर
नगर से लगे चेंद्रा जंगल सकालो के साईड के जंगल कुल्हाड़ी सहित सूरजपुर रोड में स्थित जंगल में वन तस्कों का जाल सा फैला हुआ है। जो ग्रामीणों की मद्द से जंगलों में पेड़ो की अवैध कटाई जोर-शोर से कर जंगलो के दोहन मेें लगे थे। ऐसी अवैध करोबार में संगठित गिरोह सक्रिय है। इनका नेटवर्क शहर से जुड़ा हुआ है। जिसके माध्यम से तस्कर लकडियो को शहर में खापा रहे है। बाजार से मिल जाते है। इनका कारोबार लाखों का है ये डिमांड पर हर साइज की लकडियां उपलब्ध कराते है। यदि यही हाल में शहर से लगे क्षेत्र में जंगल देखने को नहीं मिलेंगे।
शहर से लगे जंगल अब ज्यादा नहीं बचे हैं लेकिन इन पर भी वन माफियाओं की नजर लग गई है। वन विभाग की सुस्त कार्यशैली से वन माफियाओं ने स्थानीय ग्रामीणों की मिलीभगत से अपना एक बड़ा नेटवर्क बना लिया हैं। जंगल के भीतर इनके आदमी पेड़ों की अवैध कटाई में लगे रहते हें। आसपास के जंगल इन दिनों इसके लिए सबसे बड़ा गढ़ बना हुआ है। यहां न केवल रात में बल्कि दिन में पेड़ों की कटाई की जा रही है। इसके अतिरिक्त तकिया, खैरबार, लुचकी, लालमाटी के जंगलों में पेड़ों की कटाई जोर-शोर से हो रही हैं। इसके चक्कर में जंगल ठूंठ में तब्दील होते जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि जंगल के भीतर वन माफियाओं के आदमी पूरे साजो सामान के साथ काम करते हैं। इनके पास लकड़ी काटने के सारे औजार हैं। पेड़ों की कटाई के बाद वहीं पर उसे छोटे-छोटे साइज में काट कर ठिकाने लगा दिया जाता है। वन विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।
शहर में खपाई जाती है लकड़ी
जंगल में कटाई के बाद अधिकांश लकड़ी शहर में ही खपाई जा रही है। इसका बड़ा बाजार शहर ही है। बाजार से काफी कम कीमत होने से इसको ग्राहक भी बहुत हैं। शहर में तेजी से बन रहे मकानों के कारण तस्करों को यहां बिक्री में कोई दिक्कत नहीं होती हैं। इनके एजेंट शहर में घूमते रहते हैं। ये सीधे ग्राहक से संपर्क करते हैं। साईज एवं डिमांड लेकर एजेंट चला जाता है। इसके बाद रात में डिलीवरी हो जाती है। कुछ तस्करों ने तो मिल मालिकों से भी संपर्क बना रखा है। मिल में अवैध लकड़ी को एक नंबर की रसीद काटकर बाहर भेज दिया जाता है। इसकी कीमत अलग से ली जाती है लेकिन यह बाहर से सस्ती ही होती है।
कर्मचारियों के भरोसे जंगल
जंगल के सुरक्षा की जिम्मेदारी छोटे कर्मचारियों पर छोड़ दिया गया है। जंगल के भीतर तो रेंजर एवं अन्य अधिकारी कभी जाते ही नहीं हैं। कभी दौर पर गए तो बाहर से से घूमकर चले आते हैं। जंगल की निगरानी का काम फोरस्ट गार्ड पर छोड़ दिया जाता है। अधिकारियों के नहीं जाने से छोटे कर्मचारी भी अपने अनुसार काम करते हैं। इससे तस्करों को कोई भय नहीं रहता है।