- पुर्नवास एवं अन्य मांगों को लेकर केते बासेन में दूसरे दिन भी काम बंद
अम्बिकापुर
सरगुजा जिले के सुदूर वनांचल क्षेत्र विकासखण्ड उदयपुर अंतर्गत स्थित परसा ईस्ट एवं केते बासेन कोल परियोजना की संचालनकर्ता कंपनी अदानी की मनमानी से प्रभावित क्षेत्र के लोगों का आक्रोश फूट पड़ा है। जनदर्शन एवं जन समस्या निवारण शिविर में आवेदन देने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं होने पर पुर्नवास, 18 वर्ष पूर्ण कर चुके युवाओं को नौकरी, बसाहट क्षेत्र के प्लाट का पट्टा, मुआवजा एवं अन्य मांगों को लेकर ग्रामीणों ने केते सरहद एवं बासेन में चल रहे कामों को बंद करा दिया है जो आज लगातार दूसरे दिन शुक्रवार को भी बंद रहा। कोल परियोजना में प्रभावित क्षेत्र केते की पूरी बस्ती के ग्रामीणों को विस्थापित कर पुर्नवास दिया जाना है।
चर्चा के दौरान आंदोलन स्थल पर उपस्थित ग्रामीण राजकुमार एवं कमान सिंह ने बताया परियोजना आरंभ होने से पूर्व तत्कालीन कलेक्टर सरगुजा की उपस्थिति में ग्राम सभा का आयोजन किया गया था। जिसमें परियोजना से विस्थापित होने वाले परिवारों को पुर्नवास नीति के प्रावधानों के तहत समस्त सुविधाएं प्रदान करने के बाद ही क्षेत्र में कार्य प्रारंभ करने का प्रस्ताव पारित हुआ था। पांचवी अनुसूची में शामिल क्षेत्र में ग्राम सभा में पारित प्रस्ताव का निर्णय सर्वोपरि होता है। परंतु ग्राम सभा में पारित निर्णय को भी दरकिनार कर क्षेत्र में मनमाने ढंग से काम किया जा रहा है। विगत चार वर्षों से लोग मुआवजा नौकरी और घर के लिए अपनी आवाज उठाते आ रहे है पर उनकी सुनने वाला ना तो कंपनी प्रबंधन है और ना ही प्रशासन के लोग। कंपनी के मनमाने और तानाशाही रवैये की वजह से ग्रामीणों द्वारा पूर्व के वर्षों में खदान को कई बार बंद कराया जा चुका है। जब-जब खदान बंद हुई कंपनी और प्रशासन के लोगों की मौजूदगी में ग्रामीणों को आश्वासन दिया जाता रहा है कि आपकी मांगों को जल्द से जल्द पूरा कर दिया जायेगा। कभी एक हफ्ते तो कभी पन्द्रह दिन या अधिकतम एक से दो महीने का समय लगने की बात कहीं जाती रही है, पर ग्रामीणों की मांग आज तक पूरी नही हुई है। केते के विस्थापित होने वाले परिवारों के लिए बासेन में कंपनी द्वारा कुछ छोटे छोटे दड़बा नुमा आधे अधूरे घर बनवाये गये है जिसमें छोटे परिवार का भी गुजर बसर होना काफी मुश्किल है गलती से अगर वहां कोई मेहमान आ जायें और रात्रि विश्राम करना पड़े तो फिर या तो मेहमान बाहर सोंयेगे या घर मालिक।
ग्रामीणों का कहना है कि केते गांव से विस्थापित होने वाले समस्त परिवारों को बुनियादी सुविधाओं के साथ जब तक मकान बनाकर नहीं दिया जायेगा तब तक गांव नही छोड़ेगे सभी लोग एक साथ गांव छोड़कर बसाहट ग्राम बासेन में जाकर बसेंगे। कंपनी के द्वारा बासेन में बनवाये गये मकानों में भी कई कमियां है बनाये गये घरों के समक्ष नालियों के नाम पर केवल गडढ खोदकर छोड़ दिया गया है जिसमें कभी भी गंभीर दुर्घटना होने की आशंका है। घरों तक पहुंचने के लिए सड़कों का निर्माण भी आधा अधूरा करके छोड़ दिया गया है। इधर कंपनी के द्वारा केते गांव के चारो तरफ खुदाई का काम लगातार चल रहा है जिससे लोगों के साथ साथ मवेशियों का भी निस्तार मुश्किल हो गया है। गांव के लोग मिट्टी के पहाड़, धूल के गुब्बार और जलते कोयले का धुंआ और चैबीसों घंटे चलने वाले बड़ी-बड़ी वाहनों और मशीनों की कर्कश आवाज के बीच जीवन जीने को मजबूर है। आंदोलन में केते के अमीर साय सिरसो, हीरा साय ओरकेरा, मानसाय कुसरो, बुधराम कुसरो, मनबोध, कमान सिंह नेटी, पातर साय अर्मो, भोलेनाथ सिंह, धरमसाय सरपंच ग्राम पंचायत परसा, उमाशंकर उप सरपंच परसा, रघुवीर सिंह अर्मो, देवराम सिंह अर्मो, बजरंग सिंह सहित अन्य ग्रामीण शामिल रहे।
ग्रामीणों की मांग जायज-सत्यप्रकाश
इस संबंध में अदानी के वरिष्ठ अधिकारी सत्यप्रकाश से बात करने पर कहा गया कि ग्रामीणों की मांग जायज है 18 वर्ष से उपर के लोगों को नौकरी दी जायेगी। बासेन में बसाहट का काम ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है। बिजली पानी की सुविधा उपलब्ध है।