आयुष विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह का यह दिन इसलिए विशेष था कि यहां न सिर्फ देश के पांच ख्याति प्राप्त चिकित्सकों को डी.लिट. की उपाधि प्राप्त की गई बल्कि इन ख्याति प्राप्त चिकित्सकों ने उपाधि लेने वाले मेडिकल क्षेत्र के विद्यार्थियों को भी मंच से संबोधित किया।
देश के ख्याति प्राप्त आर्थोपेडिक सर्जन नई दिल्ली तथा पद्मश्री डॉ. एस. एस. यादव ने कहा कि बड़े सौभाग्य से मनुष्य का तन मिलता है, यह जरूरी है कि हम इस शरीर के महत्व को समझे, इस पर ध्यान दें और इसके माध्यम से मानवता की सेवा करें। जीवन में धन महत्वपूर्ण है लेकिन सब कुछ नहीं है। आप अपने जीवन में सफलता प्राप्त करें, समाज के प्रति अपने दायित्वों को निभाएं तथा ईश्वर के प्रति निष्ठावान बने रहें। जीवन अल्प है, आत्म चिंतन करें तथा परोपकार को जीवन में शामिल करें। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि अगर आपकी साधना सच्ची है तो ईश्वर जरूर मिलेंगे।
एन.एम.आर. एंड एम.आर.आई. जैसे नयी चिकित्सा पद्धतियों में अग्रणी भूमिका निभाने वाले डॉ. सी. एच. खेत्रपाल ने कहा कि मरीजों की बढ़ती हुई संख्या के कारण चिकित्सक इलाज में व्यस्त रहते हैं, ऐसे में अनुसंधान एवं शोध के लिए समय निकालना मुश्किल होता है। इसके लिए चिकित्सक एक दिन ’रिसर्च डे’ के रूप में कार्य करें।
देश के प्रख्यात कार्डियो-थोरेसिक सर्जन डॉ. ए. संपत कुमार ने कहा कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए शिक्षा एवं संस्कार महत्वपूर्ण और मार्गदर्शक सिद्ध होती है।
पद्मश्री आयुर्वेदाचार्य डॉ. एम.पी. पांडे ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि देश की स्वतंत्रता के बाद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रथम दीक्षांत समारोह के अवसर पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। यह परम्परा रही है कि उपाधि के उपरांत व्याख्यान नहीं दिया जाता, लेकिन विद्यार्थियों की मांग पर भी पं. नेहरू ने जब असहमति व्यक्त की डॉ. राधाकृष्णन ने उनसे कहा कि मानद् उपाधि प्राप्त करने के उपरांत आज से आप भी इस विश्वविद्यालय के विद्यार्थी हैं और इसलिए आपको मैं व्याख्यान देने के लिए विशेष अनुमति देता हूं। उन्होंने यह भी कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में समन्वित दृष्टिकोण (होलिस्टिक एप्रोच) अपनाया जाना चाहिए।