लाख की खेती पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
रायपुर, 23 दिसंबर 2013
राज्यपाल श्री शेखर दत्त आज यहां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा अकाष्ठीय वनोपज, औषधीय, सुगंधित और मसाला फसलों तथा लाख की खेती और उसके प्रसंस्करण पर आधारित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे राज्य का 44 प्रतिशत भू-भाग वनांछादित है। बंजर, पहाड़ी तथा अन्य तरह के अनुपजाऊ क्षेत्रों को मिलाने पर राज्य का 55 से 60 प्रतिशत क्षेत्र ऐसा है, जिस पर खेती नहीं होती लेकिन इन क्षेत्रों में जमीन के नीचे खनिज के रूप में और जमीन के ऊपर अकाष्ठीय वनोपज, औषधीय एवं सुगंधित पौधों के रूप में संसाधनों का खजाना है। यहां की वनस्पतियों से ऐसे उपयोगी चीजें पैदा होती हैं और इनसे ऐसे उत्पाद बनाए जा सकते हैं जो दूसरी जगह पैदा नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि यह माना जाता है कि राष्ट्रीय आय में कृषि का हिस्सा 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता लेकिन अगर हमारे राज्य में कृषि के साथ अकाष्ठीय वनोपज, औषधीय, सुगंधित और मसाला फसलों को शामिल करें तो आय का हिस्सा बढ़कर 50 प्रतिशत तक हो सकता है।
इस अवसर पर कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के रूप में सुपारी एवं मसाला विकास निदेशालय, कालीकट, केरल के संचालक डॉ. होमी चेरियन तथा छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक प्रो. एम. एम. हम्बर्डे उपस्थित थे। राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों के वैज्ञानिकगण, वन तथा अन्य संबंधित विभागों के अधिकारीगण के साथ-साथ राज्य के विभिन्न जिलों से आए लगभग तीन सौ किसान भी उपस्थित थे। कार्यक्रम के प्रारंभ में राज्यपाल श्री दत्त ने यहां पर अकाष्ठीय वनोपज, औषधीय, सुगंधित और मसाला फसलों और लाख की खेती पर लगाए गए प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया।
समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल श्री शेखर दत्त ने कहा कि मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से इस संगोष्ठी एवं परिचर्चा का होना काफी महत्वपूर्ण है। शताब्दियों से मसालों और टेक्सटाइल्स के रूप में भारत विश्व में पहचाना जाता आ रहा है। मसाले जहां वनस्पति से उत्पन्न होते हैं वहीं टेक्सटाइल भी धागे के रूप में कपास के पौधों और सिल्क ककून के रूप में पौधों से ही प्राप्त होते हैं। इसी की खोज में विदेशी आकर्षित हुए और कालीकट पहुंचे। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने वनस्पतियों का बहुत अच्छा उपयोग किया। आयुर्वेद, यूनानी और सिद्धा के रूप में जो ज्ञान उन्होंने दिया है वह आज डिजीटल फार्म में करोड़ों-अरबों बाइट्स का सूचनारूपी खजाना है। लेकिन हम इसका सदुपयोग करना भूल गए हैं। जहां लोग इसका फायदा उठा रहे हैं वह काफी अच्छे स्थिति में है। उन्होंने इस संदर्भ में केरल राज्य का उदाहरण दिया और बताया कि वहां की जीवन प्रत्याशा दर देश में सर्वाधिक है तथा 76.8 वर्ष है। हमारे राज्य के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा दर देश के औसत जीवन प्रत्याशा दर से भी कम है और केवल 64.3 साल है। इस तरह केरल में पैदा होने वाले बच्चे की औसत जिंदगी हमारे राज्य में पैदा होने वाले बच्चे की जिंदगी से 12 वर्ष अधिक होने की संभावना होती है। इस अंतर का एक प्रमुख कारण यह भी है कि केरल में आयुर्वेद के प्रति आस्था अधिक है। वे अपने भोजन में आयुर्वेद पर आधारित औषधियों-मसालों का उपयोग अधिक करते हैं। ट्रेडिशनल हेल्थ केयर वहां के लोगों की जीवन को अधिक बढ़ाने में मददगार रहा है। हमें जरूरत है कि हम अपने देश के आयुर्वेद एवं सिद्धा के रूप में प्राप्त परंपरागत एवं समृद्ध ज्ञान पर व्यापक शोध करें। उनमें उपलब्ध मालिक्यूलर स्ट्रक्चर की विशेषताएं समझें और उसके आधार पर नए-नए दवाईयों और मौलिक्यूल को ईजाद करें और उनका स्टैण्डर्ड-डाइजेशन करें। इससे आयुर्वेद एवं औषधियों पर आधारित दवाईयों की विश्वसनीयता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि इस दिशा में अमेरिका, जापान और जर्मनी जैसे अनेक देश लगातार प्रयास कर रहे हैं। इन देशों ने मूलेठी का उपयोग करते हुए हेपेटाइटिस बी की दवा बनाई है। उन्होंने कहा कि इन पर व्यापक शोध किये जाने की जरूरत है और इस कार्य में यह बेहद जरूरी है कि इससे संबंधित जितने भी विभाग या संस्थाएं जैसे – वन विभाग, वनौषधि बोर्ड आदि हैं, वे इसके लिए आगे आएं और बेहतर से बेहतर सहयोग एवं समन्वय से कार्य करें। इसके लिए राज्य के कृषि विश्वविद्यालय, वन विभाग तथा अन्य संबंधित विभागों को वर्किंग गु्रप बनाकर कार्य करना चाहिए। इसी तरह इस कार्य में भारतीय राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद, सी.एस.आई.आर, अंतरिक्ष एवं तकनीकी विभाग और राज्य के छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद आदि का सहयोग भी लिया जाना चाहिए।
राज्यपाल श्री दत्त ने वनोपजों के उत्पादन और प्रसंस्करण के माध्यम से सफलता के अनेक उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह अरब देशों में धूप और अगर का उपयोग सुगंध और स्वागत के लिए किया जाता है, जबकि ये उत्पाद भारत के वनो के हैं। इसी तरह बस्तर की तिखूर और रागी पौष्टिकता की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। देश का सर्वाधित लाख छत्तीसगढ़ में होता है। विश्व की लगभग 50 प्रतिशत इमली भारत में होती है और देश की 30 प्रतिशत इमली अकेले बस्तर में होती है। उन्होंने कहा कि अगर इमली का ग्रेवी या अन्य रूप में प्रसंस्करण किया जाए और इसी तरह यहां आंवला, बेहरा, चिरौंजी, दाल-चीनी, महुआ, तेंदूपत्ता का अधिकाधिक उपयोगी उत्पादों के रूप में सदुपयोग किया जाए तो केवल इससे न इन अंचलों के निवासियों का आर्थिक रूप से फायदा नहीं होगा बल्कि हमारे राज्य और देश का भी नक्शा बदल जाएगा। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों का विकास हमारे लिए जीवन-मृत्यु के समान है। अगर हम इनके औषधी एवं पौष्टिकता का उपयोग करने में सफल होते हैं तो यह संभव है कि केरल और छत्तीसगढ़ के बीच जीवन का जो फासला अभी 12 वर्ष है उसे हम पाटकर उसके करीब पहुंच सकते हैं।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री होमी चेरियन ने कहा कि वर्तमान समय में सुगंधित एवं मसालों के पौधों पर अनुसंधान केन्द्रित है। नेशनल हार्टिकल्चर मिशन में भी इसके उत्पादन पर जोर दिया गया है। छत्तीसगढ़ में मिर्ची, अदरख, इमली के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। उन्होंने कहा कि राज्य को इस संबंध में यथासंभव अधिकाधिक सहयोग दिये जाने का आश्वासन दिया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. हम्बर्डे ने कहा कि हर एक अक्षर, पौधा और जीव उपयोगी है। हर पौधे में कुछ न कुछ गुण होते हैं, लेकिन कुछ अधिक औषधीय गुणों वाले पौधों को औषधीय पौधों के रूप में चिन्हित किया जाता है। उन्होंने कहा कि उत्तरी गोलार्ध के देशों की तुलना में भारत की पौधे न केवल सुंदर है बल्कि सुगंधित भी हैं। इनमें औषधीय गुण भी है। उन्होंने कहा कि एलोपैथिक दवाओं में उनके एक्टिव इंग्रीडेंट का उल्लेख रहता है, लेकिन आयुर्वेदिक दवाओं में केवल उनमें शामिल औषधीय सामग्री का उल्लेख रहता है। अगर हम आयुर्वेदिक दवाओं में भी उनके एक्टिव इंग्रीडेंट का उल्लेख करें तो उससे पूरे विश्व में आयुर्वेदिक दवाओं की विश्वसनीयता एवं मान्यता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद रायपुर में एक प्रयोगशाला मौजूद है जहां उत्पादों का विश्लेषण कर उनके सक्रिय तत्वों पर खोज की जा सकती है। अगर परिषद के समक्ष ऐसे प्रोजेक्ट सामने आएंगे तो परिषद उनको सक्रिय सहयोग देने के साथ-साथ उन्हें आर्थिक सहायता देगी।
इस अवसर पर राज्यपाल श्री दत्त ने राष्ट्रीय संगोष्ठी पर आए विशेषज्ञों के लेखों पर आधारित एक स्मारिका का विमोचन किया तथा लाख एवं उनके प्रसंस्करण पर आधारित एक अन्य पुस्तिका का विमोचन भी किया। इस अवसर पर संचालक, विस्तार सेवाएं डॉ. जे. एस. उरकुरकर, संचालक, अनुसंधान डॉ. एस. एस. शाह तथा संगोष्ठी के आयोजन समिति के सचिव प्रो. गेड़ा सहित बड़ी संख्या में विशेषज्ञ एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।