दिन में गर्मी और रात में पड़ती है ठण्ड
अम्बिकापुर
देश दीपक “सचिन”
माना जाता है की फरवरी महीने में बसंत पंचमी के बाद से मौसम बदलने लगता है और गर्मी की दस्तक पड़ जाती है लेकिन इस वर्ष सरगुजा का मौसम कुछ ऐसा है की मार्च महीने के आधे बीत जाने के बाद भी सरगुजा का तापमान नहीं बढ़ रहा है, और शाम होते ही यहाँ ठण्ड बढ़ जाती है। हालाकी एक्सपर्ट कहते है की गर्मी की दस्तक बसंत पंचमी के बाद नहीं होते है अमूमन देखा जाता रहा है की मार्च में भी हल्की ठण्ड रहती है लेकिन इस वर्ष मार्च का महीना समाप्त होने को है लेकिन सरगुजा की वादियों में दिन में हल्की गर्मी और रात में कंपकपा देने वाली ठण्ड ने लोगो को परेसान कर दिया है। जाहिर है की मौसम का यह मिजाज़ पर्यावरण के असंतुलन के कारण ही बिगड़ा है। तेजी से हो रही इसके पीछे दो बड़े कारणों को दोष दिया जा सकता है। पहला पेड़ो की कटाई और दूसरा सड़को और भवनों का क्रांकीट करण है।
पेड़ कटाई से कैसे प्रभावित होता है पर्यवारण
दरअसल पेड़ो की लगातार कटाई से जंगल मैदान में तब्दील होते जा रहे है और मौसम एक्सपर्ट के मुताबिक़ खाली जमीन और पेड़ वाली जामीन में जब धुप पड़ती है तो दोनों में बड़ा अंतर होता है पेड़ वाली जमीन में धुप पड़ने से वह कम गर्म होती है और जल्दी ठंडी भी हो जाती है ठीक इसके विपरीत बिना पेड़ की खाली जमीन पर जब धुप पड़ती है तो वह अधिक गरम होती है और देर रात तक भी ठंडी नहीं हो पाती है परिणाम स्वरुप गर्मी अधिक पड़ती है और पर्यावरण असंतुलित हो जाता है।
क्रांक्रीट की सड़क व भवनों से पर्यावरण असंतुलित
वही पर्यावरण असंतुलन के दूसरे कारण पर नजर डाले तो लगातार बन रही क्रांक्रीट की सड़के और भवन भी गर्मी बढने का बड़ा कारण है। मिट्टी के मकानों की तुलना में क्रांक्रीट से बने मकान और सड़क बहोत अधिक गर्म होती है और उतनी ही देर लगती है उसे ठंडा होने में लिहाजा वातावरण में गर्मी बढ़ रही है और मौसम अपना संतुलन खो रहा है।
अक्षय मोहन भट्ट…मौसम वैज्ञानिक
मौसम वैज्ञानिक अक्षय मोहन भट्ट ने इस समबन्ध में बताया की अफगानिस्तान और पाकिस्तान में पछुआ विच्छोह चक्रवात के कारण हिमांचल और उत्तर में बर्फबारी हुई है और फरवरी और मार्च के समय उत्तरी हवाओं के सरगुजा में चलने से यहाँ ठण्ड पड़ रही है। उन्होंने बताया की ये डिस्टरवेंस अप्रैल और मई के महीने में अक्सर आता है जिससे मौसम में अचानक से बदलाव देखे जाते है। हमारे यहाँ मानसून हिंदमहासागर में उच्च दाब बनने से 1 जून को आता है और 30 सितम्बर तक उत्तर में पहुचता है इसलिए एक जून से तीस सितम्बर के समय को देश में मानसून का समय माना जाता है। उसके बाद हवाओं में उत्तर पहुचते तक दाब कम होता है और उत्तर में उच्च दाब बनने के कारण मौसम दुबारा इसी दिशा में लौटता है और उत्तर की हवाओं के यहाँ आने से मौसम ठंडा हो जाता है।
प्रिया शरण त्रिपाठी ज्योतिषाचार्य के अनुसार
जब ज़्यादातर पेड़ो के पत्ते पेड़ो के नीचे मिलते है तो हमें पता चल जाता है की पतझड़ का मौसम आ गया है। पर पतझड़ के मौसम में पत्ते झड़ क्यों जाते है ? इसका वैज्ञानिक कारण होता है तो हिन्दू पंचांग में इसके कारण भी बताये गये हैं. दरअसल, गर्मी के समय पेड़ सूरज की किरणों की मदद से अपने लिए खाना बना लेते है और कुछ खाने को संचय करके रखते है । शरद ऋतु में पेड़ो को खाना बनाने के लिए उपयुक्त रोशनी नहीं मिल पाती और वो अपने संचय किये गए खाने में ही निर्भर रहते है । परन्तु, पेड़ अपना बहुत सारा पानी पत्तो के छोटे- छोटे छेदों में से निकाल देते है । इससे पेड़ो का संचय किया गया बहुत सारा पानी नष्ट हो जाता है । इसे रोकने के लिए पेड़ उस जगह को सील कर देते है जहाँ से पत्ते पेड़ से जुड़े होते है। सील की वजह से पत्तो को उपयुक्त खाना और पानी नहीं मिल पाता, इसलिए वो पेड़ो से नीचे गिर जाते है । इस प्रकार पेड़ अपने अधिकतर पत्ते गिरा देते है ताकि उन्हें सर्दी में पानी की कमी ना हो और वो मरे नहीं। वसंत ऋतु में नए पत्ते फिर से आ जाते है और पेड़ फिर से हरे- भरे हो जाते है
एक दिन के चौबीस घंटों में होने वाले मौसम परिवर्तन से हम सब वाकिफ है। समय चक्र की यह सबसे छोटी अवधि है। व्यावहारिक रूप से इसे हम… प्रातःकाल, मध्याह्न, संध्याकाल एवं रात्रि में विभाजित करते हैं। इसी प्रकार एक वर्ष के बारह महीनों में होने वाले मौसमी परिवर्तन से हम वाकिफ हैं। समय-चक्र की इस अवधि को हम ठंड, गर्मी एवं वर्षाकाल में विभाजित करते हैं। परंतु, मौसम में होने वाले दैनिक परिवर्तन से हम नावाकिफ हैं। जैसे कि ठंड के मौसम में कौन से दिनों में शीतलहर होगी? या ग्रीष्म ऋतु में लू कब चलेगी? या वर्षा ऋतु में कौन से दिन भीगे. और कौन से शुष्क? आदि। भारतीय पंचांग की काल गणना पद्धति में सूर्य की गति के साथ ही चंद्रमा की गति को भी समायोजित किया गया है… सूर्य की गति से जहाँ साल में होने वाले ऋतु परिवर्तन की गणना की जाती है, वहीं हम चंद्रमा की गति से मौसम में होने वाले दैनिक परिवर्तन का भी अनुमान लगा सकते हैं। 1. शुक्ल पक्ष तापमान में वृद्धि का परिचायक है, और कृष्णपक्ष तापमान में कमी का। अतः अमावस के आसपास जैसे कृष्णपक्ष की त्रयोदशी (शिवरात्रि) से शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मौसम तुलनात्मक रूप से ठंडा होता है।… 2. चंद्रमा की गति से मौसम का पूर्वानुमान करते समय सूर्य की गति पर भी ध्यान रखना आवश्यक है। जैसे ग्रीष्म ऋतु में कृष्ण पक्ष में तापमान में वृद्धि होती है,.. 3. इसी प्रकार शीत ऋतु में शुक्ल पक्ष में भी तापमान में कमी हो सकती है, परंतु तापमान में कमी की दर कृष्ण पक्ष में तीव्र होगी। अतः ठंड के मौसम में शीत लहर चलने की अधिकतम संभावना पौष माह की अमावस के… 4. गर्मी के मौसम में तापमान में असीमित वृद्धि का नियंत्रण जल और वायु की गतिशीलता से होता है। अतः ज्येष्ठ माह के अमावस वाले सप्ताह में मानसून पूर्व की ठंडी हवाओं का प्रवाह आरंभ हो जाता है। पूर्णिमा वाले सप्ताह में आँधी के साथ मानसून पूर्व की बारिश होने की संभावना बनती है। 5. इसी प्रकार ठंड के मौसम में तापमान में असीमित गिरावट का नियंत्रण भी जल और वायु की गतिशीलता से होता है। अतः पौष माह के अमावस एवं पूर्णिमा वाले सप्ताह में शीतलहर की अधिकतम संभावना होती है। माघ मास के अमावस वाले सप्ताह में ठिठुराने वाली ठंडी हवा का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है। इसी प्रकार पतझर में पतों का गिरना| जब गुरु कन्या से वृश्चिक राशी तक होता है तो यह व्यय का व्यय होता है जिसके कारण तापमान का वह व्यय नहीं होने से मौसम में शीत का असर कम नहीं होने से पतों का जडो से जुडाव कम नहीं होने से पतझर की शुरुआत नहीं हो पाती है और एसा 120 साल में होता है. इस समय यही स्थिति बनी हुई है किसके कारण मौसम में बदलाव और ऋतु का गडबड दिखाई दे रहा है.