अम्बिकापुर
- खस्ताहाल सडक के सवाल पर मीडिया से कहा दस्तावेज उपल्बध कराईए तो करेंगे कारवाही
- सडक निर्माण मे 2 करोड से अधिक की आर्थिक अनियमितता का है मामला
- वन विभाग की अनुमति बगैर बना दी गई सडक
- निर्माण के एक वर्ष मे ही उखड गई करोडो की सडक
- आरटीआई कार्यकर्ता दिनेश सोनी ने मंत्री से की दोबारा शिकायत
भ्रष्टाचार की शिकायत करे तो किससे ? शायद ये सवाल उस वक्त आप के मन मे जरुर आता होगा, जब कोई सक्षम मंत्री या अधिकारी आप को लगातार कारवाही करने का आश्वासन दे रहा हो। और ऐसा ही सब कुछ हुआ है अम्बिकापुर मे । जंहा भ्रष्टाचार के एक बडे मामले मे मंत्री जी से सवाल किया गया। तो उन्होने मीडिया से ही दस्तावेज उपल्बध कराने की नसीहत दे डाली।
सेमरसोत अभ्यारण मे मुख्य मार्ग से खटवाबरदर गांव तक पक्की सडक का निर्माण 2008 मे शुरु हुआ था। लोक निर्माण विभाग द्वारा 5 फरवरी 2008 को हर्ष कंस्ट्रक्शन को वर्क आर्डर भी दिया गया। जिसमे सडक को 15 महीनो मे पूरा करने की सर्थ लिखी थी। लेकिन एक तरफ तो ये सडक चार साल बाद 28 दिसंबर 2012 को पूर्ण हुई। तो दूसरी तरफ 3 करोड 22 लाख 59 हजार की सडक के लिए ठेकेदार को ढाई करोड रुपए मतलब 5 करोड 5 लाख 63 हजार रुपए भुगतान कर दिया गया। लेकिन आरटीआई के तहत जब दस्तावेज निकाले गए, तो इस आर्थिक अनियमितता के साथ ये भी पता चला कि इस मार्ग पर सडक बनाने की अनुमति वन विभाग से भी नही मिली थी। जबकि ये अभ्यारण यानी जंगली जानवरो का विचरण क्षेत्र है। हांलाकि इसकी शिकायत आरटीआई कार्यकर्ता दिनेश सोनी ने कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ ही छत्तीसगढ के लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत से से की थी।
जंगली जानवरो के विचरण वन क्षेत्र मे भारत सरकार की अनुमति बिना सडक निर्माण संभव नही है। लेकिन अगर सडक बनी भी है तो सही सलामत होनी चाहिए । लेकिन इस मामले मे ऐसा भी नही है। दरअसल सडक निर्माण के एक वर्ष मे ही इस सडक की हालत जर्रज हो चुकी है।आलम ये है कि सडक केवल वाहनो की आवाजाही से ही नही बल्कि हाथ से भी उखाडी जा सकती है।
लेकिन खटवाबरदर वन ग्राम मे बनी गुणवत्ता विहीन सडक की शिकायत पर की गई कारवाही की बात जब हमने लोक निर्माण मंत्री से जाननी चाही । तो लोक निर्णाण मंत्री श्री मूणत ने मीडिया को जवाब देने के बजाय दस्तावेज उपल्बध कराने की नसीहत दे डाली। दरअसल मंत्री जी ने कहा कि अगर आपके पास दस्तावेज है तो उपल्बध करा दीजिए। मतलब मंँत्री जी के अनुसार जनता की समस्याओ के सवाल को पूछने से पहले अब मीडिया को उसके प्रामणिक दस्तावेज भी रखने पडेगे।
वैसे तो ये खबर और शिकायत के बाद कुछ महीने पहले सरगुजा संभाग आयुक्त ने जांच के नाम पर खाना पूर्ती जरुर कराई थी। लेकिन लोक निर्माण मंत्री जी के इस अनोखे जवाब से तो एक पुरानी कहावत ही याद आती है। खिचयानी बिल्ली खंभा नोचे।