इस स्कूल में बच्चे किताबो से नहीं बल्कि “कौड़ी” और “पांसे” से करते है पढ़ाई…!

वाड्रफनगर

प्रदेश के मुखिया द्वारा स्कूली बच्चो को बस्तों के बोझ से मुक्त करने के सपने को साकार करने के लिए जहां प्रदेश के सभी जिला कलेक्टरों ने शिक्षा कार्यालयों को बस्तों के बोझ को कम करने के आदेश दे रखे है वही सरगुजा के बलरामपुर जिले के वाड्रफनगर विकासखंड के एक स्कूल के शिक्षको ने इस दिशा में अनूठा ग्रयोग कर इस सपने को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, यहाँ बच्चे बस्तों के राखी कापी किताबो से नहीं बल्कि खेल खेल में अपनी बधाई करते है।

विकास खण्ड वाड्रफनगर के  छत्तीसगढ तथा मध्यप्रदेश के अन्तिम छोर पर बसे गॉव कोगवार का प्राथमिक शाला  इन दिनो अपनी विशेष पढाई के तरीके के लिए सुरखियो मे है ,यहॉ पदस्त दो शिक्षको ने ऐसे बच्चे जिनके पास पढाई के संसाधन नही थे, ऐसे बच्चो के लिए बस्ता विहिन माहौल विद्द्यालय में बनाया और यहॉ पढ रहे विशेष संरक्षित जनजाति पन्डो के 82 बच्चे के साथ 33  पिछडा वर्ग के बच्चो को खेलो के माध्यम से हिन्दी गणित के साथ ही अंगेजी की शिक्षा पुराने जमाने के गोटी तथा पासे के माधयम से दी जा रही है, साथ ही सभी शिक्षक कक्ष मे दिवालो पर लिखे ज्ञान चक्र को को चाक  से बैल्क बोर्ड पर लिखते है। इसके साथ ही संस्कृतिक गतिविधी, एंव विशेश कलाबाजी योगाभ्यास के लिए भी अपने पुरे संकुल मे यह विद्द्यालय चर्चित है।

वाड्रफनगर के बी ई ओ आर एल पटेल ने बताया कि वाड्रफनगर विकास खण्ड मे यह विधालय सर्व प्रथम बस्ता विहिन विधालय है । ऐसी ही शैक्षणिक गतिविधी को पूरे विकास खण्ड के शालाओ मे लाने का विचार किया जा रहा है। यह सब संभव हो सका है जब यहॉ पढाने वाले शिक्षक इन्दमन जायसवाल तथा जगमोहन कुशवाहा के अथक प्रयास तथा गॉव के पालको का सहयोग मिला।