छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय वृहद लोक अदालत 6लोक दिसंबर को निर्धारित है। जिसमें 2 लाख 24 हजार 741 प्रकरण चिन्हित किये गये है। सबसे दिलचस्प और दुर्भाग्यजनक यह है कि मनरेगा के मजदूरों को राज्य सरकार द्वारा ग्रामीणों को काम के एवज में मिलने वाले पारश्रमिक का भुगतान नहीं होने के कारण मजदूरों को लोक अदालत के माध्यम से न्यायालय का सहारा लेना प्रदेष की भाजपा सरकार की कथनी और करनी को उजागर करता है। विषेषतौर पर बलौदाबाजार क्षेत्र के कई प्रकरण न्यायालय तक पहुंच चुके है। यह परिस्थिति केन्द्र में मोदी सरकार के गठन के बाद निर्मित हुई है। कांग्रेस प्रवक्ता महेन्द्र छाबड़ा ने बताया कि ग्रामीण भारत के लिये लागू यह स्कीम गरीब जनता को 100 से 150 दिन तक रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देष्य से कांग्रेस सरकार ने आरंभ की थी, पर वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को पारिश्रमिक की राषि में हीलहवाला करने के कारण पिछड़े इलाके के मजदूरों को भुगतान करने में राज्य सरकार असहाय हो गई है। केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार से पूर्व में किये गये करोड़ों रू. के भुगतान का हिसाब-किताब मांगा गया है राज्य सरकार द्वारा खर्च किये गये रूपयों की ब्यौरा समय पर प्रस्तुत नहीं किया गया हैं इसके कारण प्रदेष के मजदूरों को राज्य सरकार से बार-बार मजदूरी मांगने के बाद भी भटकना पड़ रहा है। अब छत्तीसगढ़ के मजदूरों को अपने हक की मजदूरी के भुगतान की लड़ाई के लिये न्यायालय का सहारा लेना पड़ रहा है, यह छत्तीसगढ़ के लिये शर्मनाक एवं दुर्भाग्यजनक है। इसके साथ-साथ राष्ट्रीय वृहद लोक अदालत में प्रदेष के कई मजदूरी के भुगतान के कई प्रकरण शामिल होना केन्द्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन में राज्य सरकार के काम काज पर प्रष्न चिन्ह खड़ा करता है।
अदालत का सहारा लेना दुर्भाग्यजनक – कांग्रेस
रायपुर