आपने देखा ही होगा कि हिंदू धर्म में जब भी किसी की मृत्यु होती है तो उस व्यक्ति के साथ में श्मशान तक उसके घर परिवार तथा आस- पड़ोस के पुरूष ही जाते हैं ना कि महिलाएं, लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है? जबकि हिंदू धर्म में प्रत्येक महिला को भी पुरुष के बराबर अधिकार मिले हुए है, तब आखिर महिलाओं का श्मशान में जाना वर्जित क्यों है। आज हम आपको इस बारे में ही तथ्यों सहित पूरी जानकारी दे रहें हैं, ताकि आप इसके पीछे के असल तथ्यों को जान सकें, तो आइए जानते हैं इस बारे में…
1 – हिंदू रीति-रिवाजों के हिसाब से अंतिम संस्कार में शामिल होने वाले सभी लोगों अपने बाल कटवाने होते हैं, इसलिए महिलाओं को श्मशान जानें की अनुमति नहीं दी जाती है।
2 – महिलाओं का ह्रदय पुरुषों की अपेक्षा कहीं ज्यादा कोमल होता है इसलिए वे किसी के मर जाने पर ज्यादा दुखी होती हैं और मान्यता यह है कि श्मशान में किसी की मृत्यु पर जब कोई रोता है तो मरने वाले की आत्मा को ज्यादा कष्ट होता है, इसलिए श्मशान में महिलाओं को नहीं ले जाया जाता है।
3 – शमशान से अंतिम संस्कार कर लौटने के बाद में पुरुषों के पैर धुलवाने तथा स्नान कराने के लिए महिलाओं को पहले से तैयारी करनी होती है, इसलिए ही महिलाओं को घर पर रहना जरूरी होता है।
4 – यह भी एक मान्यता है कि श्मशान में भटकती आत्माओं का वास होता है और इस प्रकार की आत्माएं महिलाओं को अपना शिकार सबसे पहले बनाती हैं, इसलिए ही महिलाओं को श्मशान में ले जाना वर्जित किया हुआ है।
देखा जाए तो सभी लोगों की अपनी अपनी मान्यताएं हैं कुछ धर्मों में महिलाएं श्मशान में जाती हैं तो कुछ में नहीं, पर गौर से देखा जाए तो अंतिम संस्कार का कार्य अन्य सभी संस्कारों की तरह “पुरुष प्रधान” है इसमें महिला का कोई कार्य विशेष होता ही नहीं, इसलिए महिलाओं को श्मशान भूमि में ले जाने का कोई औचित्य नजर नहीं आता है।