मिशन 2023: पान दुकान से लेकर विधानसभा तक का सफर नहीं रहा आसान…1998 में पहली बार टिकट मिला तो चुनाव लड़ने के लिए नहीं थे पैसे, जमीन बेचकर चुनाव लड़े…इस विधानसभा से भी चुनाव लड़ने का मिला था आफर…

@संजय यादव

जांजगीर चांपा। जांजगीर चांपा विधानसभा के बीजेपी के वरिष्ठ विधायक एवं नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल की राजनीति करियर की बात करें तो कई दिलचस्प किस्से सामने आते हैं. उनका राजनीतिक कैरियर की शुरुआत जांजगीर के पान दुकान से लेकर विधानसभा तक सफर यूं आसान नहीं रहा. इस राजनीति सफर के बीच कई उतार चढ़ाव देखने को भी मिला. लेकिन सहज अंदाज से नारायण चंदेल आगे बढ़ते गए, आज उनके मेहनत का ही प्रतिफल है जो आज इस मुकाम तक पहुंचे है. राजनीति की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लेकर नेता प्रतिपक्ष का पद पाना किसी भी जन प्रतिनिधि के लिए आसान नहीं होता. पहली बार जब 1998 में भारतीय जनता पार्टी से विधानसभा के लिए टिकट मिला तब से लेकर अब तक लगातार पार्टी छ्ठवी बार भी टिकट देने जा रही है जिसमें तीन बार जीत हासिल किए हैं. आज छत्तीसगढ़ प्रदेश की नेता प्रतिपक्ष के पद पर हैं.

नारायण चंदेल पहली बार 1998 में मध्य प्रदेश विधान सभा के लिए चुने गए थे। मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के बाद, उन्होंने उसी निर्वाचन क्षेत्र से 2003 छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मोती लाल देवांगन से 7,710 मतों के अंतर से हार गए. फिर से, उन्होंने 2008 का विधानसभा चुनाव जीता और छत्तीसगढ़ विधानसभा में उपाध्यक्ष बने। 2018 में, चंदेल कांग्रेस पार्टी के मोती लाल देवांगन को 4,188 मतों के अंतर से हराकर फिर से विधानसभा के लिए चुने गए।

नारायण चंदेल पहली बार टिकट पाने का प्रयास 1993 में किया पर सफलता नहीं मिली. लेकिन 1998 में भाजपा के पितृपुरुष लक्खीराम अग्रवाल से खरसिया में मिलकर फिर चांपा विधानसभा के लिए दावेदारी पेश की. तब भाजपा के पितपुरुष लखीराम अग्रवाल ने कहा कि पामगढ़ ज्यादा उपयुक्त है, आप पामगढ़ से विधानसभा चुनाव लड़ो और सोच कर बताओ. लेकिन नारायण चंदेल राजी नहीं हुए, वे चांपा विधानसभा से चुनाव लड़ना चाहते थे. अगले दिन फिर लखीराम के सामने उपस्थित हुए तो अर्जी मान ली गई और टिकट चांपा से दे दिया गया। चुनाव लड़ने के लिए नारायण चंदेल के पास संसाधन नहीं थे एक संयुक्त परिवार में रहने के कारण एक सामान्य से पान की दुकान थी, वही खेती किसानी कर गुजारा चलता था किसी तरह चुनाव में अपने नाम से जमीन बेची, मित्रों से मदद ली, क्योंकि सामना आर्थिक रुप से सुदृढ़ कांग्रेस प्रत्याशी मोती लाल देवांगन से था. तमाम शंकाओं के बीच परिणाम पक्ष में आया और अविभाजित मध्यप्रदेश में चांपा क्षेत्र के विधायक के रुप में भोपाल विधानसभा किसान का बेटा नारायण चंदेल पहुंचा।

प्रारंभिक जीवन नारायण चंदेल कि वैचारिक और राजनीतिक विचारधारा उन्हे विरासत में मिली है. पिता जनसंघ और आरएसएस से जुड़े थे. बड़े भाई गौरीशंकर शाखा के तृतीय वर्ग के लिए नागपुर से प्रशिक्षित हो चुके थे तभी अचानक इमरजेंसी आ गई, पिता स्व जंगीराम चंदेल को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने उन्नीस माह बिलासपुर जेल में बिताए संयुक्त और बड़ा सामान्य कृषक परिवार और व्यापार के नाम पर पान का ठेला, पूरा परिवार आक्रांत और झंझावातों में घिर गया, माह में एक दिन पिता से मिलने पूरा परिवार सुबह की एकमात्र पैसेंजर ट्रेन से बिलासपुर जेल जाया करता था। तब आठवीं पढ़ रहे बालक के मन ये सवाल अक्सर उठता कि आखिर पिता का अपराध क्या है. अभी बचपना ही था कि वह इस राजनीति द्वंद की वजह समझ नहीं पाए बार-बार उनके मन में यह सवाल कौन्ध रहा था कि ऐसे क्या अपराध पिताजी ने किया जिसके चलते उनका यह सजा मिली है.

नारायण चंदेल ने हार जीत संघर्ष के अकाट्य हिस्से हैं और उससे विचलित या उत्साहित ना होकर संयम रखना राजनीति की प्रथम शर्त है, उन्होंने एक वाकये का जिक्र करते हुए 2013 में मतदान की पुर्व रात्रि वो एक डॉक्टर से मिलने गये, डॉ ने बीपी टटोली तो 120/80 निकली। डॉ हतप्रभ थे उन्होंने मशीन चेक कर दुबारा नाप लिया रिजल्ट वही डॉ ने मतदान के ठीक पहले इतना सामान्य कोई कैसे हो सकता है। तब जवाब दिया गया कि मै कार और कटोरी दोनों के लिए तैयार हूं। यानि जीत हो या हार इस पर बस नहीं है कर्म में कमी नहीं की यही आश्वस्ति बीपी में दिख रही है।1998 में नारायण चंदेल के लिए राजनीति सफर का पहली सफलता की सीडी थी जिसमे चडने वे सफल हुए. जब उन्हें चांपा की जनता ने अपार प्यार और दुलार दिया और वे भारी मतों से जीतकर पहली बार विधायक बने.