[highlight color=”orange”]”जब आप अपने आस-पास कोई बदलाव देखना चाहते हैं तो शुरुआत खुद ही करनी पड़ती है. आप कदम बढ़ाएंगे, तभी लोग साथ आएंगे और दुनिया थोड़ी और खूबसूरत लगने लगेगी.” [/highlight]
कुछ ऐसा ही सोचते हैं रायपुर के नौजवान उद्यमी प्रियंक पटेल. प्रियंक यूं तो पेशे से इंजीनियर हैं, जिन्होंने लाखों का पैकेज छोड़कर ‘नुक्कड़’ नाम से चाय कैफे (टीफे) शुरू किया. उन्होंने यहां ऐसे लोगों को जॉब दी है, जो बोल या सुन नहीं सकते हैं. इसके लिए खुद ट्रेनिंग लेकर उन्होंने साइन लैंग्वेज समझी. नुक्कड़ में आने वाला हर कस्टमर लिखकर ऑर्डर देता है.
करीब ढाई साल पहले शहर में खास तरह की चाय की दुकान खोलने वाले प्रियंक पटेल कुछ अलग करना चाहते थे. उन्होंने कस्टमर से ऑर्डर लेने का जिम्मा नीलेश को सौंपा. 26 साल के नीलेश बोल और सुन नहीं सकते, लेकिन कुछ नया करने की चाहत में प्रियंक ने इंटरनेट से साइन लैंग्वेज के बेसिक सीखे और नीलेश को ट्रेनिंग दी. ऑर्डर देने के लिए कस्टमर को कॉपी-पेन पकड़ाने के साथ ही अपने मेन्यू में प्रियंक ने प्रिंट करा दिया कि ये बोल-सुन नहीं सकते, इसलिए लिखकर बात करें और इन्हें पूरा सहयोग दें.
शुरुआत में कोई कस्टमर कभी गलत व्यवहार करता, तो प्रियंक खुद पहुंच जाते और कस्टमर से रिक्वेस्ट करते कि इन लोगों से ठीक से पेश आएं. कुछ लोग मान गए, कुछ से झगड़ा हुआ लेकिन वे जुटे रहे. आज प्रियंक के दो टीफे में करीब 6 ऐसे युवा काम कर रहे हैं, जो इशारों में या लिखवाकर ऑर्डर लेते हैं. कुछ इतने ट्रेंड हो चुके हैं कि इशारों में ही कस्टमर को समझा देते हैं कि जो फूड वो आर्डर करना चाह रहे हैं, वो कैसा होगा.
इस कैफे में चाय, खाना आदि सर्व किया जाता है, साथ ही बातचीत करने का खूबसूरत माहौल भी यहां मिलता है. प्रियंक की टीम रोचक मुद्दों पर बहस भी आयोजित करती है, जिसमें वहां आने वाले लोग भाग लेकर अच्छा समय गुज़ार सकते हैं.
प्रियंक कहते हैं, ‘मैंने कभी नहीं चाहा कि नुक्कड़ महज़ रेगुलर आने वाले लोगों के लिए ऐसी जगह बने, जहां लोग चाय पिएं और चले जाएं. मैंने चाहता था कि लोग नुक्कड़ का अनुभव करें, अपने आस-पास के लोगों के जीवन के बारे में जानें, सीखें.’
जो कस्टमर्स यहां आने के बाद अपना फोन मैनेजमेंट के पास जमा कर देते हैं, उन्हें डिस्काउंट मिलता है. प्रियंक चाहते हैं कि लोग फोन में लगे रहने के बजाय एक-दूसरे से या अंजन लोगों से बातचीत करें.
कस्टमर्स यहां पर एक बुक जमा करके दूसरी बुक को घर पर पढने के लिए तीन दिन के लिए ले जा सकते हैं.
Tea and Tones नामक एक प्रोग्राम भी यहां होता है, जिसमें लोग माइक लेकर कविता सुना सकते हैं.
Bill by Dil ये कैफे अपनी सालगिरह के मौके पर ख़ास पेशकश करता है. इस दिन कस्टमर्स को खाली लिफाफे बिल के तौर पर दिए जाते हैं और वे जितने पैसे चाहें, अपनी मर्ज़ी से दे सकते हैं.
यहां उन कस्टमर्स को अपनी पसंद की एक डिश फ्री में ऑर्डर करने का मौका मिलता है, जो अपनी मां को साथ ले आते हैं.
प्रियंक कहते हैं, “ये लोग हमसे अलग नहीं हैं, यह समझने के लिए पब्लिक करेक्टिव फील्ड में इनका आना ज़रूरी है. पहले ये सिर्फ सरकारी जॉब में जाना चाहते थे, लेकिन यहां मिलने वाला डिफरेंट एक्सपीरियंस इन्हें अच्छा लगने लगा है. बोल और सुन नहीं सकते, लेकिन एजुकेटेड हैं. मैं खुद इनके साथ लोगों को खाना सर्व करता हूं, तो इन्हें ये फील नहीं होता कि अच्छी फेमिली से होकर ये कोई छोटा काम कर रहे हैं. इनकी मांग पर एक साल तक सर्विस देने के बाद मैंने अपने यहां सैलरी के साथ पीएफ भी शुरू कर दिया है.”