राज्य के कई इलाके ऐसे हैं, जहां बंदूक का होना प्रतिष्ठा का विषय है, लिहाजा लोग हर हाल में बंदूक का लाइसेंस चाहते हैं। बात राजगढ़ की ही करें तो यहां भी एक वर्ग बंदूक रखने को लालायित रहता है। यहां हर वर्ष 700 से ज्यादा आवेदन बंदूक के लाइसेंस के लिए आते हैं। वर्तमान में साढ़े सात हजार से ज्यादा बंदूकधारी लाइसेंस वाले हैं।
जिलाधिकारी तरुण पिथोड़े ने कहा, “जो लोग 50 हजार रुपये की बंदूक खरीद सकते हैं, वे क्या कुछ हजार रुपये शौचालय के निर्माण पर खर्च नहीं कर सकते। लिहाजा इसी बात को ध्यान में रखकर तय किया गया है कि जो भी व्यक्ति बंदूक के लाइसेंस का आवेदन देगा, उससे यह जरूर पता किया जाएगा कि उसके घर में शौचालय है या नहीं। नहीं होने पर उसे शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित किया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि प्रशासन ने तय किया है कि आवेदन के साथ घर में शौचालय होने का प्रमाण देना होगा, उसके बाद इस बात का सत्यापन कराया जाएगा कि संबंधित व्यक्ति के घर में शौचालय है या नहीं। इसी के बाद ही बंदूक का लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
पिथोड़े ने कहा, “स्वच्छता सभी के लिए जरूरी है, इसलिए जिला प्रशासन खुले में शौच की बुराई पर लगाम लगाने के लिए प्रयासरत है। इसके लिए जनजागृति अभियान भी चलाया जा रहा है। बंदूक की चाहत रखने वालों के तो घर शौचालय होना ही चाहिए, यह तय किया गया है।”
ज्ञात हो कि राज्य में गांवों को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए तरह-तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं। कई मामले ऐसे सामने आते हैं, जहां आर्थिक तौर पर संपन्न परिवारों के घरों में भी शौचालय नहीं है। बीते दिनों सीहोर जिले में तो एक ऐसा मामला सामने आया, जहां एक किसान अपनी बहू को लेने हेलीकॉप्टर से जा रहा था, मगर उसके भी घर में शौचालय नहीं था। बाद में प्रशासन की पहल पर उस किसान ने अपने घर में शौचालय बनाया, तब कहीं जाकर वह बहू को हेलीकॉप्टर से ला पाया था।