- जल संकट की अजीब दास्तां
- दिन मे जानवर और रात को इंसान पीते है पानी
- एक ही जल स्त्रोत पर दोनो हैं आश्रित
भीतरसौनी गांव से लौटकर दीपक सराठे
अम्बिकापुर/ बलरामपुर गिरता जल संकट पूरे देश मे चिंता का विषय बना हुआ है, लेकिन छत्तीसगढ के बलरामपुर जिले मे जल संकट की स्थिती ऐसी है कि यंहा एक जुगाड के जल स्त्रोत से इंसान और जानवर दोनो अपनी प्यास बुझाते है। यंहा दिन मे उसी जल स्त्रोत से जानवर और रात मे इंसान पानी पीता है। सुनने मे ये अजीब जरुर लगेगा लेकिन ये एक ऐसी कडवी हकीकत है जिसके सामने शासन प्रशासन दोनो के समग्र विकास के दावे बौने व खोखले साबित हो रहे है।
बलरामपुर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर स्थित भीतर सौनी गांव सूदूर पहाडियो के बीच बसा एक ऐसा गांव है जंहा नक्सल शांति के पहले माओवादियो का स्थाई निवास हुआ करता था । लेकिन अब संरक्षित जनजाति कोडाकू बाहुल्य इस गांव मे जल संकट का ये आलम है कि यंहा पहाड के नीचे स्थित एक छोटे से जल स्त्रोत पर गांव के जानवर और इंसान दोनो आश्रित है। दिन को जंहा इस जल स्त्रोत से गांव के पालतू जानवर अपनी प्यास बुझाते है तो वही दिन ढलने के बाद इंसान अपनी प्यास बुझाने के लिए यंहा से पानी ले जाते है। दरअसल दिन मे जानवर के पानी पीने की वजह से ये पानी गंदा हो जाता है और शाम ढलने के बाद पानी के साफ होने पर इसे भरने गांव की महिलाए कतार बद्द होकर यंहा पंहुचती है और अगले 24 घंटे के लिए अपने अपने बर्तनो मे पानी भरकर ले जाती है। जानकर आश्चर्य होगा कि इस गांव के लोग भालू, जंगली सुअर, और बाघ जैसे जानवरो की चहलकदमी से दिन मे भी भयभीत रहते है। और गांव मे बिजली भी आज तक नही पंहुच सकी है। ऐसे मे पहाड किनारे स्थित जल स्त्रोत से रात के अंधेरे मे पानी भरना कितना खतरनाक हो सकता है ये भीतर सौनी गांव वालो से बेहतर कोई नही समझ सकता है।
इस खबर की हकीकत जानने जब फटाफट न्यूज पोर्टल की टीम गांव पंहुची तो पता चला कि गांव मे तकरीबन 40 खपैरलनुमा घर दिखे, जिसमे तकरीबन 200 महिला, पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग निवास करते है। कोडाकू जाति के इस गांव मे एक तालाब है जिसमे बरसात के दो महीनो मे ही पानी रहता है । अन्य माह मे गांव के लोगो को नहाने तक का पानी नसीब नही होता है। नहाने के लिए गांव के लोग दो किलोमीटर दूर स्थित ढोढी मे जाते है। इतना ही नही जब हमने पीने के पानी के बारे मे लोगो से जानना चाहा तो ग्रामीण हमे उस स्थान पर ले गए जंहा से वो पीने का पानी भरते है। लेकिन खडी दोपहर मे जब हम वंहा पहुचे तो वंहा पर गांव के गाय, बैल, सुअर ,कुत्ता जैसे जानवर पानी पीते नजर आए। इस तस्वीर को देखने के बाद हम गांव मे रात तक रुके और शाम ढलते ही जैसे ही अंधेरा हुआ, तो गांव की महिलाए हाथ मे खाली बर्तन लिए हुए कतारबद्द उसी पानी के स्त्रोत की तरफ जाती दिखाई दी , साथ ही उनकी सुरक्षा के लिए गांव के पुरुष और बच्चे हाथ मे टार्च व कुल्हाडी लिए हुए थे। इस दौरान पहाड किनारे जंगल के बीच स्थित जल स्त्रोत मे पानी भर रही गांव की महिला समुद्री बाई से जब हमने उनके रात मे पानी भरने की कहानी पूंछी तो उन्होने बताया कि गांव का ये एकलौता जल स्त्रोत है जिससे दिन मे जानवर और रात मे हम गांव वाले अपनी प्यास बुझाते है। इसके बाद हमने जब रात मे पानी भरने की इस अजीब प्रथा के बारे मे जानना चाहा तो महिला ने बताया कि दिन मे जानवर के पानी पीने से पानी गंदा हो जाता है और रात होते ही पानी के कचरा नीचे बैठ जाता है और वो पानी कुछ हद तक हम इंसानो के पीने लायक हो जाता है।
तत्काल शुरु होगा काम – कलेक्टर
भीतरसौनी गांव मे इस अजीब से जल संकट के बारे मे जब बलरामपुर कलेक्टर अवनीश शऱण से बात की गई तो उन्होने कहा कि मामले की जानकारी आप के माध्यम से हुई है। मै इस पर विभाग के अधिकारियो से संपर्क कर गांव मे अधिकारियो की टीम भेजी जाएगी। गांव मे पीएचई के माध्यम से हैण्डपंप लगवाने की पहल की जाएगी। इसके लिए गांव को सक्षम बनाने मूलभूत और 14वे वित्त की राशि का उपयोग कराना सुनिश्चित किया जाएगा।