महाराष्ट्र
हाल ही में संपन्न हुए बीएमसी चुनाव के परिणाम ने सियासत में एक नई हलचल पैदा कर दी है. किसी अकेली पार्टी को बहुतम नहीं मिलने के कारण मेयर बनने का गणित गड़बड़ाया हुआ है. लेकिन एक बात तो तय है कि अगर शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन नहीं होता है तो बिना कांग्रेस के समर्थन के बगैर बीएमसी में मेयर नहीं बन सकता.
बीजेपी से हट कर सिर्फ एक ही समीकरण दिखता है कि शिवसेना, कांग्रेस से हाथ मिला ले. अब सवाल ये है कि क्या ऐसा हो सकता है, क्या वैचारिक मतभेद वाली दो पार्टियां एक हो सकती हैं? अगर दोनों पार्टियां एक हो जाती हैं तो इसके मायने क्या होंगे?
गठबंधन को लेकर कांग्रेस का बयान
मुंबई कांग्रेस के नेता असलम शेख का कहना है कि कांग्रेस पार्टी एक सेक्यूलर पार्टी है. ना तो वो शिवसेना को समर्थन देगी ना भारतीय जनता पार्टी को. लेकिन वक्त क्या चाहता है, मुंबई क्या चाहती है, और क्या होना चाहिए, उसके ऊपर जरूर चर्चा होगी.
मुंबई कांग्रेस के नेता असलम शेख शिवसेना से गठबंधन होने की बात से इनकार कर रहे हैं. लेकिन थोड़ी गुंजाइश भी उन्होंने छोड़ दी है. वैसे मुंबई के राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा हो रही है कि दोनों पार्टियां की पर्दे के पीछे बातचीत शुरू हो चुकी हैं.
कांग्रेस और शिवसेना को लेकर क्या कहते हैं एक्सपर्ट
वरिष्ट पत्रकार धर्मेंद्र जोरे का कहना है कि कांग्रेस के साथ संबंध मधुर बनाने का शिव सेना प्रमुख उद्धव जी ने 10-15 दिन पहले चालू किया था. जब उद्धव ठाकरे ने मोदी सरकार को फटकार लगाई थी. लेकिन उसी दौरान उद्धव ठाकरे ने मनमोहन सिंह और कांग्रेस की यूपीए सरकार को सराहा था. जोरे ने यह भी कहा कि बीजेपी को दूर रखने के बहाने दोनों पार्टियां (शिवसेना-कांग्रेस) साथ आ सकती हैं.
कांग्रेस ने की थी शिवसेना की मदद
शिवसेना को खडे होने में कांग्रेस ने एक अहम भूमिका निभाई थी. 60 के दशक में मुंबई की ट्रेड यूनियनों में कम्युनिस्टों का दबदबा था, जिसे खत्म करने के लिये कांग्रेस ने शिवसेना को बड़ा होने दिया.
शिवसेना और कांग्रेस के इमेज में हैं अंतर
लेकिन यहां पर बड़ा सवाल ये है कि वैचारिक तौर पर विरोधी पार्टियां शिवसेना और कांग्रेस साथ कैसे आएंगी. शिवसेना कट्टर हिंदुत्व की पैरवी करती है तो वहीं कांग्रेस की इमेज एक सेकुलर पार्टी की है. सियासी जानकारों का कहना है कि बीजेपी को दूर रखने के बहाने दोनो साथ आ सकतीं हैं