दिल्ली
जमीन अधिग्रहण के बाद किसान को मुआवजा देने के अदालती आदेश की जब रेलवे ने अवहेलना कर दी, तो अदालत ने देश के प्रसिद्ध रेलगाड़ियों में शुमार स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस को ही किसान के नाम कर दिया. यह रेलगाड़ी अमृतसर से नयी दिल्ली के बीच परिचालित की जाती है. दिलचस्प बात यह है कि अदालत ने किसान को इस पूरी ट्रेन को ही घर ले जाने का आदेश दिया है. दरअसल, लुधियाना के जिला एवं सत्र न्यायाधीश जसपाल वर्मा ने ट्रेन संख्या 12030 को किसान के नाम कर दिया.
मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, कोर्ट को ये फैसला सुनाने के लिए तब मजबूर होना पड़ा, जब रेलवे ने पीड़ित किसान को एक करोड़ पांच लाख रुपये का बढ़ा हुआ मुआवजा देने के अदालती आदेश की अवहेलना की. अदालत ने अपने आदेश में स्टेशन मास्टर के कार्यालय को भी जब्त करने के आदेश दिये हैं. अदालत के आदेश के बाद अब यह ट्रेन लुधियाना जिले के कटाना गांव निवासी किसान समपूरण सिंह की हो गयी, लेकिन फिलहाल किसान इस ट्रेन को अपने घर ले जाने में असमर्थ है.हालांकि, ट्रेन पर अपना कब्जा लेने के लिए जब किसान संपूरण सिंह अपने वकील के साथ स्टेशन पर पहुंचे और उन्होंने कोर्ट के आदेश को रेल ड्राइवर को भी सौंपा, तो रेलवे के सेक्शन इंजीनियर प्रदीप कुमार ने सुपरदारी के आधार पर ट्रेन को किसान के कब्जे में जाने से इनकार कर दिया. फिलहाल, यह ट्रेन कोर्ट की संपत्ति है.मामला 2007 में लुधियाना-चंडीगढ़ रेलवे लाइन के निर्माण का है. अदालत ने लाइन के लिए अधिगृहित की जमीन का मुआवजा 25 लाख प्रति एकड़ से बढ़ाकर 50 लाख प्रति एकड़ कर दिया गया था. इस हिसाब से संपूरण का मुआवजा 1 करोड़ 47 लाख बनता था, लेकिन रेलवे ने उसे मात्र 42 लाख रुपये दिये. 2012 में इस मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई थी, लेकिन फैसला आते-आते 2015 आ गया.
रेलवे ने फिर भी इस रकम का भुगतान नहीं किया. इसके बाद किसान अदालत के आदेश का पालन सुनिश्चित करवाने के लिए फिर से कोर्ट की शरण में गया. इसके बाद लुधियाना जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने यह फैसला सुनाया. कोर्ट के इस आदेश के बाद रेलवे के डिवीजनल मैनेजर अनुज प्रकाश ने कहा कि इस किसान को मुआवजे में दी जाने वाली रकम को लेकर कुछ विवाद था, उसे सुलझाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने ये भी कहा कि अदालत के इस आदेश की समीक्षा कानून मंत्रालय कर रहा है.