- संस्कृति के संरक्षण के लिए पंच परमेश्वर फिर से हों स्थापित
जशपुरनगर (तरुण प्रकाश शर्मा) नई पंचायती व्यवस्था में पंच परमेश्वर के पांच प्रमुख अंगों में से चार उपेक्षित रह गए हैं। सिर्फ कोटवरों को सरकार मानदेय दे रही है जबकि पंच परमेश्वर के पांच अंगों में बैगा, पुजार, महतो और पटेल भी शामिल हैं। इन्हें भी सरकार की ओर से मानदेय मिलना चाहिए। कोटवारों का मानदेय भी संतोषजनक नहीं है। हम इनकी मानदेय की मांग सरकार के समक्ष रखेंगे। संस्कृति के संरक्षण के लिए पंच परमेश्वर को फिर से स्थापित होने की आवश्यकता है। उक्त बातें आॅपरेशन घर वापसी के अखिल भारतीय प्रमुख प्रबल प्रताप सिंह जूदेव ने कही।
आॅपरेशन घर वापसी के प्रमुख प्रबल प्रताप ने पुरातन पंचायती व्यवस्था को सामने रखा है जिसे अब प्राय: लोग भूल चुके हैं। पहले इसी व्यवस्था के आधार पर पंचायतों का संचालन होता था। प्रेस विज्ञप्ति जारी कर श्री जूदेव ने इस व्यवस्था को फिर से स्थापित किए जाने का मांग उठाई है। इस संबंध में बहुत जल्द मुख्यमंत्री व सांस्कृतिक मामलों के मंत्री से मुलाकात कर उन्हें अवगत कराने की बात प्रबल ने कही। प्रबल ने कहा कि जिला सहित देशभर की ग्रामीण व्यवस्था में जब से बदलाव आए हैं आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों की पुरातन संस्कृति खतरे में पड़ती जा रही है। पाश्चात्य सभ्यता गांव तक हावी दिख रही है। लोग बिना सोचे समझे अपनी संस्कृति धरोहर को नष्ट करने लगे हैं जिसका पाश्चचात्य देश अब अनुकरण करना चाहते हैं उसे हम छोड़ रहे हैं। यह बड़ी विडंबना है।
क्या है पंच परमेश्वर की पंचायती व्यवस्था
प्रबल ने बताया कि पहले ग्रामीण स्तर पर धार्मिक अनुष्ठान एवं शादी विवाह के लिए बैगा हुआ करते थे। जो आज भी गांव में धार्मिक अनुष्ठान करवाते हैं। परंतु अन्य अनुष्ठान एवं कार्यों के लिए जो व्यवस्था थी वह लगभग विलुप्तप्राय हो गई है। इसमें पुजार-जो बैगा के धार्मिक अनुष्ठान के लिए सामग्री एकत्र करने का काम करते थे एवं महतो जो धार्मिक अनुष्ठान की सूचना ग्रामवासियों तक पहुंचाने का काम करते थे, लगभग विलुप्त हो चुके हैं। ग्राम स्तर पर पहले पटेल भी सक्रिय थे जो कि राजस्व वसूली का कार्य करते थे। कोटवार जो सरकार की योजनाओं व आवश्यक सूचनाओं की जानकारी ग्रामवासियों को देते थे।
[toggle title=”मानव तस्करी व पलायन जैसी समस्याओं का निकलेगा स्थाई हल ” state=”open”]प्रबल ने बताया कि पंच परमेश्वर में से कोटवार आज भी सरकार के लिए कार्य कर रहे हैं और सरकार उन्हें प्रतिमाह मानदेय दे रही है। जिससे वह व्यवस्था आज भी कायम है। परंतु बैगा, पुजार, महतो और पटेल को इस नई पंचायती व्यवस्था में उपेक्षित रखा गया है। जिससे कई तरह की सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो रही है। इनके बहाल होते ही सरकार को भी उन समस्याओं से निपटने में काफी मदद मिलेगी। विशेष तौर पर मानव तस्करी, पलायन व सांस्कृतिक छेड़छाड़ जैसी समस्याओं का स्थाई हल निकलेगा। लोकगीत, लोक नृत्य, परंपरागत वेशभूषा के प्रति युवाओं में रूचि बढ़ेगी एवं अन्य सामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। [/toggle]
[toggle title=”बैगा होता है ग्रामसभा का पदेन अध्यक्ष ” state=”open”]मालूम हो कि आदिवासी बाहुल्य पड़ोसी राज्य झारखंड में सरकारी व्यवस्था के तहत बैगा का महत्व कम नहीं हुआ है। आज भी ग्राम पंचायत की सभाओं में बैगा स्थायी तौर पर सभा का पदेन अध्यक्ष होता है। प्रबल ने बताया कि गांव की पुरानी व्यवस्था के अनुरूप बैगा जातिवर्ण के आधार पर नहीं बनते बल्कि समाज के किसी भी वर्ग से इनका चुनाव सामाजिक तौर पर किया जाता है। यह अनुकरणीय है। इससे सामाजिक समरसता भी बनी रहती है। [/toggle]