अम्बिकापुर… आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिले मे उच्च शिक्षा को सशक्त बनाने के उद्देश्य से खोले गए सरगुजा विश्वविद्यालय की प्रशासनिक क्षमता पर लगातार सवाल खडे हो रहे है.. कभी विश्वविद्यालय की फर्जी डिग्री बाजार मे बेंची जाती है.. तो कभी यहां संचालित कोर्स की मान्यता को लेकर हंगामा होता है.. मौजूदा मामला बीएड प्रथम वर्ष के नतीजे नही आने और नतीजे आने के पहले ही दूसरे वर्ष की पढाई शुरु होने से जुडा है..
हमने नहीं दी है अनुमति.. कुलसचिव
सरगुजा विश्वविद्यालय के अधीन सरगुजा संभाग मे दर्जनो महाविद्यालय और संस्थान संचालित है.. लेकिन इनमे से ज्यादातर विश्वविद्यालय प्रबंधन की सांगगांठ के कारण मनमाने तरीके से संचालित हो रहे है… दरअसल सरगुजा विश्वविद्यालय ने अभी तक बीएड प्रथम वर्ष से नतीजे घोषित नही किए है.. लेकिन कुछ महाविद्यालय बिना नतीजे आए ही दूसरे वर्ष की पढाई शुरु कर दी है.. लेकिन जानकारी के मुताबिक अगर बीएड की छात्र एक विषय से ज्यादा मे फेल हो जाता है.. तो फिर वो दूसरे वर्ष मे प्रमोट नही हो सकता है.. लेकिन सरगुजा विश्वविद्यालय के अधीन संचालित तीन बीएड कालेज मे संचालित ऐसी क्लास के बारे मे विश्वविद्यालय के कुल, सचिव विनोद एक्का को कोई जानकारी नही है और उनके मुताबिक उन्होने ऐसी कक्षाए संचालित करने के लिए कोई आदेश नही दिए है… हालांकि रजिस्टार महोदय ने अपनी उस गलती को छिपा लिया.. जिससे ये स्थिति निर्मित हुई है.. मतलब परीक्षा और नतीजों मे लेट लतीफी…
परीक्षा होती है देर से..
बीएड के नतीजे आने के पहले ही कक्षाए संचालित करने का मामला सिर्फ इस साल का नही है.. बल्कि पिछले साल भी ऐसा ही हुआ था और जब रिजल्ट आया तो एक विषय से ज्यादा फेल बीएड छात्र छात्राओ ने इस बात को लेकर विरोध जताया था कि उन्होने दूसरे साल की पढाई दो तीन महीने कर ली है.. इसलिए उनको प्रमोट किया जाए.. खैर जब हमने इस साल बिना नतीजे आए संचालित बीएड द्वितीय साल की छात्राओ मे से एक डाली शर्मा नाम की छात्रा से बात करने पर उन्होने इसके लिए विश्वविद्यालय प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि अगर परीक्षाए जल्दी हो जाए तो नतीजे भी जल्दी आ जाते औऱ ऐसी स्थिती नही बनती… डाली के मुताबिक परीक्षा अगर अप्रैल मे हो जाती और नतीजे मई जून मे आ जाते तो ये नौमत ना आती…
गौर करने वाली बात है अपनी परीक्षा प्रणाली और देर से नतीजे घोषित करने के लिए बदनाम सरगुजा विश्वविद्यालय को संचालित होते तकरबीन एक दशक पूरे होने वाले होंगे… लेकिन अभी तक आम लोग ये महशूश नही कर पाए हैं… कि सरगुजा विश्वविद्यालय है या फिर कोई बदनाम पाठशाला… बहरहाल अब देखना ये है कि जो महाविद्यालय बिना नतीजो के बीएड के छात्र छात्राओ को उत्तीर्ण मान कर दूसरे साल की पढाई करवा रहा है.. क्यो वो छात्र छात्राओ को उस आक्रोश के लिए तैयार है.. जो नतीजो के बाद पनप सकता है…….