बलरामपुर..जिले की रामानुजगंज विधानसभा सीट पर जिस तरीके से भाजपा पार्टी ने प्रत्याशी चयन को लेकर कशमकश की थी..आज उसी भाजपा को इस सीट से भाजपा प्रत्याशी को जीत दिलाने में जद्दोजहद करनी पड़ रही है..पहले कभी यह सीट भाजपा की हुआ करती थी..और रामविचार नेताम इस सीट से विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते थे..पर समय के साथ सब कुछ बदल गया ..इस सीट से प्रत्याशी चयन के बाद कई ऐसे नेता उभर कर आये जो कही ना कही रामविचार नेताम के समर्थक रहे और रामविचार को टिकट ना मिलने पर खुद ही चुनाव के मैदान में निर्दलीय कूद पड़े..हालांकि रामविचार नेताम के मनाने पर दो निर्दलीय मान भी गए..लेकिन अब भी एक चुनाव मैदान मे है.
दरसल प्रदेश में रामानुजगंज विधानसभा सीट वर्ष 2008 में अस्तित्व में आया..जो कभी पाल सीट के नाम से जाना जाता था..जिसे विलोपित कर दिया गया..जिसके कुछ हिस्से अब प्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र में आते है..और विधानसभा चुनाव में तब से लेकर अब तक भाजपा के रामविचार नेताम बनाम कांग्रेस के बृहस्पत सिह के बीच मुकाबला हुआ करता था ..जिसमे 2008 का चुनाव भाजपा के रामविचार जीते तो 2013 मे बृहस्पत सिंह जीत कर आये. पर अब राजनीति के ध्रुवों ने अपनी ग्रह दशा बदल दी है. इस बार के चुनाव में कांग्रेस के बृहस्पत तो है पर रामविचार नही है..लिहाजा रामविचार नेताम के समर्थकों में अच्छी खासी नाराजगी है..और बगावत के शुर भी बुलंद हुए है..पर बागियों को मनाने हर नाकाम कोशिशें खुद रामविचार नेताम ने की है..और उन्होंने ने दो बागी प्रत्याशियों सुखदेव सिह और मुंशी शांडिल्य को मना लिया है..पर विनय पैकरा नही माने!
सह मात का खेल हावी..
बता दे की मुंशी शांडिल्य चार बार सरपंच का चुनाव जीत चुके है. जो गोंड समाज के प्रभावी नेता हैं . और खुद रामविचार नेताम इसी समाज से आते हैं. मतलब मुंशी को बिठाकर नेताम ने अपने समाज का विरोध दूर कर लिया है. यह अलग बात है की भाजपा ने रामविचार नेताम को अपना प्रत्याशी नहीं बनाए जाने पर खुद उन्हें बगावत का मुंह देखना पड़ा.
सह पर बगावत.
जानकारी के मुताबिक पहले कभी रामविचार नेताम के करीबी रहे विनय पैकरा को सरगुजा सम्भाग के एक कद्दावर भाजपा नेता का वरदहस्त प्राप्त हो चुका था. और विनय तैयारी भी कर रहे थे. जिसकी पुष्टि खुद संगठन के विश्वश्त सूत्र करते है. स्थिति ये थी कि अगर खुद नेताम चुनाव लडते तो भी विनय पैकरा चुनाव लड़ने की तैयारी मे थे. तो अब जब नेताम चुनाव नहीं लड रहे हैं तो फिर जिसने रामानुजगंज भाजपा मे नेताम का विकल्प चुना है तो फिर वो भला ताल ठोंकने से बाज कैसे आते.
बहरहाल चुनाव मैदान में रामविचार होते तब भी सियासी समीकरण बिगड़ते और नही है तब भी बिगड़ रहे है..जिसका जवाब खुद रामविचार नेताम ही दे सकते है. क्योंकि दो को तो वो मना लिए. पर उन्ही के बिगाडे नवाब तो अब किसी और के सह पर चुनाव लड रहें है..