बलरामपुर..(कृष्णमोहन कुमार)..वैसे तो राज्य सरकार का स्लोगन है..”स्कूल आ पढ़े बर,जिनगी ला गढ़े बर” पर एक गाँव ऐसा भी है..जहाँ स्कूली बच्चों से लेकर शिक्षक भी चलते फिरते स्कूल के पीछे भागते रहते है..और वह इसलिए क्योंकि स्कूल लगने का कोई निर्धारित स्थल नहीं है..और ये सरकारी स्कूल ग्रामीणों के करार पर इस मोहल्ले से उस मोहल्ले घूमते रहता है.. स्कूल संचालन की ऐसी स्थिति पिछले तीन सालों से बनी है..पर शिक्षा विभाग है कि अपनी नाकमयाबी की खुद ही दलील दे रहा है…
मरम्मत होती तो अच्छा होता…
दरसल ये मसला बलरामपुर जिले के ग्राम बनौर मे संचालित एक सरकारी स्कूल का है..जहाँ सरकार ने वर्ष 1993 में आदिवासी इलाके मे शिक्षा की रोशनी लाने एक प्रायमरी स्कूल खोला था..जिसके लिए 1995 में स्कूल भवन बनकर तैयार हुआ था.. लेकिन मरम्मत के के अभाव में स्कूल भवन की हालत खराब हो चुकी है..लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नही है.
खानाबदोश स्कूल..
इस गाँव मे एक ही स्कूल है..और वह भी खुले मौसम में पेड़ के नीचे और बरसात के मौसम में ग्रामीणों के कच्चे मकानों में लगता है.. वो भी जुगाड मे. इधर गांव के ही स्थानिय नागरिक से चर्चा मे पता चला कि उसने चार महीने का करार कर अपने घर मे स्कूल लगाने की इजाजत दी है..जिसके बाद से स्कूल का असतित्व खानाबदोशी की जिंदगी काट रहे है..
पढाने का दबाव पर भवन नहीं…
स्कूल लगाने का सरकारी दबाव ऐसा है की शिक्षक मजबूरी में कभी इस घर से कभी उस घर मे स्कूल लेजाकर बच्चों के भविष्य को संवारने का काम कर रहें हैं ..ताकि सिस्टम की गलती का खामियाजा स्कूली बच्चों को ना भुगतना पड़े..
कलेक्टर ने भी दिया था आश्वासन..
इस गाँव के स्कूल की कहानी किसी से छिपी नही है..उक्त स्कूल में पदस्थ शिक्षिका बतलाती है..की तीन साल पहले एक मौका ऐसा आया था ..जब खुद तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन इस स्कूल का मुआयना करने पहुँचे थे..और उन्होंने स्कूल भवन बनाने या मरम्मत कराने का आश्वासन दिया था ..पर उसके बाद दो कलेक्टर बदल गए लेकिन स्कूल की स्थिति जस की तस है.
खबर बनाने गए तो बनने लगी कार्ययोजना..
शिक्षा विभाग के अधिकारी खुद बडे सरल अंदाज मे यह बात मान रहे है..कि उनके विभाग के अधीन संचालित बनौर स्कूल चलता फिरता है..पर जब उसके निर्माण की स्थिति के बारे मे पूंछा गया तो उन्होंने बताया कि जर्जर स्कूल भवन के लिए कार्ययोजना बनाई जा रही है..