लालू प्रसाद यादव बहुचर्चित चारा घोटाले में दोषी करार..

राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव तथा जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र को आज बहुचर्चित चारा घोटाले से जुड़े सबसे बड़े मामले में दोषी करार दिया गया।

यादव के खिलाफ चारा घोटाले में पांच मामले केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने दर्ज कराये थे। इनमें से यह पहला मामला आर.सी.20 ए 96 है, जिसमें यादव को दोषी करार दिया गया है। यादव के विरुद्ध चारा घोटाले में चार अन्य मामले आर.सी.38 ए 96, आर.सी.42 ए 96, आर.सी.47 ए 96 और आर.सी.64 ए 96 अदालत में लंबित है।

चारा घोटाले से ही जुड़े आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में भी सीबीआई ने यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी को आरोपी बनाया था, लेकिन इस मामले में निचली अदालत ने उन्हें आरोप मुक्त कर दिया है।

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सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद को आज जेल ले जाया गया। लालू (65) को यहां की बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल ले जाया गया।

मामले में आठ लोगों को आज ही तीन-तीन साल कैद की सजा सुना दी गई, जबकि लालू, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र तथा अन्य को अदालत 3 अक्टूबर को सजा सुनाएगी।

अदालत से बाहर आते हुए लालू शांत नजर आ रहे थे। उन्होंने किसी सवाल का जवाब नहीं दिया और अपनी कार से रांची के बाहरी इलाके में तथा राष्ट्रीय खेलगांव के नजदीक स्थित जेल चले गए।

प्रवास कुमार सिंह की अदालत ने लालू के अतिरिक्त मिश्र, छह राजनीतिज्ञों और चार आईएएस अधिकारियों सहित 44 अन्य को चाईबासा कोषागार से फर्जी तरीके से 37.7 करोड़ रुपये निकालने के मामले में दोषी ठहराया।

आज जिन आठ लोगों को सजा सुनाई गई, उनमें आईएएस अधिकारी क़े अरमुगम, पूर्व पशु पालन विभाग और श्रम मंत्री विद्या सागर निषाद तथा पूर्व विधायक ध्रुव भगत और पांच चारा आपूर्तिकर्ता शामिल हैं।

इसके पूर्व सफेद एंबेसडर कार से अदालत पहुंचे लालू सहज नजर आए और पार्टी समर्थकों का हाथ हिलाकर अभिवादन किया। जब न्यायाधीश ने उनके खिलाफ फैसला पढ़ना शुरू किया, तो लालू अदालत कक्ष में दूसरी पंक्ति में बैठे थे।

CHARA…चारा घोटाले की पूरी कहानी, तारीखों की जुबानी

27 जनवरी 1996: चाइबासा के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने पहली बार इसका रहस्योद्घाटन किया।

11 मार्च: पटना उच्च न्यायालय ने सीबीआई को चार माह के अन्दर पशुपालन घोटाले की जांच करने का निर्देश दिया।

19 मार्च: उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ को सीबीआई द्वारा घोटाले की जांच की निगरानी करने का निर्देश दिया। सीबीआई की जांच शुरू हुई।

छह जनवरी 1997: सीबीआई ने मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से पहली बार साढ़े छह घंटे तक पूछताछ की।

27 अप्रैल: सीबीआई के निदेशक जोगिन्दर सिंह ने लालू प्रसाद यादव समेत 56 लोगों के खिलाफ अभियोग पत्र दाखिल करने की घोषणा की।

10 मई: सीबीआई ने राज्यपाल ए आर किदवई से मुख्यमंत्री समेत 56 लोगों के खिलाफ अभियोग पत्र दाखिल करने की अनुमति मांगी।

17 जून: राज्यपाल ए आर किदवई ने सीबीआई को नियमित कांड संख्या 20 ए 96 में मुख्यमंत्री समेत 54 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति दी।

 

23 जून: सीबीआई ने लालू प्रसाद यादव समेत 56 लोगों के खिलाफ विशेष न्यायालय मे अभियोग पत्र दाखिल किया।

24 जुलाई: पटना उच्च न्यायालय ने लालू प्रसाद यादव की अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी। सीबीआई की विशेष  अदालत ने लालू प्रसाद यादव समेत 56 लोगों के विरुद्ध लगाये गये आरोपों को संज्ञेय मान लिया।

25 जुलाई: विशेष न्यायाधीश एस के लाल ने लालू प्रसाद यादव तथा अन्य अभियुक्तों के विरुद्ध गैर जमानती वारंट जारी  किया। यादव ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और उनकी पत्नी राबडी देवी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लालू प्रसाद यादव ने पटना उच्च न्यायालय के फैसले के विरोध में उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की। उच्चतम  न्यायालय ने 29 जुलाई तक उन्हें गिरफ्तार नही करने का अंतरिम आदेश दिया।

29 जुलाई: उच्चतम न्यायालय ने लालू प्रसाद यादव की विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी।

30 जुलाई: लालू प्रसाद यादव ने सीबीआई की विशेष अदालत में आत्मसमर्पण किया और उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया।

30 अगस्त: केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने राज्यपाल से लालू प्रसाद यादव समेत 34 लोगों के खिलाफ 64 ए 96 में आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति मांगी।

28 अक्टूबर: सीबीआई ने 64 ए 96 में राज्यपाल की अनुमति के बगैर 34 लोगों के खिलाफ विशेष अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया।

29 अक्टूबर: विशेष अदालत ने लालू प्रसाद यादव को 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दाखिल नहीं किये जाने के आधार पर 38 ए 96 और 42 ए 96 में जमानत दे दी।

28 नवम्बर: पटना उच्च न्यायालय ने यादव को 64 ए 96 में हिरासत में रखे जाने को अवैध ठहराया।

11 दिसम्बर: राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले के नियमित मामले 20 ए 96 में 134 दिनों तक जेल मे रहने के बाद रिहा हुये।

12 मई 1998: राज्यपाल एसएस भंडारी ने चारा घोटाले के षडयंत्र पक्ष से जुड़े नियमित मामले 64 ए 96 में लालू प्रसाद यादव समेत 34 लोगों के विरुद्ध मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी।

दो जुलाई: सीबीआई की विशेष अदालत ने आर सी 64 ए 96 में 34 लोगों के विरुद्ध लगाये गये आरोपों को संज्ञेय माना और लालू प्रसाद यादव को 27 जुलाई से पूर्व आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।

24 जुलाई: पटना उच्च न्यायालय ने लालू प्रसाद यादव समेत अन्य अभियुक्तों के विरुद्ध सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले को बहाल रखा, लेकिन आत्मसमर्पण की अवधि को बढ़ाया।

19 अगस्त: सीबीआई ने यादव पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में 5 ए 98 प्राथमिकी दर्ज करायी।

21 अगस्त: सीबीआई ने मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के सरकारी आवास समेत उनके रिश्तेदारों के विभिन्न ठिकानों पर छापा मारा।

21 अक्टूबर: सीबीआई ने यादव से अपने कार्यालय में 5 ए 98 के सिलसिले में पूछताछ की।

 

28 अक्टूबर: लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्र समेत छह अभियुक्तों ने विशेष अदालत में आत्मसमर्पण किया और अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया।

 

30 अक्टूबर: विशेष न्यायालय ने 64 ए 96 में लालू प्रसाद यादव की जमानत याचिका खारिज की।

 

10 नवम्बर: पटना उच्च न्यायालय ने 64 ए 96 में लालू प्रसाद यादव की जमानत याचिका खारिज की।

 

आठ जनवरी 1999: लालू प्रसाद यादव 73 दिनों के बाद जेल से रिहा हुये।

 

20 और 27 मई: बिहार की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से उनके पति और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के खिलाफ दायर आय से अधिक संपत्ति रखने के नियमित मामले 5 ए/98 में केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने उनके सरकारी आवास में पूछताछ की।

आठ अक्तूबर: केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने चारा घोटाले के नियमित मामले 38 ए 96 में राज्यपाल सूरज भान से अनुमति मांगी।

 

तीन नवम्बर: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्र तथा राज्य के तीन पूर्व मंत्रियों समेत अन्य लोगों के खिलाफ 38 ए/96 में राज्यपाल सूरज भान ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो को मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी।

आठ मार्च 2000: केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने राज्यपाल विनोद चन्द्र पाण्डेय से 5 ए 98 में यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी।

11 मार्च: राज्यपाल ने ब्यूरो को यादव के विरुद्ध मुकदमा चलाने की अनुमति दी।

चार अप्रैल: सीबीआई ने 5 ए 98 में यादव और मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। विशेष अदालत ने आरोपों पर संज्ञान लेते हुए दोनों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने का आदेश दिया।

पांच अप्रैल: यादव और राबड़ी देवी ने 5 ए 98 में सीबीआई की विशेष अदालत में आत्मसमर्पण किया। न्यायाधीश ने यादव को जेल भेजा, जबकि राबड़ी देवी को जमानत पर रिहा किया।

11 मई: यादव को तीन माह के औपबंधिक जमानत पर केन्द्रीय आदर्श कारा बेउर से रिहा किया गया।

28 नवम्बर: आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के नियमित मामले 5 ए 98 में जमानत की अवधि समाप्त होने के बाद ब्यूरो की विशेष अदालत ने न्यायिक हिरासत में केन्द्रीय आदर्श कारा बेऊर भेज दिया।

29 नवम्बर: यादव को जमानत पर रिहा किया गया।

28 मार्च 2001: पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्र समेत 179 लोगों के खिलाफ चारा घोटाले के नियमित मामले 47 ए 96 में मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो को अनुमति दी।

आठ मई: केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने 47 ए 96 में ब्यूरो की विशेष अदालत में यादव समेत 110 अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया। इसी दिन न्यायाधीश ने इस आरोप पत्र पर संज्ञान लेते हुए अभियुक्तों के विरुद्ध वारंट भी जारी कर दिया।

12 मई: उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में लालू प्रसाद यादव और जनन्नाथ मिश्र समेत 70 अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए रांची की एक विशेष अदालत द्वारा जारी वारंट पर रोक लगायी।

पांच नवम्बर: उच्चतम न्यायालय ने यादव को रांची की विशेष अदालत में 26 नवम्बर तक आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।

 

26 नवम्बर: यादव ने रांची की विशेष अदालत में आत्मसमर्पण किया। चौदह दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेजे गये।

23 जनवरी 2002: यादव 59 दिनों के बाद जेल से रिहा हुए।

18 दिसम्बर 2006: आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के मामले 5 ए 98 में सीबीआई की विशेष अदालत ने यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी को आरोप मुक्त किया।

16 फरवरी: सीबीआई ने इस मामले में विशेष अदालत केफैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर नही की, तब बिहार सरकार ने इस फैसले के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय में अपील दायर की।

20 मार्च 2008: पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार की अर्जी स्वीकार की और सुनवाई के योग्य बताया। इस फैसले के खिलाफ लालू प्रसाद यादव ने उच्चतम न्यायालय में अर्जी दायर की।

एक अप्रैल 2010: उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि बिहार सरकार को अपील दायर करने का अधिकार नही है। सीबीआई ने इस मामले में विशेष अदालत के फैसले को उपरी अदालत में चुनौती नही दी।

एक मार्च 2012: लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्र समेत 31 लोगों के खिलाफ आर सी 63 ए 96 में सीबीआई की विशेष अदालत ने आरोप गठित किया।

13 अगस्त 2013: उच्चतम न्यायालय ने आर सी 20 ए 96 में सीबीआई के न्यायाधीश को बदलने की लालू प्रसाद यादव की अर्जी को नामंजूर किया।