@sanjayyadav
छत्तीसगढ़ में पहला सफल प्रयोग
जांजगीर-चांपा केले का पौधा ऐसा पौधा है जो मनुष्य के जन्म और मृत्यु तक काम आता है। अमूमन किसान केले के पौधे का फल तोड़कर फेंक देते हैं, लेकिन जांजगीर चांपा जिले के कोसमंदा की जय मां सर्वमंगला महिला स्व सहायता समूह व बहेराडीह के आशीर्वाद स्व सहायता समूह की महिलाओं ने यू-ट्यूब का सहारा लिया और केले के तने से रेशा निकालकर कपड़ा तैयार कर लिया है। इतना ही नहीं आम के आम गुठलियों के दाम की कहावतों को चरितार्थ करते हुए पत्ते का इस्तेमाल टाइकोडर्मा युक्त खाद बनाने में कर रहे हैं। इस संबंध में अन्नदाता कोआपरेटिव समिति बहेराडीह के सचिव व कृषक संगवारी दीनदयाल यादव ने बताया कि इस काम के लिए समूह की 50 महिलाएं लगातार मेहनत कर रहीं हैं। महिलाओं ने बताया कि उन्होंने यू -ट्यूब का सहारा लिया और केले का रेशे से कपड़ा बनाना शुरू कर दिया। सर्वमंगला स्व सहायता समूह की अध्यक्ष रेवती यादव, गीता यादव व बेदीन बाई कौशिक ने बताया कि उन्होंने इंदौर में जैविक खेती का प्रशिक्षण लिया और महाराष्ट्र की तकनीक को छत्तीसगढ़ में अपनाने, केले के रेशे निकालकर उससे कपड़े बनाने का काम अपने समूह में शुरू किया। उन्होंने बताया कि फल तैयार होने के बाद केले के तने को काट लेते हैं। तना को गन्ना रस निकालने वाली मशीन से पिरोते हैं। जिससे गुदादार व रेशेदार हिस्सा अलग -अलग हो जाता है। रेशेदार हिस्से को फिर धागा लपेटने वाली मशीन में गुंथाई किया जाता है। इसी रेशे को इकट्ठाकर कपड़े बनाया जाता है। उन्होंने बताया कि केले के फल तोडऩे के बाद उनके पत्तों तथा डंठल तने को फेंक देते हैं मगर समूह की महिलाओं ने मिलकर केले के पत्तों को मवेशी खिलाने, तने से रेशे निकालकर कपड़े बनाने और उनके छिलकों को टाइकोडर्मा युक्त जैविक खाद बनाने का काम शुरू किया है।
केला शिल्क का होगा पेटेंट
अन्नदाता सोसायटी बहेराडीह के सचिव यादव ने बताया की पौध किस्म और कृषक अधिकार सरंक्षण अधिनियम 2001 के अधीन कृषक किस्म के रजिस्ट्रीकरण हेतु केन्द्रीय कृषि मंत्रालय नई दिल्ली में आवेदन भेजा जाएगा। इससे पूर्व भी 52 किस्मों की पौध व बीज का रजिस्ट्रीय करण पेटेन्ट की प्रक्रिया चल रही है। जिनका रिसर्च पौध किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्रधिकरण नई दिल्ली की बिरसा कृषि विश्वविद्यालय राँची एवं इंदिरा गाँधी कृषि महाविद्यालय रायपुर में चल रही है