बलरामपुर (कृष्ण मोहन कुमार) राज्य सरकार की 13 साल में हुए विकास के दावे अब खोखले साबित हो रहे है, बलरामपुर जिले के भैसामुण्डा गांव में आज भी पेड़ के नीचे आंगनबाड़ी का संचालन हो रहा है,यही नही स्थानीय प्रशासन की माने तो 350 आंगनबाड़ी भवनविहीन है। बलरामपुर जिला वर्ष 2012 में सरगुजा से पृथक कर बनाया गया था,और नए जिले बलरामपुर को सूबे के मुखिया ने भौतिक संसाधनों से लैस करने का भरोसा दिलाया था,लेकिन अब सूबे के मुखिया का यह दावा झूठा साबित होते नजर आ रहा है।
वर्ष 2004 में बलरामपुर जनपद क्षेत्र का गांव भैसामुण्डा कृष्णानगर ग्राम पंचायत के अधीन था,और तब राज्य सरकार ने भैसामुण्डा में मेन आंगनबाड़ी स्वीकृत की थी,स्वीकृति मिलने के बाद से यह आंगनबाड़ी एक पेड़ के नीचे संचालित हो रहा है,जहाँ नर्सरी में पढ़ने के लायक हो चुके बच्चो की देखभाल समेत प्राम्भिक शिक्षा देने का कार्य होता है। वही तीन वर्ष पूर्व साढ़े चार लाख की लागत से आंगनबाड़ी भवन बनाने की मंजूरी मिली थी,और इस निर्माण कार्य का जिम्मा ग्राम पंचायत को दिया गया था,बावजूद इसके अब भैसामुण्डा अलग से ग्राम पंचायत बन गया और आज भी इस भवन का काम अधर में अटका पड़ा है। आंगनबाड़ी सहायिका मजबूरी में पेड़ के नीचे वैकल्पिक व्यवस्था कर आंगनबाड़ी का संचालन कर रही है,प्रशासन से कई बार भवन की मांग भी कई, लोक सूराज में भी अर्जियां दी गई ,लेकिन फिर भी कोई हल नही निकल पाया।
350 आंगनबाड़ी केंद्र भवन विहीन
जिले में आंगनबाड़ी भवनों के निर्माण का जिम्मा ग्राम पंचायतों को दिया गया था,और निर्माण कार्य अधूरा कर पंचायत प्रतिनिधियों ने पंचायत सचिवों से मिली भगत कर आंगनबाड़ी भवन की राशि ही डकार ली,जिसका खामियाजा इन नौनिहालों को भुगतना पड़ रहा है,स्थानीय प्रशासन भवनविहीन 350 आंगनबाड़ियों के लिए शासन को प्रस्ताव भेजने की बात तो कह रहा है,लेकिन यह भवन कब बन पाएंगे इसका जवाब खुद जिले के मुखिया के पास नही है। राज्य की सरकार बड़े ही तामझाम के साथ प्रदेश में 13 वर्षो में हुए विकास कार्यों का गुणगान करने नही थक रही है, लेकिन राज्य के अंतिम छोर पर बसे बलरामपुर जिले की जमीनी हकीकत कुछ और ही बया कर रही है।