भैयाथान
सूरजपुर जिले के विकाशखण्ड भैयाथान में भूमि संरक्षण विभाग द्वारा जल संरक्षण तथा सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने की मंशा से करोड़ों रुपए खर्च कर बनवाए गए एक दर्जन से भी ज्यादा स्टॉप डेम की उपयोगिता शून्य है। सिंचाई सुविधा के लिए बनवाए गए स्टाप डेमों की ओर प्रशासन ने कभी भी ध्यान नही दिया है। जिले में कमाई का बड़ा जरिया बने स्टाप डेमों में गेट नहीं लगाए जाने से पानी का ठहराव नहीं होता,जिससे स्टाप डेमों का लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है। जल संरक्षण तथा सिंचाई सुविधा के लिए पानी की तरह पैसा बहाकर तैयार करवाए गए सैकड़ों स्टॉप डेमों में पानी की उपलब्धता नहीं होने के कारण किसानों को आज भी मानसून का इंतजार रहता है। पानी के लिए पैसा तो बहाया गया लेकिन स्टॉप डेमों में एक बूंद पानी नहीं है।
ऐसा ही मामला भैयाथान जनपद के ग्राम पंचायत बड़सरा के छोटका नाला बस्कर में एक ही नाले पे आधा दर्जन स्टॉप डेम भूमि संरक्षण विभाग द्वारा बना दिया है।ऐसे जगह पे स्टॉप डेम बनाया गया है।जहां सिचाई के लिए एक भी खेत नही है।इससे अंदाजा लगाया जा सकता है।कि इस विभाग में बस कमाओ जहा भी बने स्टॉप डेम बस पैसा मिलना चाहिए वही इस नाले में गर्मी के दिनों में चुरलू भर पानी नही बच पाता है और विभाग द्वारा आधा दर्जन एक नाले में स्टॉप डेम बनाया गया है।वही दूसरी ओर ओड़गी जनपद के ग्राम पंचायत माड़र के आश्रित ग्राम भेड़ापूर्वापारा के कसाई नाला में 7 साल पूर्व 10 लाख की लागत से बनाया गया स्टॉप डेम टूट फुट कर ढह गया है।और पानी नही रुकता वही टूटे हुए स्टॉप डेम से 100 मीटर की दूरी पे एक और नया स्टॉप डेम का निर्माण फरवरी 2017 में जिसकी लागत 15लाख रुपये है।इस स्टॉप डेम में भी घटिया सामग्री का उपयोग कर बनाया गया है।वही स्टॉप डेम के नीचे जंगल का बोल्डर बिछा के उसमे सरिया का बीम बिना लगाए गिट्टी ,बालू,बोल्डर से ढलाई कर बना दिया गया है।इस स्टॉप डेम में बमुश्किल से 8 लाख रुपये खर्च हुआ है।बाकी राशि हजम कर लिया गया है।दूसरी ओर ग्राम पंचायत खडापारा के आश्रित ग्राम दलौनी में 2 साल पूर्व बना स्टॉप डेम का निर्माण निजी जमीन पर कर दिया गया है।जहां नाला भी नही है।उस जगह पे स्टॉप डेम निर्माण कर दिया गया है।जिसकी लागत 10 लाख है।
विकाशखण्ड का शायद ही कोई गांव ऐसा होगा, जहां बड़ी धनराशि खर्च कर स्टाप डेम का निर्माण न करवाया गया हो। स्टाप डेम निर्माण विभागों के साथ ही ठेकेदारों के लिए भी कमाई का बड़ा साधन बना हुआ है। आकलन के अनुरूप स्टाप डेमों के निर्माण के दौरान पानी रोकने के लिए गेट, कड़ी शटर लगाने का प्रावधान है,लेकिन जिले के 5से 10 फिसदी स्टाप डेम ऐसे हैं जिसका निर्माण कागजों में पूर्ण बता निर्माणकर्ताओं को शत-प्रतिशत राशि का भुगतान कर दिया गया है लेकिन इन स्टाप डेमों में निर्माणकर्ताओं द्वारा गेट ही नहीं लगाया गया है। गेट नहीं लगाने के कारण इन स्टाप डेमों में एक बूंद पानी भी नहीं ठहरता। बरसात के बाद दो-तीन महीने पानी नजर आता है, शेष मौसम में स्टाप डेमों से धूल ही उड़ता है। जिन बारहमासी जिंदा नदी, नालों पर स्टाप डेम का निर्माण कराया गया है वहां थोड़ा-बहुत पानी नजर जरूर आता है लेकिन गेट के अभाव में एक स्थान पर जल संग्रहित नहीं हो पाने के कारण इनकी उपयोगिता नहीं रह पाती। पिछले दो-तीन वर्षों से मानसून की बेरूखी के दौरान सूखे स्टाप डेमों की ओर किसी ध्यान नही गया है लेकिन फिर बरसात हो जाने के बाद स्टाप डेमों की व्यवस्था सुधारने की दिशा में कोई पहल नहीं कि जाती, जिससे स्टाप डेमों की उपयोगिता नहीं के बराबर है। किसानों का कहना है कि यदि स्टाप डेमों में पानी रोकने के लिए निर्माण के दौरान ही गेट लगवा दिया जाता तो आसपास के इलाकों में लोग खेती कर सकते थे और सिंचित रकबा भी बढ़ सकता था। स्टाप डेमों की हालत यह है कि यहां बरसात के मौसम को छोड़कर मवेशियों की प्यास बुझाने तक की पानी नहीं मिल पाती। भैयाथान में स्टाप डेमों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है लेकिन दुर्भाग्य है कि जिम्मेदार जनप्रतिनिधि ही जनहित से जुड़े इस मसले को लेकर गंभीर नही हैं। प्राकलन के विपरीत बगैर मानक का पालन किए तैयार स्टाप डेमों में गेट नहीं लगाने का मुद्दा आजतक सक्षम स्तर पर नहीं उठाया जा सका। जनप्रतिनिधियों की दिली चाहत आज भी स्टाप डेमों के प्रति नही रहती है। स्टाप डेमों का निर्माण कराने वाले विभाग भी होने वाली मोटी कमाई के कारण बगैर जांच पड़ताल के कमीशन लेकर बिल भुगतान करने में लगे रहत हैं, यही वजह है कि भैयाथान मे बनवाए गए स्टाप डेम उम्मीदों को पूरा कर पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।
ढहने के डर से गेट नहीं-
कुछ जानकारों का कहना है कि जिले में स्टाप डेम निर्माण के साथ ही पानी रोकने के लिए प्राकलन में ही गेट लगाने का भी प्रावधान रहता है। उसी हिसाब से एक स्टाप डेम की राशि भी स्वीकृत की जाती है लेकिन गेट लगाने से पानी का ठहराव यदि हुआ तो स्टाप डेम के धराशायी होने की आशंका से निर्माणकर्ता और निर्माण एजेंसी गेट लगाना नहीं चाहती। जानकारों के मुताबिक सूरजपुर जिले में स्टाप डेमों के निर्माण में मानक का पालन नहीं किया गया है। बिना आरसीसी बेस तैयार किए बोल्डर फिटिंग कर दी गई है। कुछ ही दिनों में मिट्टी कटाव होने से बोल्डर निकल जाते हैं, ऐसी परिस्थिति में यदि गेट लगा दिया गया और स्टाप डेम में पानी का दबाव बढ़ा तो कमजोर बेस वाले स्टाप डेम के पूरी तरह से स्टाप डेम के धराशायी होने की संभावना रहती है, ऐसी परिस्थितियों में निर्माण एजेंसियों तथा निर्माणकर्ताओं पर कार्रवाई का डर बना रहता है इसलिए गेट लगाने से सीधे-सीधे परहेज किया जाता है।
स्थल चयन में भी मनमानी-
सूरजपुर जिले में स्टाप डेम निर्माण के दौरान स्थल चयन में मनमानी का खामियाजा भी किसानों को भुगतना पड़ रहा है। जिले के दर्जनों स्टाप डेम ऐसे स्थान पर बना दिए गए हैं जहां पानी का ठहराव संभव ही नहीं है। सूखे और ऊंचाई वाले स्थान में स्टाप डेम बना देने के कारण इनकी उपयोगिता भी नहीं रह जाती है। दर्जनों स्टाप डेम निर्माण के तत्काल बाद घटिया निर्माण के कारण धराशायी हो चुके हैं। जिस कारण स्टाप डेम निर्माण के नाम पर शासकीय राशि का दुरूपयोग करने वालों के हौसले बुलंद हैं। आज की स्थिति में भी वही निर्माण विभाग स्टाप डेमों का मनमाना निर्माण कर सरकारी योजना की मिट्टी पलित करने में लगे हुए हैं।
इस संबंध में भैयाथान एसडीएम प्रियंका वर्मा से उनके मोबाईल पर संपर्क करने की कोशिश की गईं लेकिन उनके द्वारा फोन को रिसीव ही नही किया गया जिसके चलते उनका पक्ष ज्ञात नही हो सका। वही इस संबंध में सीनियर एडीओ चतुर्वेदी ने कहा कि नियम में एक ही नाले पे कई स्टॉप डेम बनाया जा सकता है, और अभी शासन से लेटर भी आया है। प्रत्येक नाले पे स्टाप डेम बनाकर पानी रोका जाए वही बड़सरा में बना स्टाप डेम निस्तारी, सिचाई ,मवेशियों को प्याऊ, के उद्देश्य से बनाया गया है।