अम्बिकापुर
देश दीपक “सचिन”
शासन के कुछ ऐसे विभाग होते है जिसमे गैर तकनीकी अधिकारी कर्मचारी ही निर्माण कार्य के ठेकेदार होते है और वही उस कार्य के इंजीनियर भी होते है उस काम का मेजरमेंट का काम भी खुद करते है। ऐसे मे निर्माण कार्य के गुणवत्ता और विश्वसनियता की बात बेईमानी से ज्यादा कुछ नही हो सकती है। सरगुजा मे ऐसी ही एक घटिया निर्माण की खबर सतह पर आई है। मामला कृषि विभाग के अधीन संचालित भूमि संरक्षण विभाग का है, जिसके द्वारा जिले के बांसाझाल मे बनाए जा रहे स्टाप डेम के पहले ही बरसात मे बहने की आशंका बनी हुई है।
आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिले मे भोले भाले आदिवासियो को गैर जागरुकता का फायदा निर्माण कार्य मे लगे लोग आसानी से उठा लेते है। ऐसा ही इन दिनो सरगुजा जिले के बतौली विकासखण्ड के सूदूर पहाडी के नीचे बसे बांसाझाल गांव मे देखा जा रहा है। इस गांव के पहाडी नाले मे भूमि संरक्षण विभाग के द्वारा 14 लाख की लागत से स्टाप डेम बनाया जा रहा है। जिसमे 24 तगाडी गिट्टी, 17 तगाडी बालू ,2 तगाडी सीमेंट का मसाला बनाकर विभाग द्वारा खुद काम कराया जा रहा है। जबकि स्टीमेट के मुताबिक 1 तगाडी सीमेंट , तीन तगाडी बालू और 6 तगाडी गिट्टी का मसाला बनाकर स्टाप डेम का निर्माण कराया जा रहा है। इतना ही नही निर्माण कार्य मे नाले की मिट्टी युक्त बालू का इस्तेमाल किए जाने से स्थानिय लोग ये मान रहे है कि निर्माण पूर्ण होने के बाद पहली ही बरसात मे ये स्टाप डेम बह जाएगा और तो और इस निर्माण मे लगे वो श्रमिको के बयान भी गुणवत्ता पर सवाल खडा कर दिया है।
राम साय श्रमिक
स्टाप डेम निर्माण के कम में लगे श्रमिक ने भी बताया की निर्माण में कितना सीमेंट, रेत और गिट्टी का उपयोग किया जा रहा है..श्रमिक के मुताबिक़ इक बार में तीन तगाड़ी सीमेंट में ही 18 तगाड़ी रेत और 24 तगाड़ी गिट्टी मिला दी जाती है..इतना ही नहीं श्रमिक के मुताबिक़ कृषी विभाग के अधिकारी भी साईट पर नहीं जाते है.. खैर निर्माण की गुणवत्ता के विषय में खुद काम करने वाले श्रमिक से बेहतर और कौन बता सकता है..
जिले के पहाडी गांव बांसाझाल के पहाडी नाले मे बन रहे स्टाप डेम की कीमत 14 लाख रुपए है। जिसके निर्माण मे गुणवत्ता को किस कदर ध्यान दिया जा रहा है आप साफ देख सकते है यहा कि गई ढलाई को आप हाथ से उखाड सकते है, तो फिर ऐसे मे बरसात के तेज बहाव मे ये कितने दिन तक टिकेगा इसकी कोई गांरटी नही।
एम.आर.भगत, जिला भूमि संरक्षण अधिकारी,
इधर कृषि विभाग के अधीन काम करने वाले जिस भूमि संरक्षण अधिकारी की देखरेख मे ये काम चल रहा है,, वो हाथ से ही जमीदोंज होने वाले घटिया निर्माण को बेहतर काम बता कर हमे आईना दिखाने का प्रयास करते रहे। इतना ही नही उन्होने अपने आप को टेकिनकल एक्सपर्ट बताने से भी गुरेज नही किया,, जबकि वो किसी भी प्रकार से तकनीकी एक्सपर्ट नही बल्कि कृषि विभाग के कर्मचारी है। ओहदेदार अधिकारी की जुबान से घटिया निर्माण मे ये दिलेरी भरे बयान से ही आप खुद समझ सकते है कि शासकीय राशि के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार की कहानी मे कितना दम है क्योकि इन अधिकारी महोदय ने निर्माण के संबध मे कहा कि कोई अपने बेटा को काना थोडी कहेगा।
खुलेआम हो रहे घटिया निर्माण के खिलाफ कार्यवाही हो पाएगी ये कहना शायद इसलिए गलत होगा क्योकि जिसे भूमि संरक्षण विभाग द्वारा ये काम कराया जा रहा है वो अधिकारी खुद ठेकेदार और खुद मेजरमेंट अधिकारी है, बहरहाल जिले मे इस विभाग के द्वारा मौजूदा वक्त मे 22 गांवो मे भी इतनी ही लागत से अन्य स्टाप डेम का निर्माण कराया जा रहा है,जो किस तरह निर्मित हो रहे होगें वो बांसाझाल के इस काम को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है।