रायपुर। ग्रामोद्योग मंत्री गुरु रूद्रकुमार की पहल पर अब ग्रामोद्योग विभाग विश्वस्तरीय कोसा वस्त्रों का उत्पादन करने लगा है। मंत्री गुरु रुद्रकुमार ने रेशम प्रभाग द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि स्थानीय रेशमी धागों से बनने वाले कोसा वस्त्र जहां अधिक आकर्षक और मुलायम है वहीं चाइनीस और कोरियन धागों से बने कपड़ों की तुलना में अधिक किफायती और सस्ता भी है। उल्लेखनीय है कि ग्रामोद्योग मंत्री गुरु रूद्रकुमार ने कोसा वस्त्रों की बढ़ती मांग को देखते हुए रिलिंग कार्य के माध्यम से स्थानीय रोजगार सृजन करने के लिए विभाग को विकल्प तैयार करने के निर्देश दिए हैं।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ का कोसा विश्व में उच्च गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है। स्थानीय कोसा धागा रिलिंग से लंबा ताना लायक धागा मिलने से बाने में देसी टसर से बुनाई का काम शुरू किया जा रहा है। चूंकि यह वस्त्र पूर्णतः देसी है तथा स्थानीय धागों से बना है। इससे न केवल रेशम वस्त्रों की कीमत में कमी आई है बल्कि उच्च गुणवत्ता का रेशमी कपड़ा भी उपलब्ध हो रहा है। देसी कोसा आयातित धागों की तुलना में अधिक मुलायम और कम चमकीला रहता है जिसके कारण से कोसा की परख रखने वाले लोग इसे ज्यादा पसंद करते हैं। साथ ही शहतूत और कोसा रेशम के ताने-बाने से बना रेशमी कपड़ा बहुत ही आकर्षक और कोमल होता है।
ग्रामोद्योग संचालक सुधाकर खलखो ने बताया कि देसी कोसा की अधिक मांग होने के कारण 12 जिलों में रिलिंग का कार्य निरंतर चल रहा है। उन्होंने बताया कि इसी क्रम में सारंगढ़ स्थित यूनिट में कोसा धागा की रिलिंग पानी सहित करने का प्रयोग किया गया जिससे लंबा ताना लायक धागा मिलने लगा है। ऐसी ही एक स्वतंत्र यूनिट कोरबा में भी स्थापित करने की प्रक्रिया प्रगति पर है। खलखो ने बताया कोरियन यार्न का भाव बाजार में 6300 रुपए प्रति किलो है, जबकि नई मशीन से तैयार किया स्थानीय कोसा धागा जिसकी कीमत 4800 से 4900 रुपए प्रति किलो है। इससे छत्तीसगढ़ राज्य का उत्पाद अधिक प्रतिस्पर्धात्मक है। आसानी से उपलब्ध होने वाले इन धागों का उपयोग अब अन्य राज्यों के बुनकरों द्वारा भी किया जा रहा है। जिससे निर्मित होने वाले रेशमी वस्त्रों गुणवत्ता बरकरार रहेगी वहीं यह रेशमी वस्त्र किफायती भी होंगे।