Sengol Politics Explainer : क्या है सेंगोल का इतिहास, पंडित नेहरू के साथ भी जुड़ा है वाकया, संसद में क्या है इस पर विवाद का कारण?

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Sengol, Sengol in Parliament, Sengol Politics, Sengol Politics Explainer : आरके चौधरी द्वारा संसद में सेंगोल को लेकर उठाए गए मुद्दे पर विवाद तेज हो गया है। इसे लेकर संसदीय वक्तावरण में विवाद उभरा है कि क्या सेंगोल, जिसे भारतीय संसद में स्थापित किया गया है, वाकई लोकतंत्र के प्रतीक होने के योग्य है या नहीं। इस विवाद के मध्य में, विभिन्न राजनीतिक पक्षों के नेता और सांसदों के बीच मतभेद भी हुए हैं।

Sengol Politics Explainer : सेंगोल और पंडित जवाहरलाल नेहरू

सेंगोल का इतिहास बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसे भारत के पहले प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू से जोड़ा जाता है। नेहरू के प्रधानमंत्री बने जाने के पूर्व, उन्हें आजादी के लिए एक प्रतीक की जरूरत महसूस हुई थी। इस प्रकार, उन्हें राजदंड के रूप में सेंगोल का उपयोग करने का प्रस्ताव किया गया। राजदंड, जिसे ‘सेंगोल’ कहा जाता है, भारतीय परंपरा में राजा के आदेशों को प्रतिष्ठित करने का प्रतीक होता है। इस प्रतीक के माध्यम से, नेहरू ने भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों को प्रकट किया और उनके सामाजिक दर्शनों को प्रमोट किया।

नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना की गई थी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मई, 2023 को इसे स्थापित किया। इसे संसद के भवन में ‘न्याय, धर्म और सत्य’ के प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया। हालांकि, इस नई स्थापना ने एक बार फिर से सेंगोल के चारों ओर विवाद उत्पन्न कर दिया है।

Sengol Politics Explainer : सेंगोल का इतिहास

सेंगोल का इतिहास एक महत्वपूर्ण भारतीय परंपरा को दर्शाता है, जिसे राजदंड के रूप में जाना जाता है। यह शब्द तमिल से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘संपदा से संपन्न’ है। इसे संस्कृत के ‘संकु’ से जोड़ा जाता है, जिसका अर्थ ‘शंख’ होता है और वैदिक परंपरा में पौरुष के उद्घोष का प्रतीक माना जाता है।

सेंगोल का प्रथम इस्तेमाल मौर्य साम्राज्य के समय में हुआ था, जहां यह राज्य के प्रताड़ित शक्ति और संप्रभुता का प्रतीक था। मौर्य साम्राज्य के बाद इसे गुप्त साम्राज्य, चोल साम्राज्य और विजयनगर साम्राज्य में भी उपयोग किया गया। मुगल और अंग्रेज शासकों ने भी सेंगोल का प्रयोग अपने शासनकाल में किया, जिसे अपनी सत्ता और साम्राज्य की संप्रभुता का प्रतीक माना गया।

Sengol Politics Explainer : सेंगोल, राज्य के विस्तार, प्रभाव और संप्रभुता का प्रतीक

भारतीय संस्कृति में सेंगोल को राज्य के विस्तार, प्रभाव और संप्रभुता का प्रतीक माना जाता है। यह दर्शाता है कि शक्ति, समृद्धि और पौरुष का सम्मान कैसे समाज में महत्वपूर्ण हैं। सेंगोल का इतिहास भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अंग को प्रकट करता है, जो राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव की गहरी परंपरा को दर्शाता है।

नए संसद भवन में इसकी स्थापना के बाद से ही, सेंगोल के बारे में विवाद और उसके चारों ओर विभिन्न पक्षों के मतभेद शुरू हो गए हैं।इस प्रक्रिया में, विशेष ध्यान दिया गया कि यह प्रतीक भारतीय संविधान की अद्वितीयता और लोकतंत्र के मूल्यों को प्रकट करे।

भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भौतिक प्रतीक

इस विवाद के बावजूद, सेंगोल का महत्व और उसके राजनीतिक और सामाजिक प्रतीक के रूप में अनुमोदन किया जाता है। यह न केवल भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भौतिक प्रतीक है, बल्कि इसके माध्यम से भारतीय संविधान और लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धांतों की प्रतिष्ठा की जाती है। इसलिए, विभिन्न पक्षों के बीच हो रहे विचार-विमर्श के बावजूद, सेंगोल के आधारभूत महत्व को समझने और समर्थन करने की आवश्यकता है।