Explainer : 10 साल बाद देश को मिलेगा नेता प्रतिपक्ष, जानें कब हुई थी इसकी शुरुआत और क्या है नेता प्रतिपक्ष पद खाली रहने का कारण

Leader Of Opposition, Loksabha, Explainer : विपक्ष के नेता प्रतिपक्ष लोकसभा में अहम भूमिका निभाते हैं। उनका उच्चतम नेतृत्व विपक्षी दलों को संगठित और प्रभावशाली रूप से काम करने में मदद करता है।

Politics, Deputy Speaker, TDP, NDA, BJP, Congress

Leader Of Opposition, Loksabha, Explainer : लोकसभा में विपक्ष के नेता प्रतिपक्ष के पद का खाली रहना, यह समस्या एक दशक से अधिक समय से जारी है। पिछले 10 सालों में इस पद पर कोई नई नेता प्रतिपक्ष नहीं बना है। जो कि लोकसभा में विपक्षी दलों के लिए महत्वपूर्ण होता है।

कमजोर विपक्ष किसी भी लोकतांत्रिक देश की कमजोरी मानी जाती है। ऐसे में अगर विपक्ष मजबूत न रहे और नेता प्रतिपक्ष पद का सदन में खाली रहना कई मायनों में लोकतंत्र की कमजोरी का पर्याय समझा जाता है।

Explainer : संविधानिक विवाद

इस पद का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि यह एक विपक्षी दल के नेता को विशेषाधिकार और वेतन का अधिकार प्राप्त करने का अवसर देता है। वर्तमान में इस पद की खाली जगह पर संविधानिक विवाद भी छिड़ा हुआ है, क्योंकि संसद अध्यक्ष ने इस पर चर्चा की है, लेकिन कोई नया नेता प्रतिपक्ष तय नहीं हुआ है।

Explainer : कब हुई इसकी शुरुआत

नेता प्रतिपक्ष पद के महत्वपूर्ण इतिहास में इसकी शुरुआत 1969 में हुई। कांग्रेस के विभाजन के बाद, कांग्रेस (ओ) के श्री राम सुभग सिंह ने नेता प्रतिपक्ष पद के लिए अपना दावा रखा था। तब से यह पद राजनीतिक मानदंडों और विशेषाधिकारों के रूप में महत्वपूर्ण है।

1977 में संसद ने एक अधिनियम पारित किया, जिसमें नेता प्रतिपक्ष पद को वैधानिक मान्यता दी गई। अधिनियम में उल्लेख किया गया कि सदन के कम से कम दसवें हिस्से पर स्थित एक विपक्षी दल को नेता प्रतिपक्ष पद के लिए विशेषाधिकार और वेतन का दावा करने का अधिकार होना चाहिए।

वर्तमान में, कांग्रेस पार्टी के पास संसद का लगभग पांचवां हिस्सा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे इस पद के लिए उपयुक्त हैं। इस पद के माध्यम से विपक्षी दल का एक महत्वपूर्ण रूप से योगदान रहता है जो सरकारी नीतियों को जांचने और समीक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

Explainer :विपक्ष के नेता की कमी लोकसभा में पिछले दस सालों से जारी

लोकसभा के चुनावी प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अक्सर अपनी सभाओं में इस बात पर ध्यान दिया है कि वे अपने दस साल के कार्यकाल में विपक्ष के प्रति अपने दुख और चिंता व्यक्त करते हैं, जिससे उनका मन दुखी होता है। यह बात सच है कि विपक्ष के नेता की कमी लोकसभा में पिछले दस सालों से जारी है।

जब भी लोकसभा में विपक्षी दलों के नेता प्रतिपक्ष की बात आती है, तो उसका यह मतलब नहीं होना चाहिए कि अनुवाद या अवैध कार्य कर रहे हैं। विपक्ष के दल और उसके दल भी यह महसूस करते हैं कि उन्हें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में कोई नेता नहीं है।

लेकिन लोकसभा में विपक्षी दल के लिए एक नया नेता प्रतिपक्ष नहीं होने का यह मतलब नहीं है कि विपक्षी दल स्वयं अनुवादी या अवैध कार्य कर रहे हैं।उन्हें इस पद की खाली जगह को भरने के लिए चिंता होती है, जो कि एक विपक्षी दल के लिए महत्वपूर्ण है।

Explainer : विपक्ष की भूमिका

विपक्ष की भूमिका- विपक्ष के नेता प्रतिपक्ष लोकसभा में अहम भूमिका निभाते हैं। उनका उच्चतम नेतृत्व विपक्षी दलों को संगठित और प्रभावशाली रूप से काम करने में मदद करता है। उनका अभाव विपक्षी दलों की प्रभावक्षमता और संसदीय प्रक्रिया में विपरीतता ला सकता है।

संविधानिक महत्व: यह पद संविधानिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। विपक्ष के नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्हें विशेषाधिकार और सुरक्षा प्रदान की जाती है, जो विपक्षी दलों के सामर्थ्य और साहस को बढ़ाता है।

संसदीय संवाद में कमी: इस पद की खाली जगह ने संसदीय संवाद में एक खाली स्थान उत्पन्न किया है, जिससे विपक्षी दलों का विचार प्रश्नात्मक और निष्क्रिय हो सकता है।

इस समस्या का समाधान संसदीय प्रक्रियाओं में सुधार करके, नेतृत्व के लिए उपयुक्त मान्यता और प्रक्रियाओं को पालन करके किया जा सकता है। संसदीय नेतृत्व और सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए, सभी राजनीतिक दलों को मिलकर काम करना होगा ताकि विपक्षी दलों का प्रतिनिधित्व संसदीय विचार-विमर्श में मजबूती से दिख सके।