सम्पादकीय…
छत्तीसगढ विधानसभा के लिए कयालो के पुल बनाने वाले और हवाओ मे तीर चलाने वाले विश्लेषको की मन कल उस वक्त स्थिर होगा,, जब उनके चंचल मन मे उठ रहे जीत और हार की उम्मीद , संभावना पर विराम लगेगा। विधानसभा चुनाव बीते 19 अक्टूबर को समपन्न हुआ, जिसके बाद मतगणना के लिए मिला लंबा वक्त टाईमपास करने वाले चुनावी विश्लेषको के लिए मानो त्य़ौहार जैसा था,, इसी लिए ही हर चाय और पान ठेला मे भी जीत और हार का चुनावी गपशप तेज हो गई थी। लेकिन रविवार को होने वाली मतगणना के बाद से वो पान ठेले और चाय के ठेले मे कोई भी फिजूल की कयास लगाने के लिए अपना और सामने वाले का वक्त नही बर्बाद करेगा। क्योकि विधानसभा के 90 सीटो मे कौन से दल का विधायक जीतेगा। ये कल ईव्हीएम मशीन के ताले खुलने के बाद कुछ ही देर मे साफ हो जाएगा।
पांच साल आम मददाताओ से लेकर छोटे बडे सभी नेताओ को एक काम मिला था। वो भी कल की मतगणना उनसे छीन लेगी। और फिर आम लोग सरकार की ताजपोशी देख कर तो अपनी दो वक्त की रोजी रोटी के जुगाड मे भिड जाएगे। लेकिन पान ठेले और चाय ठेले मे अपने अपने नेता की जीत और सामने वाले की हार की बात टटोलने वाले स्थानिय नेता अपने नए विधायक की आवभगत और कान भर कर अपना नया जुगाड बनाने मे भिड जाएगे।
सरकार चाहे भाजपा की बने या कांग्रेस की या फिर निर्दलीय निर्णायक भूमिका निभाए,, ये तो बात दूर कि है, लेकिन अच्छी बात ये है कि कल मतगणना के बाद कयासो की जिंदगी मे सोने का महल बनाने वाले नेताओ के सामने संभावनाओ का पर्दा हट जाएगा,, और हकीकत की तस्वीर सामने होगी। और सबसे अच्छी बात होगी, चुनाव के कारण रुकी आम लोगो की जिंदगी फिर एक बार पटरी मे दौडने लगेगी, अधिकारी, कर्मचारी फिर अपने दफ्तर मे नजर आने लगेगे। और हितग्राही अपना काम करने लगेगे।
छत्तीसगढ मे सरकार भले ही किसी की बने , चुनाव परिणाम का असल इंतजार वो किसान कर रहे है, जो अपनी धान की फसल को काट कर उसको बेंचने के लिए तैयार तो है,, लेकिन इंतजार है परिणाम के बाद कांग्रेस और भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र के जारी होने का। आलम ये है कि चुनावी नतीजे ना आने से खेत तो खाली है,, लेकिन खलिहान मे फसल को तो गांवो मे किसान को इंततार है चुनावी नतीजो का।