फ़टाफ़ट डेस्क. होली का त्यौहार बस आने वाला है। इस साल 8 मार्च को धुलेंडी खेली जाएगी। जहां एक ओर दुनियाभर में होली मात्र एक दिन के लिए मनाई जाती है तो वहीं, दूसरी तरफ ब्रज धाम में होली का पर्व पूरे 40 दिनों तक चलता है। (Vrindavan Ki Holi)
ब्रज धाम में बसंत पंचमी के साथ शुरू हुआ होली का पर्व शुरू हो चुका है। जहां एक ओर 27 फरवरी को बरसाना में लड्डूमर होली और 28 फरवरी को जग प्रसिद्द लट्ठमार होली खेली गई, वहीं 3 मार्च, दिन शुक्रवार को वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में फूलों वाली होली खेली जाएगी।
वृंदावन के ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकंता वत्स से जानिए बांके बिहारी मंदिर में खेली जाने वाली होली का महत्व और उससे जुड़ी दिलचस्प बातें।
बांके बिहारी की फूलों वाली का सर्वाधिक महत्व है। जिस दिन फूलों वाली होली खेली जाती है उस दिन ठाकुर जी को सफेद वस्त्र धारण कराये जाते हैं और उनका पूर्ण रूप से श्रृंगार किया जाता है। इस दिन ठाकुर जी के साथ पहले फूलों से होली खेली जाती है। बांके बिहारी ठाकुर जी को पैरों से लेकर गर्दन तक फूलों से ढका जाता है। वहीं, मंदिर परिसर में मौजूद भक्तों पर भी जमकर फूल बरसाए जाते हैं।
बांके बिहारी मंदिर में भक्तों का जमावड़ा देखने लायक होता है। मंदिर का ऐसा कोई स्थान नहीं होता जहां फूलों की पंखुड़ियां बिखरी हुई न हों। जमकर फूल उड़ाने और बांके बिहारी जी के साथ फूलों से होली खेलने के बाद अबीर और गुलाल की बारी आती है।
सबसे पहले ठाकुर जी के सेवा में मौजूद सभी सेवाकारी पुजारी उन्हें केसर के फूलों के रंग से बने पानी की पिचकारी मारते हैं जिससे ठाकुर जी के सफेद वस्त्र नारंगी या लाल रंग के हो जाते हैं फिर उसके बाद मंदिर में भक्तों के ऊपर पानी बरसाया जाता है।
बांके बिहारी मंदिर में जमकर गुलाल और अबीर उड़ता है और मान्यता है कि ठाकुर जी खुद भक्तों के बीच होली खेलने आते हैं। खास बात यह भी है कि इस दिन न सिर्फ मंदिर के अन्दर बल्कि बांके बिहारी मंदिर के बाहर जितनी भी गलियां हैं सब रंग एवं गुलाल और फूलों से सराबोर रहती हैं।
बांके बिहारी मंदिर में जमकर गुलाल और अबीर उड़ता है और मान्यता है कि ठाकुर जी खुद भक्तों के बीच होली खेलने आते हैं। खास बात यह भी है कि इस दिन न सिर्फ मंदिर के अन्दर बल्कि बांके बिहारी मंदिर के बाहर जितनी भी गलियां हैं सब रंग एवं गुलाल और फूलों से सराबोर रहती हैं।